हॉकी वर्ल्ड कप के मैच में मुख्यमंत्री के साथ चीयर करते इन पूर्व नक्सलियों को देख कर आपको हैरत होगी

30 पूर्व नक्सलियों ने क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ स्टेडियम में देखा मैच। इनको देख कर कोई कह सकता है कि इन हाथों में पहले हथियार हुआ करते थे?

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पूर्व नक्सलियों ने हॉकी वर्ल्ड कप में किया इंडिया के लिए चीयर।

13 दिसम्बर, 2018 को ओडिशा के कलिंगा स्टेडियम में हुए हॉकी वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइनल मैच में दर्शक-दीर्घा से पूर्व नक्सलियों ने जब इंडिया के लिए चीयर किया तो नजारा ही कुछ और था। उन सबने चेहरे पर तिरंगा पेंट किया था और उनके साथ बैठे थे ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक। साथ में भारत के स्टार क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग भी थे। पूर्व माओवादियों को मुख्यधारा से जोड़ने का असर बीते हॉकी वर्ल्ड कप में देखने को मिला। करीब 30 सरेंडर कर चुके नक्सलियों ने हॉकी वर्ल्ड कप का क्वार्टर फाइनल मैच देखा, जिनमें 16 महिलाएं भी थीं। इन 30 लोगों में 20 मल्कानगिरी और 10 कोरापुट जिले के रहने वाले थे।

पूर्व-नक्सलियों के साथ मैच देखते मुख्यमंत्री नवीन पटनायक

दरअसल, सरेंडर कर चुके नक्सलियों ने जिला प्रशासन से हॉकी वर्ल्ड कप देखने की इच्छा जाहिर की थी। जिसके बाद मल्कानगिरी के एसपी जगमोहन मीना ने राज्य के अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर उनके मैच देखने का इंतजाम किया। जब वे लोग मैच देखने पहुंचे तो उनके साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी मैच देखने पहुंच गए। सीएम ने उन लोगों से बातचीत भी की। इन पूर्व माओवादियों के लिए यह जीवन भर नहीं भूलने वाला पल था। उन सबने इसके लिए मुख्यमंत्री का आभार प्रकट किया। पटनायक ने भी उनसे मिलने और उनके मुख्यधारा से जुड़ने पर खुशी जाहिर की।

इनलोगों ने मीडिया से भी बात की और पूर्व-नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने के राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि हमें अब सचमुच महसूस हो रहा है कि हम भी मुख्यधारा के लोग ही हैं।

पूर्व-नक्सलियों से हाथ मिलाते हुए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक

उन लोगों ने कहा कि प्रदेश सरकार की पुनर्वास की योजनाएं उन्हें मुख्यधारा से जुड़ने और उनके भविष्य को सुरक्षित बनाने में बहुत मददगार साबित हो रही हैं। सरेंडर करने से पहले ये लोग माओवादी संगठनों में ऊंची रैंक पर थे और कई बड़े नक्सली वारदातों में शामिल थे। इनमें से कई के सर लाखों का इनाम भी था। एक ने कहा कि मैं 10 साल माओवादी संगठन में रही। पता नहीं मैं क्यों पुलिस से लड़ती रही। वहां हमें बस उतना ही करना होता था जो हमें करने को कहा जाता था। सरेंडर करने के बाद पता चला कि यहां चीजें इतनी बुरी नहीं हैं जितना हमें बताया जाता है। एक और ने बताया कि मैंने इसके पहले कभी भुवनेश्वर नहीं देखा था। हमने अपना सारा वक्त जंगलों में ही बीता दिया। इन लोगों ने नंदकानन जू, लिंगराज मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर और प्रसिद्ध भुवनेश्वर डॉट फेस्ट भी देखा।

सच है जंगल में हथियार उठाए भागते-फिरते रहना भी कोई ज़िंदगी है भला।

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