छत्तीसगढ़ की फ्लोरेंस नाइटिंगेल, खुद कैंसर से पीड़ित लेकिन दूसरों की सेवा के लिए सदैव तत्पर

पुष्पा की बीमारी के कारण विभाग ने उनका ट्रांसफर भी करना चाहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। गांव वाले भी ऐसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता को जाने नहीं देना चाहते।

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सुकमा जिले के कुन्ना इलाके में कार्यरत एक एएनएम कार्यकर्ता हैं पुष्पा तिग्गा। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें सम्मानित किया है।

छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में आज भी एक फ्लोरेंस नाइटिंगेल रहती हैं। जो नक्सलियों के डर के आगे भी डटकर खड़ी हैं और 23 सालों से अपने कर्तव्य का पूरी निष्ठा के साथ पालन कर रही हैं। उनका नाम है पुष्पा तिग्गा। जिले के कुन्ना इलाके में कार्यरत एक एएनएम कार्यकर्ता हैं पुष्पा तिग्गा। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें सम्मानित किया है। नक्सल क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए उन्हें यह सम्मान मिला है। राजधानी रायपुर में आयोजित कायाकल्प 2018-2019 कार्यक्रम में सीएम बघेल ने पुष्पा तिग्गा को सम्मानित किया। एएनएम कार्यकर्ता पुष्पा तिग्गा पिछले 12 सालों से नक्सल प्रभावित क्षेत्र कुन्ना में काम कर रही है।

कुन्ना ऐसा इलाका है जहां हर साल कोई न कोई बीमारी महामारी का रूप ले ही लेती है। वे खुद एक साल से ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित हैं। इसके बावजूद वे गांव वालों को अपनी सेवाएं दे रही हैं। पुष्पा की बीमारी के कारण विभाग ने उनका ट्रांसफर भी करना चाहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। गांव वाले भी ऐसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता को जाने नहीं देना चाहते। पुष्पा बताती हैं कि एक साल पहले अचानक सीने में दर्द उठा। काफी दिनों तक मलहम के सहारे रहीं। लेकिन फिर बीएमओ ने जबरन उन्हें जिला अस्पताल भेजा। इलाज के बाद रायपुर रेफर कर दिया गया। वहां जाकर उन्हें ब्रेस्ट कैंसर होने के बारे में पता चला।

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उसके बाद से इसका इलाज चल रहा है। इलाज के लिए छुट्टी लिया था। लेकिन, पिछले 7 महीने से वापस अपनी ड्यूटी कर रही हैं। बताते हैं कि वे अब तक करीब 50 डिलिवरी करवा चुकी हैं। पुष्पा तिग्गा को छत्तीसगढ़ की फ्लोरेंस नाइटिंगेल कहना गलत नहीं होगा। वैसे तो पुष्पा तिग्गा जशपुर की रहने वाली हैं। लेकिन 2007 में ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजिका के रूप में सुकमा जिले के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित डब्बा इलाके में इनकी ड्यूटी लगी।

पुष्पा तिग्गा बताती हैं कि जब उन्होंने ड्यूटी ज्वाइन किया था तब कुन्ना इलाके की हालत बहुत खराब थी। सिर पर टीके का डब्बा और दवाई रखकर 10 किलोमीटर पैदल पहाड़ी चढ़कर जाना पड़ता था। यहां से बस पकड़ने या दवाई लाने के लिए 16 किलोमीटर साइकिल चलाकर जाना पड़ता था। आज भी कुकानार साइकिल पर ही आना-जाना करती हैं। मुझे यहां काफी अच्छा लगता है। पुष्पा कहती हैं कि कुन्ना के लोग मेरे लिए काफी मायने रखते हैं। कई बार तबियत खराब होने के कारण मेरा ट्रांसफर करने की बात कही गई, लेकिन मैंने मना कर दिया।

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