छत्तीसगढ़: Rajnandgaon में मशरूम की खेती कर जिंदगी संवार रहे पूर्व नक्सली

जो लोग कभी आतंक की खेती किया करते थे वो आज मशरूम की फसल उगा रहे हैं। जी हां, छत्तीसगढ़ के जंगलों में लाल आतंक के बीज बोने वाले नक्सली, आज मशरूम की खेती कर रहे हैं।

Rajnandgaon

छत्तीसगढ़ के जंगलों में लाल आतंक के बीज बोने वाले नक्सली, आज मशरूम की खेती कर रहे हैं।

जो लोग कभी आतंक की खेती किया करते थे वो आज मशरूम की फसल उगा रहे हैं। जी हां, छत्तीसगढ़ के Rajnandgaon के जंगलों में लाल आतंक के बीज बोने वाले नक्सली, आज मशरूम की खेती कर रहे हैं। हिंसा और खून-खराबा का खेल खेलते-खेलते एक दिन इनका इस खूनी खेल से मोह भंग हुआ और बंदूक छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।

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जो लोग कभी आतंक की खेती किया करते थे वो आज मशरूम की फसल उगा रहे।

कम उम्र में नक्सलियों के साथ बंदूक थामने वाले इन लोगों ने जीवन जीने के लिए कोई और तरीका सीखा ही नहीं था। सवाल यह था कि आत्मसमर्पण के बाद जीवन की गाड़ी चलाने के लिए क्या करें। राज्य सरकार की आत्मसमर्पण नीति ने इन्हें एक राह दिखाई और आज ये लोग अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मसम्मान की जिंदगी जी रहे हैं। दरअसल, यहां हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव (Rajnandgaon) जिले के उन पूर्व नक्सलियों की, जिन्होंने आत्मसमर्पण के बाद मशरूम उत्पादन के जरिए अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दी है।

इस काम में पुलिस विभाग और Rajnandgaon का वन विभाग उनकी पूरी मदद कर रहा है। उन्हें इस काम में काफी फायदा भी मिल रहा है। खास बात यह है कि इनके द्वारा उगाए जाने वाले मशरुम को बेचने के लिए इन्हें बाजार तक भी लाना नहीं पड़ रहा है। क्योंकि फसल के तैयार होते ही स्टॉफ के लोग खुद ही उत्पादन वाली जगह से इसे हाथों हाथ खरीद ले रहे हैं। इस तरह मुख्यधारा में लौट कर सरेंडर नक्सलियों को बिना भेदभाव का सामना किए सम्मान वाला काम मिल रहा है।

साथ ही इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है। यह सरकार और Rajnandgaon पुलिस प्रशासन की कोशिशों के साथ-साथ उन लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम है जिन्होंने उस खून-खराबे की जिंदगी के छोड़ कर मुख्यधारा में वापस आने का फैसला किया और आत्मसमर्पण के बाद अपनी मेहनत के बूते आज एक सम्मान की जिंदगी जी रहे हैं।

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