तेजी से दौड़ रही विकास की रेल, बेपटरी हो रहा नक्सलियों का खेल

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल गतिविधियां में पिछले कुछ सालों में लगातार उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। बीते सालों में केंद्र सरकार द्वारा नक्सलियों के खिलाफ चलाई जा रही बहुआयामी रणनीति का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है।

Naxalites

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल गतिविधियों में पिछले कुछ सालों में लगातार उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। बीते सालों में केंद्र सरकार द्वारा नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ चलाई जा रही बहुआयामी रणनीति का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है। नतीजा ये है कि अब नक्सल प्रभावित क्षेत्र पहले के मुकाबले काफी सिमट गए हैं।

लाल आतंक वाले इलाकों में हिंसक गतिविधियों में आई गिरावट में निश्चित रूप से शानदार इंटेलिजेंस इनपुट और सुरक्षाबलों द्वारा किए जा रहे ठोस एवं प्रतिबद्ध प्रयास की अहम भूमिका है। लेकिन बड़ा सच ये भी है कि जो सफलता मिली है उसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति, स्पष्ट दृष्टिकोण और केंद्र द्वारा सतत चलाई जा रही नीतियों के बेहतरीन क्रियान्वयन की भूमिका भी उतनी ही अहम है। दीर्घकालिक सुधारों और चिरस्थायी प्रभाव के लिए बनाई गई एक ऐसी नीति जिसमें विकास कार्य और सुरक्षाबल कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहे हैं।

सुरक्षा बल और उनके प्रयास सिक्के का केवल एक पहलू हैं। अकेले वे कभी भी जमीनी स्तर पर वांछित प्रभाव नहीं डाल सकते हैं। नक्सल प्रभावित राज्यों में सरकार द्वारा शुरू किए गए विकास कार्य सुरक्षा बलों के लिए बेहद मददगार साबित हुए हैं। भविष्य के लिए एक आशावादी सोच को धीरे-धीरे इन विकासपरक पहलों से बल मिल रहा है।

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विकास के प्रयास बहुस्तरीय हैं और इनका उद्देश्य स्थानीय लोगों को उनके जीवन के हर क्षेत्र में लाभान्वित करना है। पिछले कुछ वर्षों में केंद्र द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में राज्य सरकार की विभिन्न विकास परियोजनाओं जैसे कौशल विकास योजना, सड़क विकास, शिक्षा के लिए विद्युतीकरण, वित्तीय समावेशन, स्वास्थ्य योजनाएं, मोबाइल एंबुलेंस से लेकर मोबाइल टावरों और संचार की सुविधाओं की पहुंच को मदद मुहैया कराना एक जागरूक और निरंतर प्रयास का नतीजा है।

इस तरह के विकास ने एक से अधिक उद्देश्यों को पूरा किया है। यह स्थानीय लोगों, विशेष रूप से आदिवासी और दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन में बहुत सुधार ला रहा है। जीवन की गुणवत्ता और बेहतर भविष्य की संभावनाओं में यह सुधार ना सिर्फ ग्रामीणों की नक्सलियों के गलत प्रचार और अभियानों से बेहतर तरीके से निपटने में मदद करता है, बल्कि इसने बड़ी संख्या में नक्सल कैडर को मुख्यधारा में लौटने के लिए भी प्रोत्साहित किया है।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के संजीदा क्रियान्वयन से होता है। साथ ही, इसमें केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अलग-अलग योजनाओं के लिए समुचित फंड उपलब्ध करना भी खासा महत्वपूर्ण रोल निभाता है। मौजूदा योजनाओं के अलावा, केंद्र सरकार ने 3000 करोड़ रुपये के तीन साल के परिव्यय (2017-18 से 2019-20 तक) के साथ एक विशेष केंद्रीय सहायता (SCA) योजना को भी मंजूरी दी है। SCA के तहत यह बजटीय प्रावधान सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित 35 जिलों में विकास कार्यों के लिए किया गया है। सीधे शब्दों में कहें तो यह योजना सुनिश्चित करती है कि इन 35 जिलों में से प्रत्येक को प्रति वर्ष 30 करोड़ रुपये की सुनिश्चित राशि मिले। यह फंड इन क्षेत्रों में विशेष विकास परियोजनाओं के लिए है। साथ ही यह इन जिलों में विभिन्न राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं से आने वाले धन के अतिरिक्त है।

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नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों को इन श्रेणियों के तहत समझा जा सकता है:

1) सड़कों का निर्माण: सरकार की सड़क निर्माण योजना के अंतर्गत 8585 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 8 राज्यों में 5422 किलोमीटर की सड़कों के निर्माण और नक्सल प्रभावित प्रभावित 24 जिलों में 8 पुलों के निर्माण की परिकल्पना की गई है। अब तक 4720 किलोमीटर की सड़क और 3 पुलों का निर्माण हो चुका है। इनमें से पिछले 5 वर्षों में 3216 करोड़ रुपये की लागत से 1796 किलोमीटर की सड़कें सबसे खतरनाक इलाकों में बनकर तैयार हुई हैं।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के 44 जिलों के लिए सड़क संपर्क परियोजना के तहत, केंद्र ने कुल 11,725 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 5412 किलोमीटर सड़क और 126 पुलों के निर्माण को मंजूरी दी। इनमें से लगभग 4350 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली 4350 किलोमीटर की सड़क को एक सशक्त मंत्रालयी समिति ने पहले ही मंजूरी दे दी है।

2) मोबाइल कनेक्टिविटी: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास और सुरक्षा के लिए सड़कें जितनी महत्वपूर्ण हैं, संचार सुविधाएं भी उतनी ही जरूरी हैं। पिछले 5 वर्षों में लगभग 2500 मोबाइल टॉवर लगाए गए हैं। मई 2018 में केंद्र सरकार ने कार्यक्रम के दूसरे चरण को मंजूरी दे दी, जिसके तहत 10 राज्यों के 96 नक्सल हिंसा प्रभावित जिलों में 4000 से अधिक मोबाइल टॉवर लगाए जाएंगे। इसकी अनुमानित लागत 7350 करोड़ रुपये।

3) कौशल विकास: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MOSDE) ने नक्सल हिंसा से प्रभावित 47 जिलों में 408 करोड़ रुपये की लागत से 47 ITI और 68 कौशल विकास केंद्रों (SDC) की स्थापना की योजना बनाई। इसके तहत अब तक 21 आईटीआई और 55 कौशल विकास केंद्रों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।

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4) शिक्षा: नक्सल हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित जिलों में केंद्रीय विद्यालय  और जवाहर नवोदय विद्यालय खोलने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की गई थी। 11 सबसे अधिक प्रभावित जिलों में से 7 में अब केंद्रीय विद्यालय सुचारू रूप से चल रहे हैं। शेष चार जिलों के लिए भी प्रस्ताव पाइपलाइन में हैं और जल्द ही इसे मंजूरी मिलने की संभावना है। इसी तरह 6 नए जवाहर नवोदय विद्यालयों की ना सिर्फ निर्माण हुआ बल्कि उनमें पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है।

5) वित्तीय समावेशन: वित्तीय सशक्तिकरण के बिना विकास का कोई भी स्थायी मॉडल संभव नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए बीते कुछ सालों में तेज रफ्तार से बैंक की नई शाखाएं, एटीएम और डाकघर खोले गए हैं। नक्सल समस्या से सबसे अधिक प्रभावित 32 जिलों के लिए मंजूर किए गए 1788 डाकघरों में से करीब 1500 पिछले दो वर्षों में चालू हो गए हैं। अप्रैल 2015 से अगस्त 2018 तक लगभग 40 महीनों की अवधि में बैंक की 600 से नई शाखाएं खोली गई हैं। साथ ही 30 प्रभावित जिलों में लगभग 1000 एटीएम स्थापित किए गए हैं। इस साल इन 30 नक्सल प्रभावित जिलों में बैंकों की 114 नई शाखाएं और 26 एटीएम खुले हैं।

6) पिछले साल नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास और बुनियादी ढांचे के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए एक और महत्वपूर्ण प्रयास तब सफल हुआ जब सरकार ने गृह मंत्रालय के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए वन-भूमि के डायवर्जन के लिए 5 हेक्टेयर की सीमा को बढ़ाकर 40 हेक्टेयर तक कर दिया। नए दिशा-निर्देशों के तहत अब 40 हेक्टेयर तक की वन-भूमि के डायवर्जन के लिए मंजूरी का प्रस्ताव केंद्र को भेजने की आवश्यकता नहीं है। इसे राज्य स्तर की समिति द्वारा ही अनुमोदित किया जा सकता है। इस फैसले से आमतौर पर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं और आधारभूत ढांचे के निर्माण में आने वाली अड़चनों की वजह से होने वाली देरी खत्म होने की उम्मीद है।

ऐसे में, वह दिन बहुत दूर नहीं जब नक्सल प्रभावित इलाकों में हालात पूरी तरह सामान्य होते नजर आएंगे। इस क्रमिक बदलाव का श्रेय इन इलाकों में हो रहे विकास कार्यों के साथ ही साथ प्रशासनिक पहलों को भी जाता है। और हां, इस पूरी कवायद में बराबर का योगदान सुरक्षा बलों का भी है जो शांति बहाली और माहौल को सुरक्षित बनाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ डटे हुए हैं।

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