नक्सल प्रभावित सुकमा के इन गांवों में 13 साल बाद खुले स्कूल, दहशत के आगे जीत है

13 साल से इस इलाके में स्कूल बंद पड़े थे। नक्सलियों ने भारी तबाही मचाई थी। अब सूरत बदलने लगी है। पढ़ने के लिए बच्चों को दूसरी जगह नहीं जाना होगा।

Naxal Hit Area

नक्सल प्रभावित सुकमा में 13 साल बाद दोबारा खुले स्कूल

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित (Naxal Hit Area) सुकमा जिले के दूर-दराज के गांवों में 13 साल बाद स्कूलों को खोला गया। बस्तर क्षेत्र के अतिसंवेदनशील इलाके जगरगुंडा में 13 सालों से बंद पड़े हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों को 24 जून को फिर से खोल दिया गया। पहले दिन बड़ी संख्या में विद्यार्थी भी पहुंचे। इन स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई सुचारू रूप से शुरू हो गई।

इस मौके पर स्कूल भवन का उद्घाटन किया गया और इसके बाद बच्चों को किताबें और पढ़ाई के लिए जरूरी अन्य सामान भी बांटे गए। हायर सेकेंडरी स्कूल, बालक आश्रमशाला, बालक और कन्या छात्रावास के शुभारम्भ से 24 जून को छत्तीसगढ़ के ‘स्कूल चलें हम’ अभियान की शुरुआत की गई।

उल्लेखनीय है कि साल 2006 से पहले जिला मुख्यालय से 98 किलोमीटर दूर बीहड़ों में बसा जगरगुंडा गांव मुख्य वाणिज्यिक केंद्र था। यह सुकमा जिले का सबसे अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र (Naxal Hit Area) है। 13 साल पहले यहां के स्कूल भवन को नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट कर उड़ा दिया था। तब से यहां पढ़ाई नहीं हो रही थी। इस इलाके के सभी स्कूल बंद पड़े थे। लेकिन अब सरकार ने नए सिरे से भवन बनाकर यहां फिर से पढ़ाई शुरू करवाने की पहल की है। दरअसल, साल 2005 में बस्तर के विभिन्न इलाकों में सलवा जुडूम के दौरान बौखलाए नक्सलियों ने गांव के स्कूल और अन्य सरकारी भवन तबाह कर दिया था।

नक्सलियों द्वारा सरकारी भवनों को क्षतिग्रस्त करने की मुख्य वजह इन भवनों में सुरक्षा बलों की तैनाती थी। तब गांव वालों की सुरक्षा के लिए उन्हें राहत शिविरों में लाया गया था। नक्सलियों ने इस इलाके (Naxal Hit Area) को जिला मुख्यालय और अन्य क्षेत्रों से जोड़ने वाली सड़कें भी तबाह कर दी थीं। तब से जगरगुंडा का इलाका बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया था। 13 सालों से यहां के बच्चे या तो अन्य किसी इलाके के पोर्टाकेबिन स्कूलों में रहकर पढ़ने को मजबूर थे या स्कूल और पढ़ाई से ही वंचित थे।

प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार, जगरगुंडा ऐसा क्षेत्र है जहां अब भी राहत शिविर का संचालन किया जा रहा है। यहां के लगभग 1200 परिवार अभी भी राहत शिविरों में रहते हैं। सरकार और प्रशासन इस क्षेत्र में विकास की गाड़ी को गति देने के लिए इसे सड़कों से जोड़ रही है। इस क्षेत्र को सड़कों द्वारा दंतेवाड़ा और सुकमा के दोरनापाल से जोड़ा जा रहा है। वहीं स्कूलों के खुल जाने से इस इलाके में अब नई पीढ़ी शिक्षा से जुड़ेगी। सरकार के इस कदम से धुर नक्सल प्रभावित इलाके के बच्चों को अब आगे की पढ़ाई से वंचित नहीं होना पड़ेगा। अच्छे बुरे की समझ नई पीढ़ी को होगी और वे नक्सलियों की सच्चाई जान सकेंगे।

अशिक्षा की वजह से अब तक जो गांव वाले नक्सलियों के बहकावे में आ जाते थे, वे अब लाल आतंक का असली चेहरा देख पाएंगे और उसका नापाक मकसद समझ पाएंगे। सरकार और प्रशासन की पूरी कोशिश है कि नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में बेहतरी लाई जा सके। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी के अलावा जनता को हर तरह की मूलभूत सुविधाएं मिलें। दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहे यहां के लोग जीवन की नई रोशनी को महसूस कर सकें। इसके लिए सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए विभिन्न योजनाओं के अलावा इन इलाकों में स्थानीय स्तर पर भी लोगों की समस्याओं का विशेष ध्यान रख रही है।

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