आत्मनिर्भर होतीं नक्सल प्रभावित इलाकों की महिलाएं, पढ़िए इनके सशक्त होने की कहानी…

सखी मंडल से जुड़ने के बाद इन महिलाओं में न केवल निर्भीकता आई है, बल्कि समूह को ये अपनी ताकत भी समझती हैं।

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झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशनल सोसाइटी से बदलता ग्रामीण महिलाओं का जीवन

नक्सल प्रभावित झारखंड के लातेहार जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर गारू प्रखंड में रहने वाली सविता देवी ने झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशनल सोसाइटी (जेएसएलपीएस) की मदद से सामुदायिक पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है। वह अपने गांव और समूह की कई खबरें लिख चुकी हैं। अब उन्हें फोटो खींचना भी आ गया है। जिसकी खबर लिखती हैं, उसकी फोटो भी खींचती हैं। सविता देवी की तरह जिले में आठ से ज्यादा महिलाएं अब गांव से निकलकर वेबसाइट और यू-ट्यूब जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए लोगों को अपने संघर्ष की गाथा सुना रही हैं। महिलाएं अपने आसपास के वे मुद्दे और समस्याएं उठाती हैं, जिन तक आमतौर पर मुख्यधारा के पत्रकार नहीं पहुंच पाते हैं।

नक्सल प्रभावित क्षेत्र में महिलाओं को एक समय घर से बाहर कदम निकलने से पहले कई बार सोचना पड़ता था, लेकिन सखी मंडल से जुड़ने के बाद इन महिलाओं में न केवल निर्भीकता आई है, बल्कि समूह को ये अपनी ताकत भी समझती हैं। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशनल सोसाइटी (जेएसएलपीएस) झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग की एक इकाई है, जो महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करती है। ग्रामीण विकास विभाग के सहयोग से झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी राज्य के 24 जिलों में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहा है। आजीविका मिशन के तहत ग्रामीण महिलाओं को सखी मंडल से जोड़कर उन्हें सप्ताह में 10 रुपए बचत करना सिखाया जाता है और हर बैठक में इन्हें सरकार की तमाम योजनाओं की जानकारी दी जाती है।

इन महिलाओं को समूह से लोन देकर रोजगार करने के लिए प्रेरित किया जाता है। छोटे-छोटे रोजगार से जब इनकी आमदनी होने लगती है तो इनका आत्मविश्वास बढ़ता है और धीरे-धीरे ये दूसरी महिलाओं को भी जागरूक करने लगती हैं। सखी मंडल से राज्य की 16 लाख से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं जुड़ी हैं। इनमें से लाखों महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह से लोन लेकर खुद का व्यवसाय शुरू किया है। झारखंड के लातेहार जैसे नक्सल प्रभावित जिले कुछ साल पहले तक नक्सली गतिविधियों की वजह से ज्यादा चर्चा में रहते थे। लेकिन आज यहां महिलाएं जागरुकता की ओर कदम बढ़ा रही हैं और विकास की नई कहानी लिख रही हैं। इसी के तरह डिजिटल लिटरेसी कार्यक्रम ने इन महिलाओं को न सिर्फ जागरुक किया है, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाया है।

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महिलाएं मोबाइल, टैबलेट और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अपनी आमदनी का जरिया बना रही हैं। साथ ही इन्हीं साधनों के जरिए वे अपने समूह और गांव की सफलता की कहानियां भी गांव के बाहर लोगों तक पहुंचा रही हैं। यही वजह है कि इस नक्सल प्रभावित जिले के ग्रामीण इलाकों के लोग इन दिनों अखबार, मैगजीन से लेकर मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग साइट तक पर देश-दुनिया की खबरें देख और पढ़ रहे हैं। इन खबरों में खेत-खलिहान से लेकर उनके लिए चलाई जा रही सरकार की योजनाओं से लेकर अंतरिक्ष तक की गतिविधियां शामिल हैं। इनमें रूढ़िवादी मान्यताओं और सामाजिक विसंगतियों से बाहर निकलने के लिए जागरुक और प्रेरित करने वाली खबरें भी हैं। इस बदलाव का वाहक कुछ पत्रकार दीदियां बनी हैं।

सखी मंडल से जुड़ी सैकड़ों महिलाएं कम्युनिटी जर्नलिस्ट यानी सामुदायिक पत्रकार बनकर अपने गांव की आवाज बन गई हैं। ये अपने समूह और गांव की वह कहानियां लोगों तक पहुंचाती हैं जो अब तक सुर्खियां नहीं बनी थीं। जेएसएलपीएस की ओर से दिए गए प्रशिक्षण और आर्थिक मदद की वजह से ग्रामीण इलाकों में महिलाएं अब आत्मनिर्भर हो रही हैं। अब ये बैंक जाती हैं, समूह के साथ-साथ प्रखंड कार्यालय की बैठक में हिस्सा लेती हैं। जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकान का संचालन भी करती हैं। कभी महिलाएं सरकारी योजनाओं से कोसों दूर रहती थीं, लेकिन आज ये सरकारी योजनाओं की जानकारी लेकर सशक्त हो रही हैं। सरकारी योजनाओं के अलावा स्थानीय स्तर पर हो रहे इस तरह के प्रयास से ग्रामीण महिलाओं में जागरुकता और आत्मनिर्भरता बढ़ रही है।

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