जमीन की ‘सुपर-वुमन’ नक्सली इलाके में जगा रही हैं शिक्षा की अलख

Naxal

नक्सल (Naxal) प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां बालिकाओं की संख्या कम थी। उन्होंने वहां लड़कियों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए।

झारखंड का लातेहार जिला अति नक्सल (Naxal) प्रभावित है। यहां के लोग सालों से लाल आतंक के साए में रह रहे हैं। नक्सलियों की दहशत की वजह से विकास कार्यों में काफी बाधाएं आती हैं। यहां के युवाओं और बच्चों को शिक्षा पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। शिक्षा पाने के इस संघर्ष में इन बच्चों की मार्गदर्शक हैं शिक्षिका मनीषा धवन।

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छात्राओं के साथ मनीषा धवन।

नक्सल (Naxal) प्रभावित लातेहार जिले में चंदवा प्रखंड निवासी विनोद और हीरा धवन की बेटी हैं मनीषा धवन। मनीषा कहती हैं विपरीत हालात से संघर्ष कर पहले खुद पढ़ाई की और पढ़ाई के बाद अपने इलाके की लड़कियों को शिक्षित करने के लिए नौकरी के रूप में शिक्षक के पेशे को ही चुना। साल 2004 से लेकर अगस्त, 2019 तक माध्यमिक शिक्षिका के रूप में लातेहार जिले में पदस्थापित रहीं। इसके बाद अगस्त, 2019 में पब्लिक हाईस्कूल कुजू रामगढ़ में पदस्थापित हो गईं। चार साल पहले उन्होंने राजकीय कृत मध्य विद्यालय चंदवा ज्वॉइन किया।

प्रयास से बढ़ी छात्राओं की संख्या

नक्सल (Naxal) प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां बालिकाओं की संख्या कम थी। उन्होंने वहां लड़कियों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। उन्होंने पहले अभिभावकों को जागरूक किया, शिक्षा का महत्व बताया। बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काफी मेहनत की। परिणामस्वरूप, धीरे-धीरे विद्यालय में बालिकाओं की संख्या बढ़ने लगी। गेरूवागढ़ा गांव की पांच छात्राओं ने स्कूल छोड़ दिया था। उन सभी छात्राओं के घर जाकर छात्राओं और उनके अभिभावकों के साथ काउंसलिग की। साथ ही गांव वालों को छात्राओं को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। नतीजा यह हुआ कि गांव की कई छात्राएं स्कूल जाने लगीं। इसके अलावा उन्होंने कई गांवों में अभियान चलाकर लोगों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। इससे स्कूल में छात्राओं की उपस्थिति 30 फीसद तक बढ़ गई।

मनीषा की ‘प्रश्न पेटी’ हुई काफी लोकप्रिय

शिक्षिका मनीषा ने स्कूल में लड़कियों के लिए एक विशेष कक्षा शुरू किया और उसका नाम ‘प्रश्न पेटी’ रखा। यह पूरे प्रखंड में काफी लोकप्रिय हुआ। ‘प्रश्न पेटी’ में लड़कियों को सामने बुलाकर बात की जाती है। लड़कियों से जवाब पूछने के बाद उन्हें भी प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया जाता है। इससे छात्राओं में झिझक दूर होती है। वह मंच पर आकर अपनी बात रखने और पढ़ाई के अलावा समाजिक दृष्टिकोण में भी रुचि लेने लगती हैं। साथ ही उनके अंदर वक्ता होने, नेतृत्व क्षमता, खिलाड़ी की योग्यता जैसी छुपी हुई प्रतिभा को भी सामने लाने और निखारने का एक मंच मिल जाता है।

छात्राओं के लिए हैं ‘सुपर वुमन’, रूकवाया बाल विवाह

इस धुर नक्सल (Naxal) प्रभावित इलाके की शिक्षिका मनीषा छात्राओं से काफी लगाव रखती हैं। मसलन, उनके घर का माहौल, अभिभावक और घर के अन्य सदस्यों के बारे में जानकारी भी रखती हैं। साल 2017 में हिसरी गांव की छठीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा की शादी उसके अभिभावक करना चाहते थे। शादी की पूरी तैयारी के साथ कार्ड तक बंट गए थे। लेकिन अपनी छात्रा के साथ वह दीवार बनकर खड़ी हो गई। प्रशासन ने भी मामले पर संज्ञान लिया और छात्रा की शादी रुक गई। वह आज आठवीं कक्षा में पढ़ाई कर रही है। ऐसे कई कार्य मनीषा ने किए हैं, जिससे आज की युवा पीढ़ी प्रेरणा लेती है।

विदेशों में भी किया जाता हैं आमंत्रित, जीत चुकी हैं पुरस्कार

2017 में राज्यस्तर पर बेस्ट शिक्षिका का मनीषा को अवार्ड भी मिल चुका है। विदेश में भी कई बार बालिका शिक्षा पर व्याख्यान के लिए आमंत्रित की जा चुकी हैं। साथ ही पुरस्कृत भी की जा चुकी हैं मनीषा को उत्कृष्ट कार्यों के लिए वर्ष 2014 में आयरलैंड डबलिन में अंतरराष्ट्रीय अध्यापक संघ की ओर से अंतरराष्ट्रीय महिला कांफ्रेंस में आमंत्रित किया गया था। इसके बाद वर्ष 2017 में युनेस्को की ओर से बैंकाक में आयोजित सेमिनार में भारत की ओर से ‘बालिका शिक्षा पर चुनौतियां’ पर पक्ष रखने के लिए बुलाया गया था।

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