सरकार और स्थानीय लोगों के प्रयास से नक्सलियों का सफाया, संवर रहा है पारसनाथ

जहां कभी दहशत पलती थी, जहां के जंगलों में नक्सलियों के ट्रेनिंग कैंप हुआ करते थे और जहां टूरिस्ट भी डर के साये में भगवान के दरबार में पूजा किया करते थे… वहां अब शांति, सौहार्द और अहिंसा के फूल खिल रहे हैं

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हालात बदले हैं, विचार बदले हैं और बदला है समां। हुकूमत ने बड़े ऐहतराम से स्वर्ग का अहसास कराने वाली पारसनाथ की फिजाओं को नक्सलियों से मुक्त कराने में अपनी भूमिका निभाई है। जहां कभी दहशत पलती थी, जहां के जंगलों में नक्सलियों के ट्रेनिंग कैंप हुआ करते थे और जहां टूरिस्ट भी डर के साए में भगवान के दरबार में पूजा किया करते थे, वहां अब शांति, सौहार्द और अहिंसा के फूल खिल रहे हैं। पारसनाथ जो जैन धर्मावलंबियों के लिए मक्का सी अहमियत रखता है वहां अब सिर्फ सुकून पल रहा है। सरकार के प्रयासों और आमजन की भागीदारी की वजह से इस इलाके से नक्सलवाद का सफाया हो चुका है। स्थानीय लोगों और टूरिस्ट्स की सुरक्षा को सरकार ने चुनौती के रूप में लिया। जिसका नतीजा है कि आज पारसनाथ पहाड़ की पगडंडियों से स्वर्ग के रास्ते फिर से पल्लवित हो चले हैं।

तीन दशक पहले नक्सलियों ने पसारे थे पांव

पारसनाथ के घने जंगलों का फायदा उठाकर क्रांतिकारी बुद्धिजीवी संघ के बैनर तले अस्सी के दशक में नक्सलियों ने यहां पांव पसारना शुरू किया था। उस दौर में बिहार और झारखंड एक हुआ करते थे। विकास और सत्ता में अधिकार का सपना दिखाकर नक्सलियों ने भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसाया। इस क्षेत्र में शिक्षा की माकूल व्यवस्था नहीं थी। साथ ही बुनियादी सुविधाओं का टोटा था। नक्सलियों ने पारसनाथ की तराई में बसे जोभी गांव को अपना डेरा बनाया। धीरे-धीरे उनका प्रभाव जयनगर, पांडेयडीह, पिपराडीह, धौलकट्ठा, खुखरा और हरलाडीह सहित आस-पास के ग्रामीण इलाकों में फैलता गया। ज्यादातर बेरोजगार युवा इससे जुड़ते चले गए।

उस वक्त रामदयाल महतो, नवीन मांझी सहित कई ऐसे लोग थे जिनकी तूती इस इलाके में बोला करती थी। उसके बाद अजय महतो उर्फ टाइगर का वक्त आया। नक्सलियों ने जैन संस्थाओं से लेवी वसूलना शुरू कर दिया। साथ ही, स्थानीय दुकानदारों से भी पार्टी का सहयोग करने के नाम पर चंदा वसूला जाने लगा। 2012 आते-आते इस इलाके में नक्सल पूरे उफान पर था। मगर अब हालात बदल चुके हैं। टूरिस्ट्स का आना-जाना भी काफी बढ़ा है। जैन समाज के अध्यक्ष राजू जैन बताते हैं कि सरकार ने विकास का काम किया है। मधुबन जो कभी ओपी हुआ करता था, उसे थाने का दर्जा देने के साथ-साथ सुरक्षा और विकास का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। खास अवसरों पर बिजली, पानी, स्वास्थ्य और सुरक्षा की अतिरिक्त व्यवस्था सरकार की ओर से की जाती है।

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पारसनाथ मंदिर

पारसनाथ में पुलिस कैंप की स्थापना

कहते हैं किसी भी विचार का प्रतिकार करने के लिए आपके हाथ में शक्ति के साथ-साथ विकास परक विचारों का समावेश जरूरी है। ताकि विद्रोहियों के स्वर को दबाने के लिए दोनों मंचों पर एक साथ काम किया जा सके। सरकार ने पारसनाथ से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने के लिए दोनों की मोर्चे पर काम करना शुरू किया। पारसनाथ पहाड़ पर पुलिस कैंप का निर्माण कराया गया।

वर्तमान में पारसनाथ की पहाड़ी पर तीन पुलिस कैंप हैं। जो नक्सलियों की हर मूवमेंट पर नजर रखते हैं। साथ ही पारसनाथ की तलहटी में बसे मधुबन की एंट्री-प्वाइंट कल्याण निकेतन में भी एक पुलिस कैंप बनाया गया है। इसके अलावा पारसनाथ क्षेत्र में नक्सलियों की एंट्री पर लगाम लगाने के लिए हरलाडीह और पिपराडीह गांव में भी पुलिस कैंप की स्थापना की गई है। इतना ही नहीं पहाड़ पर स्थित डाक बंगला के पास हैलीपैड का भी निर्माण किया गया ताकि आपात स्थिति में मदद पहुंचाई जा सके।

पारसनाथ डेवलपमेंट प्लान

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पारसनाथ मंदिर में दर्शन के लिए जाते श्रद्धालु

पारसनाथ इलाके से नक्सलियों को खदेड़ने के लिए पुलिस की तैनाती ही काफी नहीं थी। बल्कि स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल करने की चुनौती भी सरकार के सामने थी। इसके लिए जरूरी था कि उस इलाके में विकास किया जाए। इसलिए सरकार ने पारसनाथ के चारों ओर बसे गांव को आबाद करने के लिए पारसनाथ डेवलपमेंट प्लान तैयार किया। सरकार की ओर से तैयार किए गए डेवलपमेंट प्लान के सकारात्मक नतीजे सामने आने लगे और लोगों का टूटा भरोसा फिर से जिन्दा हो उठा। झारखंड सरकार ने जिला प्रशासन के माध्यम से आस-पास के इलाकों में स्कूल खुलवाए, युवाओं को रोजगार देने की दिशा में कदम बढ़ाया। साथ ही जैन संस्थाओं ने भी सरकार को खुलकर सहयोग दिया।

सेवायतन के ट्रस्टी एमपी अजमेरा बताते हैं कि आज वहां के माहौल में काफी बदलाव आया है। वे बताते हैं कि सिर्फ पुलिस बल रहने से ये मामला सुलझने वाला नहीं था। बल्कि लोगों की सोच को भी बदलना जरूरी था। सरकार ने जब वहां विकास के लिए कदम उठाया तो जैन संस्थाओं ने खुलकर सपोर्ट किया और लोगों को स्किल्ड बनाने में महती भूमिका निभाई। वह कहते हैं एक ऐसा भी वक्त था जब शाम 6 बजे के बाद मधुबन से स्टेशन तक जाने की मनाही थी, क्योंकि लूटपाट की घटनाएं होती थीं। पर अब वहां 24 घंटे टूरिस्ट बेखौफ आते-जाते हैं। पुलिस की मोबाइल वैन हर वक्त तैनात रहती है।

बहरहाल, जहरीली फिजाओं में अब शांति का शंखनाद हो रहा है, मंदिर की घंटियों से पारसनाथ अहिंसा का संदेश दे रहा है। पवित्रता की पगडंडियों पर फिर से मोक्षगामी पथिक आगे बढ़ने लगे हैं। विकास निरंतर ग्राम-स्वराज के करीब है।

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