सफलता की इबारत लिख रहीं नक्सल प्रभावित गांव की महिलाएं

आज एक छोटी सी पहल ने पूरे गांव की तस्वीर बदल दी है। यहां के सैकड़ों परिवार आर्थिक तंगी से उबर कर खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। यह संभव हुआ है गांव की महिलाओं द्वारा शुरू किए गए कुटीर उद्योग से।

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बिहार के गया जिला का अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र इमामगंज का पकरी-गुरिया गांव, एक ऐसा गांव जहां सैंकड़ों परिवार आर्थिक तंगी और गरीबी से जूझ रहे थे। लेकिन आज एक छोटी सी पहल ने पूरे गांव की तस्वीर बदल दी है।

बिहार (Bihar) के गया जिला का अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र इमामगंज का पकरी-गुरिया गांव, एक ऐसा गांव जहां सैंकड़ों परिवार आर्थिक तंगी और गरीबी से जूझ रहे थे। लेकिन आज एक छोटी सी पहल ने पूरे गांव की तस्वीर बदल दी है। यहां के सैकड़ों परिवार आर्थिक तंगी से उबर कर खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। यह संभव हुआ है गांव की महिलाओं द्वारा शुरू किए गए कुटीर उद्योग से।

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दरअसल, जीविका की पहल से वर्ष 2013 में 12 महिलाओं का समूह बनाया गया। इस समूह का नाम शिव गुरु जीविका स्वयं सहायता समूह नाम रखा गया। समूह की महिलाएं अपने खर्च में कटौती कर हर महीने साठ रुपये बचत करने लगीं। कुछ ही दिनों में समूह के पास पचास हजार रुपये जमा हो गए। उन्होंने उन पैसों को कुटीर उद्योग में लगाया। आज उनके बनाए उत्पाद की मांग बिहार (Bihar), झारखंड सहित अन्य राज्यों के कई शहरों में है। जीविका द्वारा महिलाओं को विभिन्न तरह के अचार, चिप्स, पापड़ आदि सामग्री बनाने का प्रशिक्षण पटना में दिया गया। महिलाएं गांव आकर सामूहिक रूप से विभिन्न प्रकार की सामग्री बनाने लगीं।

कुटीर उद्योग से समूह की महिलाएं बेहद खुश हैं। समूह की अध्यक्ष रेणु गुप्ता बताती हैं, ‘आम, अमड़ा, नींबू, बसकरैल, आंवला, मिक्स व खट्टा-मीठा अचार बनाते हैं। इसके अलावा आलू चिप्स, पापड़ भी बनते हैं। इसे बनाने में 120 रुपये प्रति किलो लागत आती है। इसकी बिक्री दो सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से होती है। यानि एक किलो बिक्री होने पर 80 रुपये का मुनाफा। सीजन के अनुसार, समूह की महिलाओं द्वारा प्रतिदिन सौ किलो से ज्यादा अचार तैयार किया जाता है।’ समूह की महिलाओं द्वारा बनाई गई विभिन्न किस्म के आचार, पापर, चिप्स की बिक्री गया, पटना, रांची, कोलकाता में होती है। कोलकाता में सबसे ज्यादा मांग है। यहां सप्ताह में कभी दो तो कभी तीन बार विभिन्न किस्म के बने आचार जरूरत के अनुसार भेजे जाते हैं।

नक्सल क्षेत्र के गांवों की महिला और पुरुष दिनभर खेत में काम करते थे। खाना बनाने के लिए जंगल से लकड़ी लाते थे। माता-पिता के सहयोग में बच्चे भी लगे रहते थे। इसके कारण बच्चे अशिक्षित रह जा रहे थे। आज सब कुछ बदल चुका है। कुटीर उद्योग ने रहने के तौर-तरीके बदल दिए हैं। उनके बच्चे भी अच्छी शिक्षा ले रहे हैं। समूह की सचिव मुन्नी देवी और कोषाध्यक्ष सरिता देवी कहती हैं, ‘गांव में समूह बनने से काफी फायदा हो रहा है। अब किसी की तबियत बिगड़ती है तो इलाज के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ता है। समूह की महिलाएं नहीं जरूरत के अनुसार रुपये इलाज को दे देती हैं।’ आज इस गांव की महिलाएं गांव की गरीबी दूर कर सफलता की नई इबारत लिख रही हैं।

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