सचिन तेंदुलकर: ‘God Of Cricket’ से जुड़ी वो कहानियां जो आपको रोमांचित कर देंगी

Sachin Tendulkar Birthday: ‘God Of Cricket’ आज 46 साल के हो गए। 24 साल तक क्रिकेट की दुनिया में उनका सिक्का चलता रहा। इस दौरान शतकों का शतक भी लगाया।

Sachin Tendulkar

Sachin tendulkar

मास्टर ब्लास्टर, लिटिल मास्टर जैसे तमगों से नवाजे जाने और क्रिकेट प्रेमियों के दिल में भगवान की तरह विराजने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर 46 साल के हो गए हैं। 24 साल तक क्रिकेट जगत पर राज करने वाले सचिन ने इतने रिकॉर्ड्स बनाए हैं, इतने उंचे कीर्तिमान स्थापित किए हैं जिन्हें तोड़ पाना या उसे छू पाना भी बड़े से बड़े क्रिकेटर के लिए ख्वाब सरीखा ही है। आज उनके जन्म पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े दिलचस्प किस्से।

सचिन तेंदुलकर का जन्म 24 अप्रैल, 1973 को मुंबई के राजापुर के सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रमेश तेंदुलकर था और उन्होंने सचिन का नाम अपने फेवरेट म्यूजिक डायरेक्टर सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था। सचिन के बड़े भाई का नाम अजित तेंदुलकर है। क्रिकेट खेलने और सीखने का बढ़ावा सचिन को अजित ने ही दिया। सचिन की शिक्षा शारदा आश्रम विद्या मंदिर से हुई थी। बचपन में उनका ख्वाब एक तेज गेंदबाज बनने का था। सचिन तो तेज गेंदबाज बनने के लिए एमआरएफ पेस फाउंडेशन तक पहुंचे थे। लेकिन वहां तेज गेंदबाजी के कोच और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डेनिस लिली ने उन्हें सलाह दी कि वो बल्लेबाजी पर ध्यान दें। गुरू रमाकांत आचरेकर के आदेश पर बहुत कम उम्र में ही सचिन ने क्रिकेट के गुर सीखने शुरू कर दिए थे और क्रिकेट की दुनिया में सचिन का नाम आग की तरह से तब फैल गया जब 1988 में स्कूल टुर्नामेंट हैरिस शील्ड के एक मैच में उन्होंने विनोद कांबली के साथ 664 रन की एक भागीदारी निभा कर रिकॉर्ड स्थापित किया। ऐसा बताया जाता है कि इस पार्टनशिप के बाद ऑपोजिट टीम ने मैच खेलने से ही मना कर दिया था। इस मैच में सचिन ने 320 रन बनाए और पूरी सीरीज में उन्होंने 1000 से भी ज्यादा रन बनाए थे।

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गीली गेंदों से क्यों प्रैक्टिस करते थे सचिन?

शायद सचिन तेंदुलकर को बचपन में ही इस बात का एहसास हो गया था कि कि बड़े होकर उन्हें दुनिया के दिग्गज तेज गेंदबाजों का सामना करना है। अब गली क्रिकेट में कहां से आते ऐसे तेज गेंदबाज। तो प्रैक्टिस के लिए वो अपने दोस्तों से टेनिस बॉल को पानी में भींगोने के लिए कहते थे। होता क्या था उससे कि बॉल काफी तेजी से आती थी और उस पर शॉट खेलने में बाजुओं पर भी काफी जोर आता था, क्योंकि पानी में भींगने के बाद बॉल कुछ हैवी भी हो जाती थी। तो फास्ट बॉलिंग खेलने की प्रैक्टिस हो जाती थी और शोल्डर्स भी मजबूत होते थे।

ऐसे हुआ गुरु आचरेकर से सामना

सचिन तेंदुलकर को सबसे पहले क्रिकेट का मक्का मदीना समझे जाने वाले मुंबई के शिवाजी पार्क में उनके भाई अजीत लेकर गए थे। वहां पर बहुत ही लेजेंड्री क्रिकेट कोच रमाकांत आचरेकर बच्चों को क्रिकेट सिखाते थे। जब अजीत ने रमाकांत जी से अनुरोध किया कि मेरे भाई को क्रिकेट सिखाएं तो पहली बात तो गुरूजी ने ये कही कि बच्चे को कहो कल से पाजामा पहनकर आए, पूरी पतलून पहनकर। ये क्रिकेट निक्कर पहनकर खेलने वाला गेम नहीं है। फिर अगले दिन से ही सचिन तेंदुलकर फुल ड्रेस में शिवाजी पार्क आने लगे। लेकिन इस फुल ड्रेस की भी एक अजब मजबूरी थी। मजबूरी यह थी कि एक ही सफेद कमीज और पतलून थी सचिन के पास। सवेरे आकर जब प्रैक्टिस करते तो कपड़े बुरी तरह से गंदे हो जाते फिर वापस जाकर वो कपड़े धुलते और शाम को जब सचिन दोबारा प्रैक्टिस करने आते तो फिर उसी ड्रेस में आते थे। होता ये था कि कपड़े बाहर से तो सूख जाते थे लेकिन जैसा हम सबको मालूम है अंदर जेबें वगैरह इतनी जल्दी नहीं सूखतीं, तो जेबें गीली रह जाती थीं और सचिन तेंदुलकर इसलिए ही कभी भी क्रिकेट के मैदान पर जेब में हाथ नहीं डाल पाते थे और ये आदत अगर आपने ध्यान दिया हो तो उनकी बाद तक बनी रही। क्रिकेट स्टेडियम में किसी ने भी सचिन तेंदुलकर को जेब में हाथ डालकर कभी घूमते हुए नहीं देखा।

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कहानी 13 सिक्कों की

बहुत ही दिलचस्प किस्सा है। बात तब की है जब वो शिवाजी पार्क में गुरुदेव रमाकांत आचरेकर से क्रिकेट सीखने जाते थे। सचिन के भाई अजीत के कहने पर रमाकांत आचरेकर ने सचिन को क्रिकेट सिखाना तो शुरू कर दिया लेकिन शुरूआती हफ्तों में वो सचिन से कोई खास इंप्रेस नहीं हो पाए थे। उन्होंने अजीत को यह बात बता भी दी कि भई ये जो तुम्हारा छोटा भाई है, ये ज्यादा चलेगा नहीं क्रिकेट की दुनिया में। तुम लेकर आए हो तो कोशिश कर रहे हैं, सिखा रहे हैं। अजीत का मन बड़ा दुखी हुआ। उन्होंने कहा, गुरूजी ये आपके दबाव में अच्छा नहीं खेल पाता। इस पर बड़ा जबरदस्त परफॉर्मेंस प्रेशर रहता है। आप ऐसा करिए इसको थोड़ा दूर से ऑब्जर्व करिए। सचिन को नहीं मालूम पड़े कि आप उसका खेल देख रहे हैं। मेरा भाई खेलता अच्छा है, आप स्वयं मान जाएंगे। गुरुजी ने अजीत की बात रखते हुए एक दो दिन थोड़ा दूर से आब्जर्व किया सचिन को और उन्हें लगा कि अजीत बात तो सही कह रहा है। लड़के में दम तो है।

जब रमाकांत जी ने सोच लिया कि सचिन को एक बल्लेबाज की तरह तैयार करना है, तो उन्होंने एक नायाब तरीका खोज निकाला कि कैसे उसको बेहतर बैट्समैन बनाएं। क्या करते रमाकांत जी कि एक सिक्का रख देते एक रुपए का स्टंप्स पर और बॉलर से कहते कि आओ भइया, सचिन को आउट कर लोगे तो सिक्का तुम्हारा और सचिन को चैलेंज करते कि अगर तुम नॉट आउट रहे, नाबाद रहे तो ये सिक्का लेकर घर जा सकते हो। तो बस, सचिन ने इसको एक चैलेंज की तरह लिया और ज्यादा से ज्यादा सिक्के इकट्ठा करने की ठान ली। आज भी बचपन के वो तेरह सिक्के उन्होंने बहुत संभाल के रखे हुए हैं। इसके पीछे उनकी बचपन का यादें भी हैं, पहली कमाई आप कह सकते हैं, गुरु के प्रति श्रद्धा भाव भी। इसके बाद ही वो लेजेंड्री मैच हुआ जिसमें विनोद कांबली के साथ मिलकर उन्होंने 664 रनों की पार्टनरशिप की। फिर फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू हुआ। रणजी दिलीप और ईरानी ट्रॉफी, हर टुर्नामेंट में अपने पहले ही मैच में सचिन तेंदुलकर ने शतक ठोका। ऐसा करने वाले भारत के वो एकमात्र बैट्समैन हैं और यह रिकॉर्ड आज तक कायम है।

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उस मैच में पूरा स्टेडियम क्यों हो गया था खाली?

क्रिकेट प्रेमियों के बीच सचिन को लेकर जबरदस्त दीवानगी थी। ऐसे ही एक टेस्ट मैच के दौरान बहुत अजीबो-गरीब घटना पेश आई। मैच के शुरुआती दो दिन बहुत ही रोमांचक थे, बड़ा टाइट कंटेस्ट था बैट और बॉल के बीच। खचाखच भरा रहता था स्टेडियम। हजारों की संख्या में क्रिकेट प्रेमी स्टेडियम के बाहर खड़े रहते थे क्योंकि अंदर जाने की जगह ही नहीं मिलती थी। फिर अचानक तीसरे दिन सुबह ऐसा क्या हुआ कि एक घंटे में स्टेडियम जैसे पूरा खाली हो गया। सारे दर्शक लौट गए। बहुत ही मजेदार किस्सा है। उस मैच में जो अंपायर थे सुधीर आसनानी वो उस किस्से को आज भी याद करते हैं, बताते हैं कि तीसरे दिन सुबह सचिन तेंदुलकर मैदान पर उतरने वाले थे बैटिंग करने के लिए। उस दिन तो अजब ही उन्माद था स्टेडियम में। स्टेडियम के अंदर तो तिल रखने की जगह थी नहीं, बाहर भी 20 से 30 हजार लोगों की भीड़ मौजूद थी। सचिन तेंदुलकर के लिए लोगों का उन्माद ही कुछ ऐसा था, उनकी बैटिंग के लिए दीवानगी ही कुछ ऐसी थी। तो तीसरे दिन सुबह जब बैटिंग के लिए उतरे सचिन तेंदुलकर तो कुंबले की गेंद पर उन्होंने एक चौका मारा और उसके बाद क्लीन बोल्ड, आउट हो गए।

स्टेडियम में सुई भी गिरती तो आवाज होती, ऐसा सन्नाटा छा गया। सब एकदम चुप। एक घंटे के भीतर पूरा स्टेडियम खाली हो गया। अंपायर आसनानी बताते हैं कि मंजर कुछ ऐसा था, जैसे पूरे स्टेडियम में किसी ने झाड़ू लगा दी हो, कोई नजर नहीं आता था। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसी दीवानगी होती थी सचिन तेंदुलकर के लिए जब वो बैटिंग के लिए उतरते थे। सुधीर आसनानी के मुताबिक, उन्होंने ऐसा मंजर अपने अंपायरिंग करियर में न पहले कभी देखा था न उसके बाद कभी देखा। और क्यों न होती सचिन के लिए इस तरह की दीवानगी, सर डॉन ब्रैडमैन ने तेंदुलकर की तारीफ करते हुए एक बार कहा था कि सिर्फ तेंदुलकर ही ऐसे हैं जो उन्हें अपने बेस्ट डेज़ की याद दिलाते हैं।

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सचिन ने अपने करियर में कई रिकॉर्ड बनाए। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सौ शतक, सबसे ज्यादा वन डे मैच उन्होंने खेले 463, वन डे में सबसे ज्यादा रन उन्होंने बनाए। वन डे मुकाबलों में सबसे ज्यादा 49 सेंचुरीज उन्होंने ठोकीं और क्रिकेट में सबसे ज्यादा मैन ऑफ द सीरीज, मैन ऑफ द मैच इत्यादि जीतने का रिकॉर्ड भी सचिन तेंदुलकर के ही नाम है।

हर्षा भोगले की नजर से सचिन

सचिन ने अपना पहला फर्स्ट क्लास मैच मुंबई के लिए 14 साल की उम्र में खेला था। 16 साल की उम्र में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की शुरूआत हो गई उनकी। फिर एक महीने बाद पाकिस्तान के खिलाफ वनडे डेब्यू भी हो गया। हर्षा भोगले ने एक इंटरव्यू देते वक्त कहा था कि 1990s की शुरुआत में इंडियन इकोनॉमी भी खुल रही थी और हमें उस वक्त जरूरत थी खेल की दुनिया में भी एक आइकॉन की, एक सुपरस्टार की। तो कंडीशन्स रेडीमेड थीं और स्टार भी तैयार था। हर्षा भोगले आगे बताते हैं कि कैसे धीरे-धीरे सचिन 2000 के दशक में खुलने लगे और बोलने लगे और फिर उनकी समझ में आया कि दरअसल तेंदुलकर कितने बड़े जीनियस हैं, कितने जबरदस्त खिलाड़ी हैं। हर्षा भोगले का मानना है कि सचिन की ग्रेटनेस सिर्फ जो वो खेल के मैदान पर जो कमाल दिखाते हैं, उसमें ही छुपी हुई नहीं है। भोगले कहते हैं, पहली बार सचिन से मेरी मुलाकात हुई जब वो 14 साल के थे, रणजी अभी नहीं खेले थे। उनके कोच नाराज थे मुझसे कि मैं उनको इंटरव्यू कर रहा हूं। कोच साहब का कहना था कि आप इस लड़के को डिस्ट्रैक्ट कर रहे हैं। इसको आप डिस्ट्रैक्ट करेंगे, तो क्रिकेट से अलग कहीं उसकी नजर पड़ जाएगी, फिर वो ठीक से क्रिकेट नहीं खेलेगा। चौदह-साढ़े चौदह साल की उम्र से लोगों के जहन में ये चीज थी कि ये बड़ा प्लेयर बनने वाला है। हर स्पोर्ट्स मैन की जिंदगी में एक ऐसा लम्हा आता है जब, वो कुछ ऐसा करता है जो बाद में लगे कि नहीं करना चाहिए था। लेकिन, न हमने कभी उनके बारे में कोई स्कैंडल सुना, न कभी अंपायर से झगड़ा किया, न कभी सुना कि मैच रेफरी दोबारा बुला रहे हैं उनको, न कभी सुना कि मैदान पर किसी प्लेयर को गाली दी। वो एक जेनेरेशन थी इंडियन क्रिकेट में अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़, वी वी एस लक्ष्मण, सचिन तेंदुलकर, ये बहुत जबरदस्त जेनेरेशन थी।

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वीरेंद्र सहवाग की नजर में सचिन

वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर से अपनी तुलना को बहुत ही गर्व की बात मानते हैं। वीरेंद्र सहवाग का भी एक अलग ही जलवा रहा है इंडियन क्रिकेट में। जब वो बैटिंग करते थे और जिस दिन वो फॉर्म में होते थे, तो फिर किसी और की जरुरत ही नहीं होती थी। लेकिन, सब कहते थे उनकी स्टाइल देखकर कि इसमें सचिन तेंदुलकर की छवि है। इसमें सचिन तेंदुलकर की स्टाइल है। इस पर वीरेंद्र सहवाग ने कहा कि यह सम्मान की बात थी मेरे लिए। क्योंकि जिस सचिन तेंदुलकर को देखकर मैंने खेलना शुरू किया और उनको कॉपी करना शुरू किया। हमेशा चाहा कि उनके जैसा बनूं। जब उनसे तुलना की जाती है तो मेरे लिए यह गर्व की बात है कि इतने बड़े खिलाड़ी के साथ मुझे कम्पेयर किया जा रहा है। मेरे लिए इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है। वो मेरे रोल मॉडल हैं। यह खुशी की बात है कि उनके साथ मुझे कंपेयर किया गया, पर सचिन तेंदुलकर एक ही हो सकता है, उनके जैसा दूसरा कोई नहीं आ सकता।

तो ऐसे हैं हमारे मास्टर ब्लास्टर सचिन रमेश तेंदुलकर। एक पूरी जेनरेशन भारतीय क्रिकेट की ऐसी है जो सचिन तेंदुलकर के पद-चिह्नों पर चलना चाहती है। जो उनसे क्रिकेट की बारीकियां सीखती-समझती है। जैसे उन सब के गुरु सचिन तेंदुलकर हैं। वहीं, क्रिकेट फैंस के तो भगवान हैं और तब तक सचिन तेंदुलकर हर हिंदुस्तानी के दिल में बसे रहेंगे जब तक भारत में क्रिकेट खेला जाता रहेगा।

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