बॉलीवुड के ‘किंग ऑफ रोमांस’ ने अमिताभ और शाहरुख को बनाया सुपर स्टार

Yash Chopra

Yash Chopra Birth Anniversary : हिंदी फिल्मों के इतिहास में कामयाबी की धूम मचाने वाले डायरेक्टर को बॉलीवुड का किंग ऑफ रोमांस कहा जाता है। पिछले 5 दशकों से युवा पीढ़ी को रोमांस के जादू से रूबरू कराने वाले कोई और नहीं बीआर चोपड़ा के छोटे बाई यश चोपड़ा हैं।

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यश चोपड़ा (Yash Chopra) फिल्मों में आए तो थे हीरो बनने लेकिन उनके बड़े भाई  बीआर चोपड़ा ने उनके कंधे पर डायरेक्शन की जिम्मेदारी डाल दी। लेकिन उनमें प्रतिभा इससे भी कहीं बढ़ कर भरी थी। वे एक संपूर्ण रचनाकार और शिल्पकार थे। यश चोपड़ा (Yash Chopra) बॉलीवुड के पर्याय हैं। इस जाने-माने निर्माता-निर्देशक का जन्म 27 सितंबर, 1932 को पाकिस्तान के लाहौर में हुआ।

यश चोपड़ा (Yash Chopra) अपने पिता से लड़-झगड़ कर पंजाब से बीआर चोपड़ा के पास मुंबई चले आए थे। दिलीप कुमार की अदाकारी के वे कायल थे और उन्हीं की तरह हीरो बनना चाहते थे। जबकि पिता चाहते थे कि वे इंजीनियर या आईसीएस बनें। लेकिन आठ  भाई-बहनों में सबसे छोटे होने के कारण वो सबके लाड़ले थे। इसीलिए बीआर चोपड़ा उन्हें ना नहीं कह पाए। यश को उन्होंने आईएस जौहर के पास भेजा जो उनके लिए अफसाना फिल्म लिख रहे थे। लेकिन जौहर जिस तीखे अंदाज में लोगों से बात कर रहे थे, वह देख कर यश कुछ ही घंटे बाद वहां से वापस आ गए। उन्होंने अपने भाई से कहा कि मैं सिर्फ आपके साथ काम करुंगा। तब पहला काम जो उन्हें सौंपा गया, वह था कलाकारों को शॉट के लिए सेट पर बुलाना, उनके लिए मेकअप रूम में कॉस्ट्यूम लेकर जाना और उनके लिए चाय-नाश्ता से लेकर खाने का इंतजाम करना।

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इसी दौरान ‘चांदनी चौक’ की शूटिंग के दौरान वे मीना कुमारी पर फिदा हो गए। कॉलेज के दिनों से उन्हें शेरो-शायरी का शौक था और साहिर लुधियानवी उनके फेवरिट शायरों में से एक थे। यही कारण था कि मीना कुमारी जब भी शॉट से खाली होती वे उन्हं अपनी शायरी सुनाने लगते। मीना कुमारी को उनकी यह अदा पसंद आई। जब वह ‘एक ही रास्ता’ की शूटिंग कर रही थीं तो उन्होंने भोलेपन से कहा कि यश तुम हीरों क्यों नहीं बन जाते? मैं तुम्हारी सिफारिश भी कर देती हूं। उस समय वे युवा थे और सिर पर अच्छे खासे बाल भी थे। वे अक्सर कंघी से बाल संवारते रहते थे।

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इश्क का भूत उन पर ‘आदमी और इंसान’ के समय भी चढ़ा। जब वह मुमताज के प्यार में दीवाने हुए थे। तब भी वह हीरो बनना चाहते थे। लेकिन जब बीआर चोपड़ा ‘नया दौर’ बना रहे थे तो फिल्म की हीरोइन वैजयंती माला ने कहा कि हीरो बनने का सपना छोड़ो। तुम बहुत अच्छे डायरेक्टर बन सकते हो। माला ने कहा कि मैं बीआर साहब से तुम्हारी सिफारिश कर देती हूं। इसके बाद साधना के समय वैजयंती माला ने चोपड़ा साहब के सामने यश की तारीफ की तो उन्होंने अपने भाई पर भरोसा जताया और ‘धूल का फूल’ के डायरेक्शन की बागडोर उन्हें सौंप दी। उनकी पहली फिल्म का सब्जेक्ट बहुत ही संवेदनशील था। लेकिन उन्होंने यथार्थ रूप में इसे पर्दे पर पेश किया और बड़े भाई का दिल जीत लिया। इसके बाद उन्होंने ‘धर्मपुत्र’ और ‘वक्त’ बनाई। ‘वक्त’ ने कामयाबी के उस घोड़े पर सवार किया जो उन्हें अपने समकालीनों से दॉ में सबसे आगे ले गया।

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इनकी फिल्मों का संगीत बहुत लोकप्रिय रहा है। उनके पुत्र आदित्य चोपड़ा भी एक फेमस डायरेक्टर हैं, जिन्होंने ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ और ‘मोहब्बतें’ जैसी फिल्मों का डायरेक्शन किया है। यश चोपड़ा को उनकी जिंदगी के दौरान कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। अपनी फिल्मों में स्विट्जरलैंड को बढ़ावा दिए जाने के कारण स्विस सरकार ने उन्हें सम्मानित किया है। उन्हें साल 2001 में ‘दादा साहेब फाल्के अवार्ड’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। यश चोपड़ा एकमात्र ऐसे फिल्म निर्माता हैं जिन्होंने ‘फिल्म फेयर अवार्ड’ 11 बार जीता है। वह भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सलाहकार समिति के सदस्य और ‘फिल्म इंडस्ट्री वेलफयर ट्रस्ट’ के ‘फाउंडर ट्रस्टी’ भी रह चुके हैं। इनके अलावा वह भारतीय फिल्म जगत के ऐसे प्रोड्यूसर-डायरेक्टर रहे हैं जिन्हें हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए ‘बीबीसी एशिया अवार्ड’ से दो बार सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें ब्रिटेन में टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए ब्रिटिश टूरिस्ट ऑथारिटी और ब्रिटिश फिल्म कमीशन से सर्टिफिकेट ऑफ रिकॉग्नाइजेशन दिया जा चुका है।

इसमें कोई शक नहीं है कि यश चोपड़ा (Yash Chopra) हमारे समय के बहुत बड़े प्रोड्यूसर और डायरेक्टर थे | कम से कम बॉलीवुड के दो महान सितारे अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के फिल्मी सफर को संवारने का श्रेय इनको ही जाता है। अमिताभ के करियर में ‘दीवार’, ‘त्रिशूल’, ‘काला पत्थर’, ‘कभी-कभी’ और ‘सिलसिला’ जैसी फिल्में नहीं होतीं तो अमिताभ का सफर कुछ कम चमकीला लगता। शाहरुख खान के करियर से तो अगर यशराज बैनर की फिल्में हटा दी जाये तो वे बिल्कुल मामूली हीरो नजर आते हैं। उनकी सबसे अच्छी और कामयाब फिल्में, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’, ‘डर’, ‘दिल तो पागल है’, ‘मोहब्बतें’, ‘वीर जारा’. ‘चक दे इण्डिया’ और ‘रब ने बना दी जोड़ी यशराज फिल्म्स के बैनर से ही आयी हैं। साठ के दशक में ‘वक्त’ और ‘धूल का फूल’ हो या नब्बे के दशक में ‘लम्हे’ और ‘चांदनी’, यश चोपड़ा का करिश्मा इनमें दिखता है।

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यश चोपड़ा (Yash Chopra) का जीवन फिल्मफेयर उपलब्धियों से भरा पड़ा है। उन्हें वर्ष 1965 में फिल्म ‘वक्त’ के लिए वर्ष 1969 में फिल्म ‘इत्तिफाक’ के लिए, वर्ष 1973 में फिल्म ‘दाग’ के लिए और वर्ष 1975 में फिल्म ‘दीवार’ के लिए ‘फिल्मफेयर बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड* दिया गया। वर्ष 1991 में फिल्म ‘लम्हे’, वर्ष 1995 में फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे’, वर्ष 1997 में फिल्म ‘दिल तो पागल है’ और वर्ष 2004 में फिल्म ‘वीर-जारा’ के लिए ‘फिल्मफेयर बेस्ट मूवी अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। इनके अलावा वर्ष 2006, 2007 और 2008 में वे ‘फिल्मफेयर पावर अवार्ड’ से भी सम्मानित हो चुके हैं। 21 अक्टूबर 2012 को बॉलीवुड के किंग ऑफ रोमांस ने माया नगरी से विदाई ले ली और हमेशा हमेशा के लिए अपने फिल्मों के जरिए अमर हो गए।

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