कहानी एवरेस्ट विजेता की, पहले उठाता था दूसरों का सामान

भारत के इस सपूत के नाम पर न्यूजीलैंड में एक कार का नाम रखा गया। नेपाल में एक एयरपोर्ट का नाम भी इनके नाम पर है।

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एवरेस्ट की चोटी पर जितने फोटो खींचे गए उन सभी में तेनजिंग ही नजर आ रहे थे।

29 मई, 1953 को सुबह 11 बजकर 30 मिनट पर एवरेस्ट पर पहली बार चढ़ने का रिकॉर्ड बना। यह कारनामा कर दिखाया था न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और भारत के बहादुर शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने। एवेरस्ट के शिखर पर चढने वाले प्रथम पुरुष और पहले भारतीय नागरिक तेनजिंग नोर्गे शेरपा थे। शेरपा परिवार में पैदा हुए नोर्गे को नोर्के भी कहते हैं। इनका वास्तविक नाम था न्यांगल वांगरी। जिसका मतलब होता है धर्म के अनुयायी। लेकिन बाद में लामा भिक्षुओं के कहने पर उनको तेनजिंग नोर्गे नाम दिया गया। उनका जन्म 1914 में नेपाल के खुम्भु इलाके में हुआ था जो नेपालियों और तिब्बतियों दोनों की मातृभूमि कहलाता था। वे एक बौद्ध परिवार से थे। उनके पिता का नाम घंग ला मिंगमा और माता का नाम डोकमो किन्ज्म था। 13 भाई बहनों में 11वें नंबर के थे। वे स्वयं भी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।

बचपन में ही तेनजिंग एवरेस्ट के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित अपने गांव से भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग में बस गए। 1933 में उन्हें भारतीय नागरिकता ले ली थी। उन्हें जानवरों से बेहद लगाव था। उन्हें अपनी जन्म की तारीख याद नही थी। फिर भी जब तेनजिंग नोर्गे ने एवरेस्ट पर जिस दिन कदम रखा था उसी को अपनी जन्म तारीख घोषित कर दिया वो तारीख थी 29 मई, 1914 नोर्गे को 1935 के एक “ब्रिटिश माउंट एवरेस्ट पर्वतारोही अभियान” के लीडर एरिक शिप्टन के यहां पहली बार काम करने का मौका मिला जो एवरेस्ट पर चढाई करने वाले थे। 1935 में वे एक कुली के रूप में सर एरिक शिपटन के प्रारम्भिक एवरेस्ट सर्वेक्षण अभियान में शामिल हुए। पहले इस काम के लिए दो दूसरे शेरपाओं को चुना गया था लेकिन उनमें से एक पहाड़ी पर चढ़ने के लिए हुए मेडिकल टेस्ट में फ़ेल हो गया था। इसी कारण 20 साल के तेनजिंग का चुनाव हो गया था। उनके चुनाव का सुझाव तेनजिंग के मित्र अंग ठारके ने दिया और शिप्टन ने भी उस शेरपा की हंसी देखकर उसे चुन लिया था।

नोर्गे का काम पर्वतारोहण करने वाले लोगों का सामान बेस कैंप तक पहुंचाना था। इस तरह नोर्गे ने 1930 के दशक में तीन बार पर्वतारोहण करने वाले ब्रिटिश अफसरों के लिए कुली का काम किया था। धीरे-धीरे उनका एवरेस्ट पर बेस कैंप में चढ़ने-उतरने का अच्छा अभ्यास हो गया था। उन्होंने अन्य किसी भी पर्वतारोही के मुक़ाबले एवरेस्ट के सर्वाधिक अभियानों में हिस्सा लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वह कुलियों के संयोजक अथवा सरदार बन गए और इस हैसियत से वह कई अभियानों पर साथ गए। 1936 में तेनजिंग ने जॉन मोरिस के साथ भी काम किया था और इसके साथ ही तेनजिंग ने भारत के कई पर्वतारोहण अभियान में हिस्सा लिया था। 1940 के दशक की शुरूआत में तेनजिंग ने चित्रल रियासत के मेजर चंपन के लिए नौकर का काम भी किया था। इसी दौरान नोर्गे की पहली पत्नी की म्रत्यु हो गयी थी। इसलिए विभाजन के बाद 1947 में वे अपनी दो बेटियों के साथ वापस दार्जिलिंग लौट आए थे। विभाजन के दौरान चित्रल रियासत को पाकिस्तान में मिला दिया गया। किसी भी तरह वो बिना टिकिट के भारत आने में सफल रहे क्योंकि उन्होंने उस समय मेजर चंपन की पुरानी यूनिफार्म पहन ली थी। जिसके कारण कोई उन्हें पहचान नहीं पाया था।

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एडमंड हिलेरी के साथ तेनजिंग नोर्गे

1952 में स्विस पर्वतारोहियों ने दक्षिणी मार्ग से एवरेस्ट पर चढ़ने के दो प्रयास किए थे और दोनों अभियानों में तेनजिंग टीम लीडर के रूप में उनके साथ थे। तेनजिंग को एवरेस्ट फतह करने में सफलता सातवीं बार में हासिल हुई। इससे पहले वे 6 बार प्रयास कर चुके थे। लेकिन बार-बार किसी कारण से चूक जाते थे। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 1953 में वे एडमंड हिलेरी के साथ दक्षिण-पूर्वी पर्वत क्षेत्र में 8,850 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर दुनिया में एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया। पर्वतों पर चढ़ने का सफर उनका यहीं खत्म नहीं हुआ, इसके बाद भी उन्होंने दुनिया के कई जगहों पर ऐसे अभियान में हिस्सा लिया। इस यात्रा में एडमंड हिलेरी भी उनके साथ थे। उनके एवरेस्ट आरोहण के तुरंत बाद रानी बनी एलिज़ाबेथ ने जार्ज मेडल दिया जो किसी भी विदेशी को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान था।

एवरेस्ट की चोटी पर जितने फोटो खींचे गए उन सभी में तेनजिंग ही नजर आ रहे थे। इसका कारण था कि तेनजिंग को फोटो खींचना नहीं आता था। तेनजिंग ने जब हिलेरी का फोटो लेने की बात कही तो हिलरी ने मना कर दिया। तेनजिंग ने इस सफलता पर एवरेस्ट को मिठाई खिलाई। तेनजिंग ने जेब में रखी मिठाई और बेटी नीमा की पेंसिल निकाली और बर्फ में दबा दी। तेनजिंग ने इस पर कहा था, ‘मैंने सोचा घर पर हम सभी अपने प्रियजन को मिठाई देते हैं। एवरेस्ट भी मुझे हमेशा प्रिय रहा है। और आज तो बेहद पास भी है। मैंने भेंट चढ़ाकर बर्फ से उन्हें ढ़क दिया।’ बेहद सरल स्वभाव के तेनजिंग ने हमेशा एवरेस्ट के शिखर पर पहले कदम रखने का श्रेय हिलेरी को दिया। उन्होंने कई बार इस बात को दोहराया।

तेनजिंग के शब्दों में, ‘मैं उस समय पहले और दूसरे के बारे में विचार नहीं कर रहा था। मैंने यह नहीं सोचा कि वहां सोने का सेब है और हिलरी को धक्का देकर उसे लपकने पहुंचूं। हम धीरे-धीरे आगे बढ़े और अगले क्षण शिखर पर थे। पहले हिलेरी पहुंचे और फिर मैं।’ इस अभियान का एक दूसरा प्रेरणादयी प्रसंग भी है। इस अभियान के लीडर कर्नल हंट थे। हंट ने खुद पीछे रहकर इस अभियान का सफल नेतृत्व किया था। वह चाहते तो चोटी पर चढ़ने वाली टीम का हिस्सा बन सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा न करके अपनी दो बेस्ट टीमें बनाईं। पहली टीम बोरडिलन, ईवान्स की। दूसरी हिलेरी और तेनजिंग की। बोरडिलन और ईवान्स चोटी पर चढ़ नहीं पाए। उन्होंने नीचे उतरते हुए हिलेरी और तेनजिंग को ऊपर के हालात की जानकारी दी। शिखर पर चढ़ने वक्त तेनजिंग और हिलेरी को उनके ये टिप्स बहुत काम आए।

चढ़ाई से पहले वाली रात दोनों के लिए काफी खतरनाक थी। तेज बर्फीली हवाएं चल रही थीं। रात में हिलेरी के जूते गलती से बाहर रह गए थे जब अगले दिन सुबह हिलेरी उठे तो उनके पैर बर्फ में जम गए थे। अंतिम चढ़ाई के समय उनके सामने एक खड़ी चट्टान थी। वह चट्टान एक बड़ी बाधा थी क्योंकि उसके रहते उन लोगों को दूसरा रास्ता लेना पड़ता जो लंबा था और एवरेस्ट तक पहुंचने का समय लंबा हो जाता। इस मौके पर हिलेरी ने दिमाग लगाया और चट्टान की दरार में से रास्ता बनाया। उस रास्ते से होकर पहले हिलेरी और उनके पीछे तेनजिंग आगे बढ़े। 29 मई, 1953 को 11 बजकर 30 मिनट पर वे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर पहुंच गए। वहां पर हिलेरी ने कुल्हाड़ी के साथ तेनजिंग का फोटो लिया।

तेनजिंग नार्गे को भारत, नेपाल और इंग्लैंड सरकार ने पुरस्कारों से सम्मानित किया। 1959 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से नोर्गे को सम्मानित किया तो इंग्लैंड की महारानी ने ‘जॉर्ज मेडल’ और नेपाल सरकार ने ‘नेपाल तारा’ से उनको सम्मानित किया। 1950 और 1951 में अमेरिका और ब्रिटेन की ओर से आयोजित अभियान में भी तेनजिंग को शामिल किया गया था लेकिन वे दोनों अभियान असफल रहे थे। 9 मई, 1986 को 71 वर्ष की उम्र में उनका निधन दार्जीलिंग में हुआ। उनका दाह संस्कार Himalayan Mountaineering Institute, Darjeeling में किया गया। नोर्गे के सम्मान में न्यूज़ीलैंड की एक कार का नाम शेरपा रखा गया। साल 2008 में नेपाल के लुकला एयरपोर्ट का नाम बदल कर तेनज़िंग-हिलेरी एयरपोर्ट कर दिया गया।

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