संसद हमले से पुलवामा हमले तक, ऐसा रहा जैश-ए-मोहम्मद का सफर

पिछले दो साल में सुरक्षाबलों पर हुए लगभग सभी हमलों के पीछे जैश-ए-मोहम्मद का हाथ रहा है। इसके आतंकी संगठन के सरगना का नाम है मौलाना मसूद अजहर।

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कश्मीर घाटी में 8 जुलाई 2016 को बुरहान वानी एनकाउंटर में मारा गया। बुरहान के एनकाउंटर से जैश संगठन घाटी में समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया था। लेकिन पिछले लगभग ढाई सालों में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद फिर से घाटी में सक्रिय हो गया है। जैश-ए-मोहम्मद का मकसद कश्मीर में और बुरहान वानी तैयार करना है। जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयबा के बाद तीसरा सबसे बड़ा आतंकी संगठन है जो इस वक्त घाटी में सक्रिय है।

मसूद अज़हर ने मार्च 2000 में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की नींव रखी थी। फिलहाल उसका भाई मौलाना रऊफ असगर जैश-ए-मोहम्मद का सरगना है। 2001 में अमेरिका ने जैश-ए-मोहम्मद को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया। जिसके बाद साल 2002 में पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद को बैन कर दिया। जैश-ए-मोहम्मद का नाम भारत, अमेरिका और ब्रिटेन के प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल है।

जैश-ए-मोहम्मद का मुख्य तरीका आत्मघाती हमला करना है। जैश-ए-मोहम्मद कट्टरपंथी विचारों वाले ऑडियो कैसेट कश्मीर भेजकर युवाओं को गुमराह करता है। इस संगठन में हरकत-उल-मुजाहिद्दीन और हरकत-उल-अंसार के कई चरमपंथी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक पीओके से भर्ती किए गए आतंकियों को टेक्निकल ट्रेनिंग के लिए जैश-ए-मोहम्मद के आका उनको बहावलपुर में अपने हेड ऑफिस के अंडरग्राउंड टेक रूम में ‘टेक्निकल वॉर’ की ट्रेनिंग देते हैं। फिर आगे की ट्रेनिंग के लिए भेजते हैं। यहीं पर शामिल किए गए आतंकियों का ब्रेनवॉश भी किया जाता है। पहले चरण की ट्रेनिंग के बाद जैश-ए-मोहम्मद अपने जिहादी ग्रुप को ग्राउंड ट्रेनिंग के लिए पीओके के कैंप में भेजती है। यहीं पर इनको भारतीय सुरक्षाबलों पर फ़िदायीन हमले करने के लिए उकसाया भी जाता है।

बताया जाता है कि पिछले दो साल में सुरक्षाबलों पर हुए लगभग सभी हमलों के पीछे जैश का हाथ रहा है। पुलवामा जिला पाकिस्तान की सीमा से दूर है। पाकिस्तान से आतंकवादियों का यहां पहुंचना बहुत मुश्किल काम है। इसलिए जैश ने लोकल लड़कों की भर्ती शुरू की। जैश को हथियार भी लश्कर और हिज्बुल से अधिक और आसानी से मिल जाते हैं। बाकी दोनों संगठनों के सदस्य सुरक्षाबलों से हथियार छीनकर काम करते हैं।’

ऐसे शुरू हुआ जैश-ए-मोहम्मद का सफर

कहानी शुरू हुई दिसंबर 1979 में। अफगानिस्तान की कम्यूनिस्ट सरकार के खिलाफ मुजाहिदीन ने हथियार उठाया। अफगानिस्तान की कम्युनिस्ट सरकार को रूस का समर्थन हासिल था। यही बात अमेरिका की अफगान युद्ध में दिलचस्पी की वजह बनी। अमेरिका, पाकिस्तान और सऊदी अरब ने मुजाहिदीन यानी भाड़े के लड़ाकों को छिपे तौर पर पूरा समर्थन दिया। अफगान सरकार का तख्ता पलटने के बाद बहुत से मुजाहिदीन लड़ाके बेरोजगार हो गए। यहीं से शुरू हुआ कश्मीर में आतंक का नया अध्याय। पाकिस्तान ने इन लड़ाकों की मदद से कश्मीर में हमलों के लिए लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-अंसार नाम के आतंकी संगठनों की नींव रखी। बाद में हरकत-उल-अंसार नाम बदलकर हरकत-उल-मुजाहिदीन (Hum-हम) के नाम से काम करने लगा। आईएसआई ने ‘हम’ का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में शुरू कर दिया। ‘हम’ का एक सदस्य था मौलाना मसूद अजहर। उसकी विचारधारा पूरी तरह से अल कायदा और तालिबान की विचारधारा पर आधारित थी। मसूद अजहर को 1994 में दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग से अरेस्ट किया गया था। कंधार विमान अपहरण से पहले मौलाना मसूद अज़हर भारत के कब्जे में था। जिसे छुड़ाने के लिए आतंकियों ने 31 दिसंबर, 1999 को भारत के एक विमान को अगवा कर लिया था। इस विमान नें 814 यात्री सवार थे। इन यात्रियों को बचाने के लिए भारत सरकार को मसूद अजहर को कंधार ले जाकर छोड़ना पड़ा था। इसके बाद ही साल 2000 में जैश-ए-मोहम्मद का जन्म हुआ। जैश-ए-मोहम्मद का मतलब होता है मोहम्मद यानी पैगंबर मोहम्मद की फौज।

आतंक के अध्याय की शुरुआत

जैश-ए-मोहम्मद 19 अप्रैल, 2000 को बादामी बाग, श्रीनगर स्थित भारतीय सेना के 15 कोर मुख्यालय पर हमला करके खबरों में आया। इसके साथ ही जैश अंतरराष्ट्रीय जिहाद लीग का एक सदस्य बन गया। अक्टूबर 2001 में इसने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया। जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले के बाद भारत ने अपने राजनयिक प्रयास तेज कर दिए। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की। इसका नतीजा हुआ कि 17 अक्टूबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित कर दिया। 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले में भी इसका हाथ था। भारतीय संसद पर हमले के बाद भारत ने अपने प्रयास और तेज कर दिए। 26 दिसंबर, 2001 को अमेरिका ने भी इसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया।

24 सितंबर, 2002 को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकवादियों ने मिलकर गुजरात के गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर पर हमला किया था। 29 अक्टूबर, 2005 को जैश और लश्कर के आतंकियों ने मिलकर दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट किया। लाहौर में साल 2009 में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हुए हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने ही ली थी। आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्‍मद ने साल 2008 में भारत के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को अपहरण करने की धमकी दी थी। यह सूचना मिलते ही नागपुर पुलिस ने सचिन की सुरक्षा और कड़ी कर दी थी।

जब मजबूर हुआ पाकिस्तान

जब पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो जनवरी 2002 में जैश पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन यह प्रतिबंध महज एक दिखावा था। जैश के आकाओं ने इसका नाम बदलकर अपना काम जारी रखा। इसने नया नाम रख लिया खुद्दाम-उल-इस्लाम। उस पर भी पाकिस्तान सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि 2002 में इसे गैरकानूनी संगठन करार दे दिया गया था। इसके बाद जैश ने अल-रहमत ट्रस्ट नाम के चैरिटेबल ट्रस्ट की आड़ में अपना काम शुरू कर दिया। उसी समय जैश की अंदरुनी कलह की वजह से एक नया संगठन अस्तित्व में आया, जिसका नाम था जमात-उल-फुरकान। अब्दुल जब्बार, उमर फारूक और अब्दुल्ला शाह मजहर ने इसकी नींव रखी। मसूद खुद्दाम-उल-इस्लाम की आड़ में जैश का संचालन करता रहा।

मुशर्रफ की जान के पीछे पड़ गया था मौलाना मसूद अजहर

9/11 के बाद आतंक के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के शामिल होने के फैसले से जैश बौखला गया। अजहर ने मुशर्रफ के इस्तीफे की मांग की। इसके अलावा इस्लामाबाद, मरी, तक्षशिला और बहावलपुर में हमले कराए। नवंबर 2003 में पाकिस्तान ने हमलों के बाद खुद्दाम-उल-इस्लाम पर रोक लगा दी। इसके बाद मसूद अजहर ने मुशर्रफ के काफिले पर 14 दिसंबर और 25 दिसंबर, 2003 को, दो बार हमले करवाए। इन हमलों के बाद पाकिस्तान ने जैश पर सख्ती शुरू कर दी। हमले के आरोपियों को मुशर्रफ के दौर में ही फांसी दे दी गई। मसूद अजहर पर सख्ती की गई और उसे नजरबंद कर दिया।

भले ही यूएन और यूएस ने जैश चीफ अजहर की गतिविधियों को गैरकानूनी घोषित कर दिया था लेकिन उसे पाकिस्तानी मशीनरी का साथ मिलता रहा। उसको आईएसआई, अफगानिस्तान की नई-नवेली तालिबान सरकार और वहां शरण लिए हुए अल कायदा के आकाओं से मदद मिलती रही। पैसे और हथियार सब मुहैया कराए गए। कह सकते हैं कि जैश-ए-मोहम्मद को खाद-पानी देने का काम आईएसआई ने किया। आईएसआई ने ही हरकत-उल-मुजाहिदीन के कई आतंकियों को जैश-ए-मोहम्मद के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। अजहर दक्षिणी पंजाब के अपने गृह नगर बहावलपुर में खुलकर काम करता रहा। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की वापसी के बाद जैश का फिर से खुलकर उभार हुआ।

ऐसे आया दोबारा फलक पर

2014 के बाद से मसूद फिर से पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य पर उभरा। भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगला। साल 2014 में ही मुजफ्फराबाद में एक बड़े कार्यक्रम में अजहर ने हिस्सा लिया। मुजफ्फराबाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। यह मौका था आतंकी अफजल गुरु की किताब के विमोचन का। इसके बाद ही जम्मू-कश्मीर में फिर से जैश के सक्रिय होने के सबूत मिले। जुलाई 2015 में तंगधार इलाके में सीआरपीएफ कैंप पर हमला। नवंबर 2015 में आर्मी कैंप पर हमला। 02 जनवरी 2016 को पठानकोट एयरबेस पर भी आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद का हाथ था। इस हमले में 6 आतंकवादी शामिल थे। आतंकी हमले के बाद 65 घंटे तक चले सेना के ऑपरेशन में सभी आतंकवादियों को मारा गिराया गया था। हमले में देश के 7 जवान शहीद हो गए थे और 37 जवान घायल हुए थे।आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के 4 आतंकियों ने 18 सितंबर, 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर फिदायीन हमला किया था। इस हमले में 18 जवान शहीद हुए थे। सेना ने जवाबी कार्रवाई में चारों आतंकियों को भी मार गिराया था। अक्टूबर 2017 में बीएसएफ कैंप श्रीनगर पर हमला। ये सब जैश के फिर से जिंदा होने के सबूत देते हैं।

1968 में पाकिस्तान के बहावलपुर में जन्मे मसूद अजहर की आतंकी गतिविधियों की लम्बी लिस्ट है। अफगान युद्ध के समय वह मुजाहिदीनों से जुड़ा और बाद में भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा। भारत ने कई बार यूनाइटेड नेशंस सिक्यॉरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की कोशिश की। पर हर बार चीन अड़ंगा लगा देता है। भारत ने मुंबई में 26/11 आतंकी हमले के बाद ही अजहर के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। लेकिन हर बार चीन की वजह से अजहर बच जाता है।

मसूद का एक भतीजा उस्मान हैदर पिछले ही साल सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में ढेर हुआ था। उस एनकाउंटर में मेड इन अमेरिका कार्बाइन जब्त की गई थी। बड़े हमलों के लिए ‘काम’ पर लगे एक्सपर्ट्स एजेंसियों का मानना है कि जैश-ए-मोहम्मद ने बड़े हमलों के लिए एक्सपर्ट्स को काम पर लगा दिया है। पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले की पूरी योजना एक पाकिस्तानी नागरिक कामरान ने बनाई थी, जो जैश-ए-मोहम्मद का सदस्य था। कामरान को सुरक्षाबलों ने मार गिराया।

(बशारत महमूद का यह लेख मूलतः इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। सिर्फ सच की टीम ने उसे अनुवाद करके प्रकाशित किया है।)

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