पुलिस और सुरक्षाबलों ने कायम की इंसानियत की मिसाल, नफरत के सौदागरों को दिया मोहब्बत का पैगाम

नक्सल एक ऐसी कौम बन गई है, जहां इंसानियत के लिए कोई जगह नहीं है। नक्सली किस हद तक गिर सकते हैं इसकी मिसाल है सरेंडर कर चुकी नक्सली सुनीता की दास्तान।

पुलिस

जब साथी नक्सलियों ने मरने के लिए जंगल में छोड़ दिया तो सुरक्षाबलों ने दिया सहारा।

पुलिस और सुरक्षाबल जनता की सहायता के लिए हमेशा खड़े रहते हैं। आम जन की सुरक्षा के लिए अपना जीवन जोखिम में डालते हैं और शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए हर वक्त तैनात रहते हैं। इन सारी जिम्मेदारियों के बीच भी वो अपना मानव धर्म कभी नहीं भूलते।

कल्पना कीजिए जो इंसान उनके खून का प्यासा है, उसी की जान बचाना, इंसानियत की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है। कांकेर में ऐसी ही एक घटना पेश आई है।

गर्भवती होने के कारण उसके साथी नक्सली उसे वहीं जंगल में अकेला छोड़कर भाग गए थे। नक्सलियों ने उसे प्रसव से ठीक पहले आलपरस गांव में अकेला मरने के लिए छोड़ दिया था। पुलिस ने मानवीय चेहरा दिखाते हुए उस महिला नक्सली को अस्पताल में भर्री कराया। अस्पताल में महिला नक्सली ने एक बच्चे को जन्म दिया। अपने बच्चे के जन्म के बाद उसने आत्मसमर्पण कर दिया। फिलहाल, अस्पताल में जच्चा-बच्चा दोनों का इलाज चल रहा है।

समर्पण करने वाली एक लाख की इनामी महिला नक्सली सुनीता उर्फ हुंगी कट्टम है। वह सुकमा के चिंतलनार की रहने वाली है। सुनीता साल 2014 में सुकमा के बासागुड़ा एलओएस में भर्ती हुई थी। अप्रैल, 2015 में उसे दक्षिण बस्तर डिवीजन से 20 साथियों के साथ उत्तर बस्तर कांकेर डिवीजन भेजा गया। यहां वह कुएमारी एलओएस में काम करने लगी। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, सुनीता मार्च, 2018 में ताड़ोकी के मसपुर में हुए हमले में शामिल थी। जिसमें बीएसएफ के दो जवान, एक अस्सिटेंट कमांडेंट और एक आरक्षक शहीद हो गए थे।

2018 में उसकी मुलाकात किसकोड़ो एरिया कमेटी के प्लाटून नंबर 7 के सदस्य मुन्ना मंडावी से हुई। वह सुकमा के किस्टारम थाना के मेट्टाम का रहने वाला है। दोनों ने संगठन में रहते शादी कर ली। शर्त यह रखी गई कि दोनों बच्चा पैदा नहीं करेंगे और पारिवारिक जीवन से दूर रहेंगे। लेकिन सुनीता गर्भवती हो गई। यह जानकारी साथी नक्सलियों को मिली तो उन्होंने सुनीता पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। उसे बहुत प्रताड़ित और परेशान किया गया। नक्सलियों ने उसे मीलों पैदल चलाया ताकि उसका गर्भपात हो जाए। इससे भी जब उनके मंसूबे कामयाब नहीं हुए तो सुनीता को पहाड़ियों पर चढ़ाया। शारीरिक रूप से कमजोर हो जाए इसके लिए वे लोग उसे खाना भी कम दिया करते थे।

सुनीता ने बताया कि जब उनके सभी प्रयास असफल हो गए तो उन्होंने रात में उसे कोयलीबेड़ा के चिलपरस गांव के बाहर जंगल में तड़पता हुआ छोड़ दिया और खुद भाग गए। उसने 2 मई को बच्ची को जंगल में जन्म दिया। उस वक्त सुनीता के पास कोई भी नहीं था। उसकी बच्ची बहुत ही कमजोर पैदा हुई। जिसके बाद वह गांव के एक घर में पनाह लेकर रह रही थी। पानीडोबीर एलओएस कमांडर मीना नेताम के कहने पर सुनीता को उस हाल में अकेला छोड़ा दिया गया। मीना ने सुनीता को संगठन में रखने से मना कर दिया था। घटना के बाद सुनीता का नक्सलवाद से मोह भंग हो गया।

इसी बीच, 12 मई को पुलिस को सूचना मिली कि कोयलीबेड़ा के गांव चिलपरस में एक महिला नक्सली नवजात शिशु के साथ है। पुलिस ने गांव के घेराबंदी कर उसे खोज निकाला। नवजात काफी कमजोर था। महिला की स्थिति भी ठीक नहीं थी। बच्चा दूध भी नहीं पी पा रहा था। जिसे देख पुलिस टीम तत्काल महिला नक्सली और नवजात को इलाज के लिए कोयलीबेड़ा लेकर पहुंची। सुनीता को वहां से अंतागढ़ और फिर वहां से कांकेर रेफर किया गया। जिला अस्पताल के आईसीयू में नवजात का इलाज चल रहा है। बच्ची का वजन सिर्फ 1.83 किलो का है। अभी बच्ची डॉक्टर्स की निगरानी में है।

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि 12 मई को जब इसकी जानकारी मिली तो हमने महिला नक्सली से संपर्क किया। उसे समझाया और बच्ची का इलाज शुरू कराया गया। इसके बाद उसने नक्सलवाद को अलविदा कहने का फैसला कर लिया। 15 मई को उसने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। सरकारी योजना के तहत उसे तत्काल 10 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि दी गई। साथ ही, उसे पुनर्वास योजना के तहत प्रशासन से मिलने वाली सभी सुविधाएं भी दी जाएगी।

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