नक्सली देखते रह गए और लक्ष्मण ने खींच दी लकीर, अब डॉक्टर बन करेगा समाज की सेवा

माता-पिता ने उसे दंतेवाड़ा के सरकारी आवासीय विद्यालय में लक्ष्मण का दाखिला करवा दिया। इसके बाद लक्ष्मण ने यहीं रह कर पढ़ाई की। बारहवीं पास के करने के बाद उसने नीट की परीक्षा दी। लक्ष्मण ने बताया कि उसके माता-पिता ने उसे गांव आने से मना करते थे।

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नक्सल प्रभावित क्षेत्र से निकलकर लक्ष्मण मंडावी ने नीट की परीक्षा में शानदार सफलता हासिल की है

छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक समय ऐसा था जब लोग नक्सल हिंसा और डर के साए में जीने को मजबूर थे। नक्सलियों के आतंक का आलम यह था कि वे मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शते थे। मार-काट और खून-खराबा तो करते ही थे, वे मासूम बच्चों को मां-बाप से छीनकर ले जाते और उन्हें अपने साथ रख कर नक्सली बनाते थे। पढ़ाई-लिखाई तो दूर की बात है, स्कूल क्या होता है, यहां के बच्चे ये तक नहीं जान पाते थे। लेकिन अब सरकार और प्रशासन की कोशिशों का नतीजा है कि नक्सल ग्रस्त इलाकों की स्थिति बेहतर हो रही है। यहां के युवा और बच्चे न केवल शिक्षित होने लगे हैं, बल्कि पढ़-लिख कर देश के बड़े प्रतियोगी परीक्षाओं में अपने झंडे गाड़ने लगे हैं।

ऐसे ही नक्सल प्रभावित क्षेत्र से निकलकर लक्ष्मण मंडावी ने नीट की परीक्षा में शानदार सफलता हासिल की है। अपने परिवार से दूर रहकर लक्ष्मण ने कड़ी मेहनत के बूते यह कामयाबी हासिल की है। अब वह डॉक्टर बनकर अपने गांव के लोगों की मदद करना चाहता है। बस्तर डिविजन के सुकमा जिले के चिंगावरम गांव में एक साधारण से परिवार में पैदा हुए लक्ष्मण को मां-पिता नक्सलवाद के साए से दूर रखना चाहते थे। जब लक्ष्मण स्कूल जाने लायक हुआ तो उसके माता-पिता ने उसे दंतेवाड़ा के सरकारी आवासीय विद्यालय में उसका दाखिला करवा दिया। इसके बाद लक्ष्मण ने यहीं रह कर पढ़ाई की। बारहवीं पास के करने के बाद उसने नीट की परीक्षा दी।

लक्ष्मण ने बारहवीं की परीक्षा में भी जिले में पहला स्थान हासिल किया था। अब मेडिकल की पढ़ाई करने जा रहे लक्ष्मण ने बताया कि उसके माता-पिता ने उसे गांव आने से मना करते थे। क्योंकि उन्हें नक्सलियों की ओर से धमकी मिली थी। लक्ष्मण ने बताया कि उसके गांव का माहौल बेहद खराब है। यहां अक्सर नक्सली आते रहते हैं और स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को अपने साथ ले जाते हैं। मां-पिता इस बात से बेहद डरते थे कि कहीं मुझे भी नक्सली अपने साथ न ले जाएं, इसलिए उन्होंने मुझे खुद से दूर रखा। एक बार नक्सलियों ने मेरे पिता पर दबाव भी बनाया कि मेरी पढ़ाई छुड़ाकर मुझे वापस गांव बुलाया जाए, लेकिन उन्होंने यह सब सहन किया ताकि मैं एक खुशहाल जिंदगी जी सकूं और अपना भविष्य संवार सकूं।

मैं अपने परिवार से लंबे समय तक दूर रहा हूं, लेकिन अब डॉक्टर बनकर गांव के लोगों की मदद करना चाहता हूं। लक्ष्मण को उम्मीद है कि जल्दी ही नक्सलवाद खत्म हो जाएगा। वह कहता है, ‘अब मैंने नीट की परीक्षा पास कर ली है। जिले में मेरा पहला स्थान है। मैं चाहता हूं कि मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर अपने गांव में एक डॉक्टर के रूप में काम करूं। मुझे लगता है कि अब लोग नक्सलियों के आतंक से उबरने में सफल हो रहे हैं। धीरे-धीरे यहां नक्सलवाद के पैर उखड़ रहे हैं और वह दिन दूर नहीं जब यहां से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म हो जाएगा। मैं अपनी छोटी बहन और भाई के साथ ही गांव के सभीं बच्चों की खुशहाल जिंदगी चाहता हूं। चाहता हूं कि वे सब भी पढ़-लिख कर आगे बढ़ें।’

लक्ष्मण को जिला प्रशासन द्वारा नक्सल प्रभावित परिवारों के बच्चों के लिए चलाए जा रहे ‘छू लो आसमान’ प्रोजेक्ट की मदद से यह सफलता मिली। वह दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय के आवासीय विद्यालय में रहकर पढ़ाई कर रहा है और यहीं रह कर उसने नीट परीक्षा की तैयारी भी की। इस आवासीय विद्यालय में रहकर लक्ष्मण की तरह बहुत से बच्चे अपना भविष्य उज्ज्वल बना रहे हैं। यहां रहने वाले पांच बच्चों ने नीट परीक्षा में अच्छा स्कोर प्राप्त किया है और उम्मीद है कि इन सभी बच्चों को देश के बेहतर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिल जाएगा।

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