Gandhi 150th Birth Anniversary: दक्षिण अफ्रीका से ली आंदोलन की शिक्षा

Mahatma Gandhi

Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary: गांधी जी जब सिर्फ 24 साल के थे, तब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ना शुरू किया था। बेशक तब उनमें उस समय के पूर्वाग्रह थे, लेकिन उससे बाहर निकलने की उल्लेखनीय यात्रा उन्होंने यहीं से शुरू की और सत्याग्रह नामक दर्शन विकसित किया।

Mahatma Gandhi

साल 1969 में जब दक्षिण अफ्रीका में गांधी (Mahatma Gandhi) की 100वीं जयंती मनाई जा रही थी, तब वहां रंगभेद अपने चरम पर था। अश्वेतों के राजनीतिक संगठन या तो प्रतिबंधित कर दिए गए थे या फिर उन्हें जबरन निष्क्रिय बना दिया गया था। विरोध की आवाजें घरों में कैद कर दी गई थीं। गांधी जयंती का आयोजन फीनिक्स सेटलमेंट ट्रस्ट ने किया था, और ट्रस्ट के अहाते में गांधी संग्रहालय व पुस्तकालय के उद्घाटन के साथ-साथ एक महात्मा गांधी क्लिनिक खोलने की भी योजना थी। क्लिनिक उस प्रिंटिंग प्रेस वाली इमारत में शुरू होने वाली थी, जो एक समय ‘इंडियन ओपिनियन’ नामक अखबार का ठिकाना हुआ करता था, जिसे गांधी ने 1903 में शुरू किया था। इस आयोजन में कई महत्वपूर्ण लोगों ने अपने विचार रखे। उन्होंने यह भी चर्चा की कि द. अफ्रीका में आखिर किस तरह सत्याग्रह की कल्पना की गई थी। यह सब तब हो रहा था, जब कानून समान रूप से अन्यायपूर्ण थे। मगर आज जब हम गांधी की 150वीं जयंती की तैयारी कर रहे हैं, द. अफ्रीका में गांधी की प्रतिष्ठा को कमतर साबित किया जा रहा है। बीते अगस्त में ही, इकोनॉमिक फ्रीडम फ्रंट नामक पार्टी ने जोहनेसबर्ग सिटी काउंसिल में एक प्रस्ताव रखा कि शहर के चौराहे से गांधी की प्रतिमा हटाई जाए। बेशक ईएफएफ का यह प्रस्ताव 226 के मुकाबले 20 वोटों से गिर गया, पर इसने बहस-मुबाहिसे के नए दौर की शुरुआत कर दी।

गांधी (Mahatma Gandhi) के बारे में सोशल मीडिया पर होने वाली ज्यादातर बहसें इन सवालों के आसपास होती हैं कि दक्षिण अफ्रीकियों के प्रति उनका रवैया कैसा था, उन्होंने किस तरह के अपमानजनक शब्द उन्हें कहे और जीवन स्तर बेहतर बनाने का उनका दावा भला कितना सही है। मगर यह समझना होगा कि नटाल में गांधी की जब राजनीतिक पहचान बननी शुरू हुई थी, तब वह महज 24 साल के थे। उन्हें दरअसल उस ‘कुली’ शब्द के खिलाफ आवाज उठाने के लिए याद किया जाना चाहिए, जिसका इस्तेमाल उनके लिए किया गया था। नटाल में भारतीयों के मताधिकार की रक्षा करने के दौरान ही उन्होंने तत्कालीन हुकूमत को इस सवाल पर घेरा था कि सभ्य व्यक्ति की परिभाषा आखिर क्या होनी चाहिए।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसा से बचेगी दुनिया

इन बहसों में अकसर उस गांधी (Mahatma Gandhi) को अनदेखा कर दिया जाता है, जो इसलिए ट्रेनों की तीसरी श्रेणी में यात्राएं करता रहा, ताकि अफ्रीकियों का दर्द समझ सके। ऐसी बहसें इस तथ्य को भी नजरअंदाज करती हैं कि ‘इंडियन ओपिनियन’ ने लगातार अफ्रीकियों की उन शिकायतों को अपने पन्ने पर जगह दी, जो संपत्ति के अधिकार से उन्हें बेदखल किए जाने व रोजाना के भेदभाव से जुड़ी थीं। उसमें अफ्रीकियों की उपलब्धियों की खबरें भी प्रकाशित होती थीं। 1913 में गांधी का आखिरी आंदोलन, जिसने भारतीय महिलाओं को पहली बार अहिंसक विरोध के लिए प्रोत्साहित किया, दरअसल अफ्रीकी महिलाओं द्वारा ‘पास लॉ’ के विरोध में किए गए संघर्ष से प्रेरित था।

किताब ‘सत्याग्रह इन साउथ अफ्रीका’ में गांधी ने हिन्दुस्तानियों की यह कहते हुए निंदा की है कि वे श्वेत रंग के प्रति आकर्षण रखते हैं, जबकि अफ्रीकियों के रंग-रूप को खुलकर सराहा है। बेशक द. अफ्रीका में गांधी नौजवान थे और राजनीतिक रूप से अनुभवहीन भी थे, मगर उनका जीवन बदलाव का प्रतीक था। यह कहना गलत नहीं होगा कि गांधी के द. अफ्रीकी वर्ष असाधारण थे। उन वर्षों में, वह सिर्फ एक राजनीतिक संगठन के सचिव या खैरख्वाह नहीं थे, बल्कि उन्होंने ऐसा माहौल बनाया, जिसमें जेल जाना लोकलाज नहीं, प्रशंसा का प्रतीक बना। अफ्रीका के अपने जीवन में वह कैदी बने, पत्रकार बने, किसान बने, शिक्षक बने, खाद्य सुधारक बने और अकूत दौलत कमा सकने की संभावना वाला कानूनी करियर छोड़ा। श्वेत वर्चस्ववाद के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रचुर ऊर्जा गांधी को नटाल में नौसिखिए याचिकाकर्ता के रूप में ही मिली। उस वक्त मताधिकार खत्म करने के खिलाफ 8,889 हस्ताक्षर वाली एक बड़ी सी याचिका सौंपी गई थी। इस रूप में गांधी ने न सिर्फ साहित्य बल्कि सरकारी दस्तावेजों और आयोगों का भी अध्ययन किया। हालांकि एक याचिकाकर्ता के तौर पर गांधी कई लड़ाइयां हार गए, फिर भी साम्राज्य के उदार रवैये में उनका विश्वास बना रहा। उनका मानना था कि ब्रिटिश न्याय नामक कोई चीज होती है।

मगर द. अफ्रीका के अपने आखिरी दशक में गांधी (Mahatma Gandhi) ने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया, जिसमें सरकार की सविनय अवज्ञा की गई थी। जैसे, पास की होलिका जलाना, सीमा पार आव्रजन नियमों का उल्लंघन करना व हड़ताल कर रहे हजारों कोयला खदान मजदूरों का मार्च निकालना। गांधी ने भारतीय जनमत का इस्तेमाल अपने पाठकों को एकजुट करने, नैतिक जीवनशैली के प्रति उन्हें शिक्षित करने, एस्टेट और खदानों में गिरमिटिया श्रमिकों की दयनीय दशा को उजागर करने में किया।

विभिन्न जातियों व भाषाओं को एक छत के नीचे लाकर गांधी (Mahatma Gandhi) ने सामाजिक मान्यताओं को भी गंभीर चुनौती दी। उन्होंने दो बस्तियों (फिनिक्स और टॉलस्टॉय फार्म) को मूर्त रूप दिया। धार्मिक प्रथाएं, जिन्हें अब गांधीवाद (सभी धर्मों के लिए सम्मान) की पहचान मिली हुई है, इन्हीं बस्तियों में विकसित हुईं। आज फिनिक्स द. अफ्रीका में सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में एक है। यह एक बड़ा उदाहरण है, जो यह सिखाता है कि कैसे इंसान अलग तरीके से रह सकता है।

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