एक कवि, जिसकी मौत पर श्मशान में लगे हंसी-ठहाके

Kaka Hathrasi

Kaka Hathrasi Birth and Death Anniversary : भारत के हास्यरस कवि काका हाथरसी ने अपने जिंदगी को जमकर जिया। काका और उनकी हास्य कविताएं आपस में ऐसे घुली हैं कि जब भी हास्य कवियों की बात होती है तो उनका चेहरा सबसे पहले जेहन में आ जाता है। काका हाथरसी कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, टीवी और रेडियो के जरिए हास्य कविता और हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योगदान दिया है।

Kaka Hathrasi

काका (Kaka Hathrasi) ने आम लोगों के लिए सीधी और सरल भाषा में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों हिन्दी-प्रेमियों के दिलों को छुआ। काका की कविताओं में समाज, राजनीति, कला, धर्म, संस्कृति और जीवन के अनेक पहलुओं को दर्शाया गया है।

सूरदास जी मार्ग में, ठोकर-टक्कर खायं,
राजीव जी के सामने मंत्री चक्कर खायं।
मंत्री चक्कर खायं, टिकिट तिकड़म से लाएँ,
एलेक्शन में हार जायं तो मुँह की खाएँ।
जीजाजी खाते देखे साली की गाली,
पति के कान खा रही झगड़ालू घरवाली।

इतिहास में आज का दिन – 18 सितंबर

कहते हैं ना कि किस्मत का खेल निराला होता है। कुछ ऐसा ही संयोग काका हाथरसी के साथ भी हुआ है। 18 सितंबर, 1906 को जन्मे काका (Kaka Hathrasi) का देहान्त भी 18 सितंबर, 1995 को हुआ। दुनिया मे शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसके मरने पर शमशान में ठहाके लगे हों। लेकिन काका हाथरसी उन विरले लोगों में से रहे जिनकी शवयात्रा ऊंट पर निकाली गई और शमशान में कविगोष्टी का आयोजन हुआ।  जिसमें भारत के प्रख्यात कवि अशोक चक्रधर और सुरेश चतुर्वेदी जैसे विद्वान मौजूद थे।

काका हाथरसी (Kaka Hathrasi) का जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुआ था। काका के पिता का नाम शिव कुमार गर्ग था। काका का असली नाम प्रभू लाल गर्ग है। प्रभू लाल जब 15 वर्ष के थे तभी बीमारी के कारण इनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद प्रभू लाल अपनी मां बरफी देवी  के साथ अपनी ननिहाल इगलास आ गए।

इगलास में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद प्रभू लाल वापस हाथरस लौट गए और वहां पर जाकर पेंटिंग के साथ अपनी उच्च शिक्षा भी शुरू कर दी। प्रभू लाल हाथरस के एक वकील के पास अंग्रेजी की शिक्षा लेते थे और उनपर ही प्रभू लाल ने अपनी पहली कविता लिखी थी। प्रभू लाल हाथरस में ही एक नाटक मंडली के कार्यक्रम में काका का किरदार निभाते थे और यहीं से उनका नाम प्रभू लाल से बदलकर काका हाथरसी (Kaka Hathrasi) पड़ गया।

काका को अंग्रेजी और उर्दू भाषा का अच्छा ज्ञान था लेकिन वो अपनी कविताओं और संगोष्ठियों में हिंदी के प्रचार-प्रसार पर ज्यादा जोर देते थे। काका की हास्य कविताएं देश ही नहीं अपितु विदेशो में भी काफी प्रचलित थी। शायद यही कारण है कि काका को अमेरिका में 1989 में अमेरिका में ऑनरेरी सिटीजन सम्मान दिया गया। हिंदी के विकास के लिए काका के प्रयासों से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें 1985 में पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा।

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