यह राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं है!

संसदीय लोकतंत्र की मर्यादा कहती है भाषा शालीन होनी चाहिए। आपकी भाषा से किसी की मर्यादा को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। लेकिन क्या इसके लिए किसी को NSA यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार करके सजा दे दी जाएगी, ये बात हजम नहीं होती। पर विडंबनाओं से भरे इस देश में ये भी हो गया।

दरअसल, मणिपुर के टीवी पत्रकार किशोरचंद्र वांग्खेम को NSA यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत एक साल की सजा हुई है। 11 दिसंबर को राज्य सरकार ने वांग्खेम के खिलाफ लगाए गए आरोपों को NSA के सामने पेश किया। 13 दिसंबर को बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी और NSA के तहत गिरफ्तारी को स्वीकृति दे दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि आरोपी की पिछली गतिविधियों पर विचार किया गया है। यह देखा गया है कि उसकी गतिविधियों से राज्य की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर कोई खतरा तो पैदा नहीं हो सकता है। आशंका है कि जेल से छूटते ही आरोपी अपनी गतिविधियों को जारी रखेगा, इसलिए इसे इसे जेल भेज दिया जाए। आपको बता दें कि किशोरचंद्र वांग्खेम मणिपुर के ISTV के पत्रकार हैं। 21 नवंबर को पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार किया था। वजह थी कि वांग्खेम ने एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें BJP सरकार की आलोचना की गई थी।

दरअसल, मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किया था और उसे मणिपुर में स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ दिया था। किशोरचंद्र ने इसी बात की आलोचना की थी। इस वीडियो में उन्होंने मुख्यमंत्री को ‘हिंदुत्व की कठपुतली’ करार दे दिया था।

बहरहाल, 21 नवंबर को गिरफ्तार करने के बाद 25 नवंबर को उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया। कोर्ट ने माना कि उन्होंने सार्वजनिक व्यक्ति की असभ्य भाषा में आलोचना भर की थी। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने दो समुदायों के बीच शत्रुता पैदा करने की कोशिश की हो, लेकिन NSA बोर्ड के फैसले के बाद फिर गिरफ्तार कर लिया गया।

अब हर तरफ इस फैसले की आलोचना हो रही है। लाजिमी भी है। अगर NSA के तहत गिरफ्तारी का मानदंड भाषा की शालीनता है तो फिर इस देश की जेलें कम पड़ जाएंगी। बाकी को तो छोड़ दीजिए, मौजूदा परिदृश्य में ज्यादातर मंत्री और नेता सलाखों के पीछे होते। क्योंकि सोशल मीडिया पर जिस तरीके से गलत और गंदी भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, वो किसी से छिपा नहीं है। रही बात मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की, तो ठीक बात है वह एक बड़े पद पर आसीन हैं। उनके लिए सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल होना ही चाहिए। साथ ही, यह भी नहीं भूला जा सकता कि वह सार्वजनिक जीवन में हैं, लिहाजा उनका आलोचना भी होगी। होनी ही चाहिए। और आलोचना की भाषा अगर कानून से तय करना है, तो कर लीजिए क्योंकि इससे आलोचना के स्वर थमेंगे नहीं बल्कि मुखर ही होंगे।

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