Rituparno Ghosh Death Anniversary: बड़ी सादगी से कह दी वो बात जिसे कहने में दुनिया को जमाने लग गए…

Rituparno Ghosh Death Anniversary: उनकी फिल्मों में यह ताकत है जो दर्शकों को फिल्म से पूरी तरह बांध देती है। उन्होंने समाज में प्रतिबंधित विषयों पर भी अपनी फिल्मों के जरिये खुल कर विचार रखे।

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ऋतुपर्णो ने कुल 19 फिल्में बनाई और 12 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते।

Rituparno Ghosh Death Anniversary: ऋतुपर्णो घोष, फिल्मी जगत का ऐसा नाम जिसने फिल्मों में होते हुए भी फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से दूर सादगी को अपनी कामयाबी का जरिया बनाया। 12 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाले बंगाली फिल्मों के निर्देशक ऋतुपर्णो घोष ने रुपहले पर्दे की चमकदार दुनिया में सादगी को दर्शाया। साहित्य और सिनेमा के खोये हुए रिश्ते को जोड़ने वाले यह महान निर्देशक आज ही के दिन यानी 30 मई, 2013 को सिर्फ 49 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए। जहां आज ज्यादातर फिल्में 100-200 करोड़ कमाने के लिए बनाई जाती हैं, वहीं ऋतुपर्णो ने कैमरा को कुछ कहने साधन बनाया। फिल्में चलीं या नहीं चलीं, अपनी बात और विभिन्न मुद्दों को बेबाकी से रखने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। उनकी फिल्मों के मायने गहरे और दिल को छू लेने वाले होते थे।

ऋतुपर्णो ने कुल 19 फिल्में बनाई और 12 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। उनका जन्म 31 अगस्त, 1963 में कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। अपनी फिल्मों में बहुआयामी किरदारों का चित्रण करने वाले ऋतुपर्णो खुद भी अनेक विधाओं में माहिर थे। वह गीतकार, लेखक, निर्देशक और एक्टर थे। कोलकाता में जन्में और पले बढ़े ऋतुपर्णो के पिता डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर थे। बंगाली सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत उन्होंने 1992 फिल्म हिरेर आंग्टी के निर्देशन से की। 1994 में उनके निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म ‘उनिशे एप्रिल’ को 1995 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उनकी अगली फिल्म रही धासन जिसे आलोचकों ने बहुत सराहा। इस फिल्म की कहानी एक ऐसी महिला के इर्द गिर्द घूमती है, जिसे कोलकाता की सड़कों पर उत्पीड़ित किया जाता है और फिर आगे किस तरह उसे न्याय मिलता है।

उन्होंने इसके अलावा ‘दहन’, ‘असुख’, ‘बेरीवाली’, ‘अंतरमहल’ और ‘नौकाडूबी’ जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन किया। बंगाली फिल्म चित्रांगदा ऋतुपर्णो घोष की आखिरी फिल्म थी। हिंदी सिनेमा में उन्होंने अजय देवगन और ऐशवर्या राय अभिनीत फिल्म रेनकोट का निर्देशन कर अपना लोहा मनवाया। बंगाली फिल्म चोखेर बाली ने उन्हें खास पहचान दिलवायी। ऋतुपर्णो अपनी फिल्मों के जरिये महिलाओं के साथ समलैंगिकता जैसे संवेदनशील मुद्दों को करोड़ों लोगों तक जिस तरह से पहुंचाया, वह अपने आप में मिसाल है। ऋतुपर्णो फिल्मों से जिंदगी को कैमरे में कैद करने वाला शख्स कहे जाते थे। उनकी फिल्मों के किरदार हमारे और आपके बीच से ही होते थे। दर्शकों को ऐसा लगता कि जैसे उनकी फिल्मों के किरदार उनके पास से उठ कर अभिनय करने लगे हैं।

उनकी फिल्म की ताकत सच्ची कहानी, ईमादार किरदार हैं। यहीं नहीं, वह साल 1997-2003 तक बंगाली फिल्म पत्रिका आनंदलोक के संपादक रहे। साल 2006 से साल 13 मई 2013 में मृत्यु तक रोबार मैग्जीन ‘संघबाद प्रतिदिन’ का भी संपादन किया। फिल्में बनाने के साथ-साथ ‘कथ देथिली मा’, ‘अरेक्टी प्रेमर गोल्पो’, ‘मेमोरिज ऑफ मार्च’, ‘चित्रांगदा’ फिल्मों में उन्होंने अपने अंदर के बेहद खूबसूरत और मंझे हुए कलाकार का भी परिचय दिया। वे एकमात्र ऐसे निर्देशक हैं जिन्होंने बच्चन परिवार के सारे सदस्यों को लेकर अलग-अलग फिल्में बनाई हैं। अमिताभ बच्चन के साथ ऋतुपर्णो ने ‘द लास्ट लियर’ नामक अंग्रेजी मूवी बनाई है। जया बच्चन को लेकर ‘सनग्लास’का निर्देशन किया।

ऐश्वर्या राय बच्चन ने अपने करियर की दो बेहतरीन फिल्म ‘रेनकोट’ और ‘चोखेर बाली’ ऋतुपर्णो के निर्देशन में की। जहां तक अभिषेक बच्चन का सवाल है तो उन्होंने ‘अंतरमहल’ नामक फिल्म में ऋतुपर्णो के साथ काम किया। इतनी कम उम्र में ऋतुपर्णो ने फिल्म जगत में जो कुछ किया है, उसके लिए लोगों के दिल में उनकी जगह हमेशा बनी रहेगी। उनकी फिल्मों में यह ताकत है जो दर्शकों को फिल्म से पूरी तरह बांध देती है। उन्होंने समाज में प्रतिबंधित विषयों पर भी अपनी फिल्मों के जरिये खुल कर विचार रखे। गायक, लेखक, एक्टर के तौर पर उनके कार्य समाज को आइना दिखाने का काम करते हैं। बंगाली और हिंदी सिनेमा में उनका योगदान सराहनीय है।

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