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साल 1 मई को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सली द्वारा कायरतापूर्ण हमले (Naxal Attack) में देश ने 15 जवान बहादुर जवानों को खो दिया।
Naxal Attack: बंदूक की नोंक पर क्रांति का खोखला दंभ भरने वाले नक्सली देश के लिए नासूर हैं। ना कोई सोच, ना कोई ठोस विचारधारा बस सिर्फ रक्तरंजित चरित्र। बीहड़ों में कायरता दिखाकर खुद को क्रांतिकारी कहने वाले नक्सली कभी ना तो तार्किक बातचीत के लिए टेबल पर आ सके और ना कभी किसी के लिए फरिश्ता साबित हो सके।
आज हम पिछले दस सालों में नक्सलियों द्वारा किए गए घिनौनी वारदातों को सिलसिलेवार आपके सामने इसलिए रख रहे हैं ताकि आप खुद इस बात का अंदाजा लगा सकें कि यह नक्सली किस तरह देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचा रहे हैं और अब इनका खात्मा कितना जरूरी बन चुका है?
हाल के दिनों में कुछ ऐसी दिल दहलाने वाली घटनाएं हुई हैं जिससे यह लगने लगा है कि बस, अब बहुत हो चुका। अब वक्त आ गया है कि नक्सली आतंक को जड़ से उखाड़ फेंका जाए। यह सवाल इसलिए उठे हैं क्योंकि इसी साल 1 मई को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सली द्वारा कायरतापूर्ण हमले (Naxal Attack) में देश ने 15 जवान बहादुर जवानों को खो दिया।
इससे पहले इसी साल 9 अप्रैल को नक्सलियों ने बीजेपी के विधायक के काफिले पर भी हमला (Naxal Attack) किया था। जिसमें विधायक की मौत हो गई और 4 जवान शहीद हो गए थे। ये दोनों ही हमले बहुत भयावह थे। पिछले लगभग एक दशक पर नजर दौड़ाई जाए तो तब से लेकर अब तक कई बड़े नक्सली हमले हुए हैं। इन हमलों में पिछले 10 सालों में 1150 जवान शहीद हुए हैं और 1300 से भी अधिक घायल हुए हैं।
नासूर बन चुके हैं नक्सली:
- 8 अक्टूबर, 2009 को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों ने लाहिड़ी पुलिस थाने पर हमला किया और 17 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी।
- 15 फरवरी, 2010 को पश्चिम बंगाल के सिल्दा में नक्सलियों ने पुलिस कैंप पर हमला कर 24 जवानों की हत्या कर दी थी और लूट-पाट मचाया।
- 23 मार्च, 2010 को बिहार के गया जिले में रेलवे लाइन पर विस्फोट किया था। इसी दिन ओडिशा में भी नक्सलियों ने रेलवे पटरी को उड़ा दिया था।
- 4 अप्रैल, 2010 को ओडिशा के कोरापुट जिले में पुलिस की बस पर माओवादियों ने हमला किया था। 10 जवान शहीद हो गए थे, 16 घायल हुए थे।
- 6 अप्रैल, 2010 को दंतेवाड़ा जिले के चिंतलनार जंगल में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला कर 75 जवानों सहित 76 लोगों की हत्या कर दी।
- 25 मई, 2013 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक हजार से ज्यादा नक्सलियों ने कांग्रेस की रैली पर हमला कर दिया। इसमें कांग्रेस के नेता विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा और नंदकुमार पटेल सहित 25 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे।
- 13 मार्च, 2018 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सीआरपीएफ की 212वीं बटालियन के जवानों पर आईईडी ब्लास्ट हुआ था। इस हमले में सीआरपीएफ के 9 जवान शहीद हो गए थे।
- मई 2018 में दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स के 7 जवान शहीद हुए।
- जून 2018 में नक्सलियों के हमले में झारखंड जगुआर फोर्स के 6 जवान शहीद हो गए।
- जुलाई 2018 में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में बीएसएफ के जवानों पर हमला किया था। इस हमले में 2 जवान शहीद हुए थे।
- 23 सितंबर, 2018 को नक्सलियों ने टीडीपी एमएलए किदारी सर्वेश्वर राव और पूर्व विधायक सिवेरी की विशाखापपट्टनम में गोली मारकर हत्या कर दी थी।
- 30 अक्टूबर, 2018 को दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में दूरदर्शन के एक कैमरामैन और दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी।
- 4 अप्रैल, 2019 को बस्तर में नक्सलियों ने बीएसएफ के चार जवानों की हत्या कर दी थी।
- 9 अप्रैल, 2019 को दंतेवाड़ा में बीजेपी विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर नक्सलियों ने हमला कर विधायक सहित 5 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी।
- 1 मई, 2019 को गढ़चिरौली में नक्सलियों के हमले में 15 जवान शहीद हो गए थे।
ये तो कुछ बड़ी घटनाएं हैं। इनके अलावा भी कई नक्सली वारदातें हुई हैं जिनमें सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों और मासूम लोगों की जान गई है। नक्सली हमलों में हताहतों के आंकड़े को देखें तो साल 2010 में 1194 लोग मारे गए। वहीं, 2011 में 606 लोग मारे गए। नक्सली हमलों में साल 2012 में 374, 2013 में 418, 2014 में 349, 2015 में 255, 2016 में 432, 2017 में 335 और साल 2018 में 412 लोग मारे गए हैं। साल 2019 में हुए नक्सली हमलों में अब तक 92 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें आम नागरिक, सुरक्षाकर्मी और नक्सली भी शामिल हैं।
दरअसल ‘लाल आतंक’ एक ऐसी भटकी हुई क्रांति का नाम है, जिसने अब तक भारत के कई राज्यों की धरती को रक्त रंजित किया है। खून-खराबा करना और मासूमों की मजबूरियों का फायदा उठाकर, उन्हें बरगला कर हिंसा के दलदल में धकेलना ही इसका उद्देश्य बन गया है।
इसका भरोसा शासन व्यवस्था में कभी नहीं रहा। साल 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुई इस सशस्त्र क्रांति ने घिनौने ‘लाल आतंक’ का रूप ले लिया। धीरे-धीरे यह देश के 11 राज्यों में फैल गया और 90 जिलों को इसने अपनी जद में ले लिया।
हालांकि, सरकार और प्रशासन के प्रयासों की वजह से पिछले कुछ सालों में देशभर में नक्सली घटनाओं में कमी आई है। आज आलम यह है कि प्रशासन की सख्ती और सुरक्षाबलों की मुस्तैदी के कारण सभी बड़े नक्सली अपने बिलों में दुबक गए हैं। प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे नक्सल-विरोधी अभियानों का असर यह है कि अब या तो डर के मारे वे सरेंडर कर रहे हैं या फिर पुलिस की गोलियों का शिकार हो रहे हैं।
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