रात के अंधेरे में भी दुश्मन को ढूंढ़ निकालने वाला चिनूक वायुसेना में शामिल

सीएच-47एफ (आई) चिनूक एडवांस्ड टेक्नोलॉजी से लैस हेलिकॉप्टर है जो भारतीय सशस्त्र बलों को युद्ध और मानवीय मिशन के दौरान रणनीतिक एयरलिफ्ट की क्षमता मुहैया कराएगा।

Indian Airforce

Chinook

लंबे इंतजार के बाद भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) के बेड़े में अमेरिकी कंपनी बोइंग के चार चिनूक हेवीलिफ्ट हेलीकॉप्टर्स शामिल हो गए हैं। चंडीगढ़ स्थित इंडियन एयरफोर्स के 12वीं विंग एयरफोर्स स्‍टेशन में एक कार्यक्रम में चिनूक हेलीकॉप्‍टर्स की पहली यूनिट को शामिल किया गया। चिनूक की खासियत है कि केवल दिन में ही नहीं, बल्कि रात में भी सैन्य कार्रवाई कर सकता है। जानकारी के मुताबिक इस समय चिनूक हेलीकॉप्‍टर्स का प्रयोग कई बड़े देशों की वायु सेनाओं में हो रहा है।

एयर चीफ मार्शल ने कहा कि यह राष्ट्र की धरोहर है। चिनूक को विशेष क्षमता से लैस किया गया है। इसकी ताकत और उपयोगिता बताते हुए वायुसेना प्रमुख ने कहा कि ये हेलीकॉप्टर सैन्य अभियानों में प्रयोग किए जा सकते हैं।

इस समय देश के सामने सुरक्षा से जुड़ी कई बड़ी चुनौतियां हैं। मुश्किल हालातों के लिए इस तरह की क्षमता वाले हेलीकॉप्‍टर्स की जरूरत है। चिनूक को भारत की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया गया है। चिनूक को वायुसेना में शामिल करना गेम चेंजर साबित होगा। पूर्वी भारत के लिए दिनजान (असम) में इसकी एक और यूनिट गठित की जाएगी।

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सितंबर, 2015 में भारत और अमेरिका के बीच 15 चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदने का करार हुआ था। अगस्त 2017 में रक्षा मंत्रालय ने बड़ा फैसला लेते हुए भारतीय सेना (Indian Airforce) के लिए अमेरिकी कंपनी बोइंग से 4168 करोड़ रुपये की लागत से छह अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर, 15 चिनूक भारी मालवाहक हेलीकॉप्टर अन्य हथियार प्रणाली खरीदने के लिए मंजूरी दे दी थी।

अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी बोइंग ने 10 फरवरी को भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) के लिए चार चिनूक सैन्य हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति की थी। सीएच-47एफ (आई) चिनूक एडवांस्ड टेक्नोलॉजी से लैस हेलीकॉप्टर है जो भारतीय सशस्त्र बलों को युद्ध और मानवीय मिशन के दौरान रणनीतिक एयरलिफ्ट की क्षमता मुहैया कराएगा।

इसका इस्तेमाल सैनिकों, सैन्‍य साजो-सामान और ईंधन ढोने में किया जाता है। यह विशाल हेलीकॉप्टर 9.6 टन तक कार्गो ले जा सकता है। इसका उपयोग मानवीय और आपदा राहत अभियानों में भी किया जाता है। राहत सामग्री पहुंचाने तथा बड़ी संख्या में लोगों को बचाने में यह मददगार साबित हो सकता है।

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ऊंचाई वाले इलाकों में भारी वजन के परिवहन में इस हेलीकॉप्टर की अहम भूमिका होगी। इन्हें पहाड़ी क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। चिनूक काफी गतिशील है और यह घनी घाटियों में भी आसानी से अपना मिशन पूरा कर सकता है। भारतीय वायुसेना के बेड़े में अब तक भारी वजन उठाने वाले रूसी हेलीकॉप्टर ही रहे हैं। पहली बार वायुसेना को अमेरिका निर्मित हेलीकॉप्टर मिले हैं।

चिनूक के भारतीय एयरफोर्स के बेड़े में शामिल होने से न केवल सेना की क्षमता बढ़ेगी बल्कि कठिन रास्ते और बॉर्डर्स पर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में भी इसका अहम योगदान हो सकता है। नॉर्थ-ईस्ट में कई रोड प्रोजेक्ट सालों से अटके पड़े हैं। उन्हें पूरा करने के लिए बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन लंबे समय से एक हेवी लिफ्ट चॉपर का इंतजार कर रहा है जो इन घाटियों में जरूरी सामान और मशीनों को ले जा सके।

बोइंग CH-47 चिनूक हेलीकॉप्‍टर डबल इंजन वाला है। इसमें पूरी तरह एकीकृत डिजिटल कॉकपिट मैनेजमेंट सिस्टम है। इसके अलावा इसमें कॉमन एविएशन आर्किटेक्चर काकपिट और एडवांस्ड काकपिट मैनेजमेंट सिस्टम भी हैं। इसकी शुरुआत 1957 में हुई थी। 1962 में इसको सेना में शामिल किया गया था। इसे बोइंग रोटरक्राफ्ट सिस्‍टम ने बनाया है। इसका नाम अमेरिकी मूल-निवासी चिनूक से लिया गया है।

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यह हेलीकॉप्‍टर लगभग 315 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकता है। समय-समय पर इसके कॉकपिट में बदलाव के साथ-साथ इसके रोटर ब्‍लेड, एंडवांस्‍ड फ्लाइट कंट्रोल सिस्‍टम सहित कई दूसरे बदलाव कर के इसके वजन को कम किया गया। वर्तमान में यह सबसे तेज और सबसे भारी लिफ्ट चॉपर्स में से एक है। इसे वियतनाम, अफगानिस्तान और इराक जैसे युद्धों में इस्तेमाल किया जा चुका है।

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