रक्षाबंधन: एक बहन जो भाई की कलाई पर नहीं, उसकी बंदूक को बांधती है राखी

यह हमला अरनपुर इलाके में हुआ था। इस नक्सली हमले में दो पुलिसकर्मी और दूरदर्शन के एक कैमरापर्सन की मौत हो गई थी।  इसी हमले में राकेश कौशल भी शहीद हो गए थे।

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इस रक्षाबंधन पर एक बहन ने अपने भाई की कलाई पर नहीं बल्कि उसकी बंदूक पर राखी बांधी और उसकी मौत का बदला लेने की कसम खाई।

हाल ही में रक्षाबंधन बीता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं। लेकिन इस रक्षाबंधन पर एक बहन ने अपने भाई की कलाई पर नहीं बल्कि उसकी बंदूक पर राखी बांधी और उसकी मौत का बदला लेने की कसम खाई। जी हां, छत्तीसगढ़ पुलिस में महिला कांस्टेबल कविता कौशल ने अपने शहीद भाई असिस्टेंट कांस्टेबल राकेश कौशल की बंदूक पर राखी बांधी। अक्टूबर, 2018 में राकेश एक नक्सली हमले में शहीद हो गए थे। यह हमला अरनपुर इलाके में हुआ था। इस नक्सली हमले में दो पुलिसकर्मी और दूरदर्शन के एक कैमरापर्सन की मौत हो गई थी।  इसी हमले में राकेश कौशल भी शहीद हो गए थे।

रक्षाबंधन पर उनकी बहन कविता कौशल ने अपने भाई को याद करते हुए उनकी सर्विस गन पर राखी बांधी। दरअसल, वह सर्विस गन अब कविता कौशल को अलॉट हुई है। कविता कौशल ने छत्तीसगढ़ पुलिस में अपने भाई की जगह ली है। उन्होंने पुलिस विभाग से खास तौर से उसी सर्विस गन के लिए गुजारिश की थी जिसे कभी उनके भाई ने इस्तेमाल किया था। कविता दंतेश्वरी फाइटर्स में शामिल होना चाहती हैं और उस नक्सलवाद से मुकाबला करना चाहती हैं जिसने उनके भाई को उनसे छीन लिया। कविता के मुताबिक, “नक्सली डरपोक होते हैं। मैं दंतेश्वरी फाइटर्स में शामिल होकर अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहती हूं। मैं हर साल अपने भाई के रायफल को राखी बांधती हूं । मैने पुलिस की नौकरी इसीलिए ज्वाइन की है ताकि अपने भाई के हत्यारों से बदला ले सकूं।”

दरअसल, दंतेवाड़ा पुलिस ने ‘दंतेश्वरी लड़ाके’ दल का गठन किया है। यह राज्य की पहली महिला डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) की टीम है। राज्य के धुर नक्सल प्रभावित इलाके में ये महिला कमांडो डीआरजी के लड़ाकों का साथ दे रही हैं। राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा कार्यों के लिहाज से डीआरजी को सबसे बेहतर माना जाता है। यह दल स्थानीय युवा और आत्मसमर्पित नक्सलियों को खास ट्रेनिंग देकर बनाया गया है। क्योंकि ये इन्हीं क्षेत्रों के मूल निवासी हैं, इसलिए यहां के चप्पे-चप्पे से पूरी तरह वाकिफ हैं। डीआरजी ने पिछले कुछ सालों में नक्सल विरोधी कई अभियानों में सफलता पाई है और वर्तमान समय में यह दल अब नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबल का एक बड़ा हथियार साबित हो रहा है। डीआरजी का उद्देश्य माओवादी हिंसा को जड़ से उखाड़ फेंकना है।

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