छत्तीसगढ़: दंतेवाड़ा की ‘एसपीओ बस्ती’, जानें क्या है इसकी कहानी…

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में एक बस्ती है जिसका निक नेम है ‘एसपीओ बस्ती’। एसपीओ यानी विशेष पुलिस अधिकारी। यह बस्ती जिले की जुडूम पारा बस्ती है।

Naxals

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में एक बस्ती है जिसका निक नेम है 'एसपीओ बस्ती'। एसपीओ यानी विशेष पुलिस अधिकारी।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में एक बस्ती है जिसका निक नेम है ‘एसपीओ बस्ती’। एसपीओ यानी विशेष पुलिस अधिकारी। यह बस्ती जिले की जुड़ूम पारा बस्ती है। इस बस्ती में वे आदिवासी रहते हैं जो सलवा जुड़ूम शुरू होने से पहले नक्सल (Naxals) हिंसा की वजह से बेघर हुए थे। सलवा जुडूम के नाम पर इसे जुड़ूम पारा का नाम दिया गया। इस बस्ती का नाम ‘एसपीओ बस्ती’ इसलिए है कि इस बस्ती के हर घर में एसपीओ है।

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जुड़ूम पारा बस्ती।

जब सलवा जुड़ूम शुरू हुआ तो गांवों से पलायन कर आए युवाओं को बंदूक चलाने का तीन माह का प्रशिक्षण देकर विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के तौर पर भर्ती कर लिया गया। तब इस एसपीओ बस्ती में 11 परिवारों में 22 एसपीओ थे। जुड़ूम पर सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाया तो सरकार ने एसपीओ को सहायक आरक्षक के तौर पर पुलिस में भर्ती कर लिया। हालांकि यहां के चार एसपीओ ही सहायक आरक्षक बन पाए हैं, बाकी 18 नगर सेना में हैं और सरकारी अफसरों के बंगलों में तैनात हैं।

विकास की बात करने पर नक्सलियों ने किया था जानलेवा हमला

इंद्रावती नदी पार के एक गांव के सरपंच और उनके रिश्तेदार 2005 में रातों-रात भागकर यहां आए थे। नक्सलियों (Naxals) ने सरपंच पर प्राणघातक हमला किया था। तब से ये 11 परिवार वापस नहीं लौट पाए हैं। इस घटना के बाद सलवा जुडूम शुरू हुआ तो सबसे पहले यही लोग सामने आए थे। गांव में उनके कई एकड़ खेत हैं। यहां एक कमरे में रहने को मजबूर हैं। इंद्रावती नदी पार बंगोली पंचायत के सरपंच रहे सुदरूराम इच्छाम बताते हैं कि गांव के विकास की बात की तो एक रात नक्सली नेता राजमन ने सोते वक्त घर में घुसकर उसके सीने में गुप्ती घोंप दी थी। यह साल 2004 की घटना थी। पत्नी सुकारी ने कुल्हाड़ी लेकर नक्सलियों (Naxals) को दौड़ाया। रात के अंधेरे में घने जंगलों से होते हुए सुदरू और परिवार के अन्य लोग इंद्रावती के तट तक आए। वह घायल अवस्था में ही डोंगी के सहारे सबको निकाल लाए। सुदरू के पिता मुराराम की उम्र 102 साल है।

नक्सलियों ने कई निर्दोषों का खून बहाया

मुराराम कहते हैं 50 एकड़ जमीन, दर्जनों पशु, बाग सब छूट गया। आज मजदूरी करके जीवन चला रहे हैं। नक्सलियों (Naxals) की दहशत की वजह से न हम वहां जा पाते हैं न नदी उस पार से कोई यहां आ पाता है। एसपीओ कैंप के पंडरूराम कहते हैं कि साल 2001 में नक्सलियों ने गांव में उसके दोस्त बुराम की हत्या कर दी थी। 2004 में धारदार हथियार से नक्सलियों ने उनके पिता पर हमला किया। नक्सलियों ने उसके एक अन्य दोस्त रामाराम की हत्या 2009 में छिंदनार बाजार में कर दी थी। ये सब यहीं रहते हैं, गांव की याद तो आती है पर नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई का उनका जज्बा कम नहीं हुआ है। साथ ही नक्सलियों के खिलाफ उनकी इस लड़ाई में सरकार और प्रशासन भी उनके साथ मजबूती से खड़ी है। अब वह दिन दूर नहीं जब नक्सलवाद का पूरी तह सफाया हो जाएगा।

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