वो जादुई आवाज जिसने देश और दिल दोनों को एक धागे में पिरोया

Lata Mangeshkar

संगीत एक साधना है और सुर भगवान का दिया आर्शिवाद और ये आशिर्वाद हर किसी को नहीं मिलता। सुर कोकिला कही जाने वाली लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की आवाज जो पिछले 60—65 सालों से न केवल कानों में बल्कि रूह तक में गूंज रही है। इस मुकाम तक पहुचने का उनका ये सफर इतना आसान नहीं था। देश की स्वर कोकिला की पदवी धारण किए हुए इस महान गायिका ने आज जिंदगी के 90 साल पूरे किए हैं।
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जिनकी सुरीली आवाज की पूरी दुनिया कायल है, जिनकी सुर और ताल में सजी आवाज दशकों से दर्शकों का मन मोह रखी है। लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) जब गाती हैं तो लगता है जैसे प्रकृति का हर रूप उनके गीतों पर झूम रहा हो। लता जी ने अपने गायिकी के सफर में हिन्दी सिनेमा को ऐसे कई गीतों का खजाना दिया है जिसे लोगो ने अपने दिलों में आज भी संजो कर रखा है। ये नगमें आज संगीत की दुनिया के लिए अनमोल धरोहर बन चुके हैं। ये उनकी आवाज की कशिश ही थी कि जब उन्होंने 1962 में चीन के साथ हुई लड़ाई के बाद एक कार्यक्रम के दौरान “ऐ मेरे वतन के लोगों” गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखों से भी आंसू निकल पड़े ।

28 सितंबर, 1929 को मध्यप्रदेश में इंदौर शहर के एक मध्यम वर्गीय मराठी परिवार में लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) का जन्म हुआ था। 30 हजार से ज्यादा गाने गाने वाली सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को दुनिया के छह विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की डिग्री दी है। लेकिन सच्चाई यह है कि लता मंगेशकर ने सिर्फ कुछ महीने ही स्कूल में बिताए हैं। पांच वर्ष की आयु से ही लता जी अपने पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर के साथ नाटकों में अभिनय शुरू कर दिया था। लता जी के गाना सीखने की शुरुआत भी काफी रोचक तरीके से हुई। अपनी शुरुआती शिक्षा के बारे में लता बताती हैं कि “एक बार पिताजी अपने शागिर्द को संगीत सिखा रहे थे। अचानक उन्हें शाम को कहीं जाना पड़ गया। उन्होंने अपने शागिर्द से कहा कि तुम अभ्यास करो मैं आता हूं। मैं बालकनी में बैठी शागिर्द को रियाज करते सुन रही थी। गलत तरीके से गाते देख मैं उनके पास गई और कहा कि ये बंदिश तुम गलत गा रहे हो और उसे गाकर सुनाने लगी। इतनी ही देर में पिताजी आ गए। मुझे गाता देख उन्होंने कहा कि अपने घर में ग्वैया बैठा है और हम बाहर वालों को सिखा रहे हैं।“
Lata Mangeshkar

इसके बाद से ही वो अपने पिता से संगीत की शिक्षा लेने लगीं। लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) हमेशा से ही अपनी सुरीली आवाज़, जानदार अभिव्यक्ति और बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय क्षमता का उदाहरण रहीं । 1942 में 13 साल की छोटी उम्र में ही लता के सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। इसके बाद उनका पूरा परिवार पुणे से मुंबई आ गया। हालांकि लता को फिल्मों में अभिनय करना जरा भी पसंद नहीं था बावजूद इसके परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को उठाते हुए उन्होंने फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया। 1942 में लता को पहली बार फिल्म “मंगलगौर” में अभिनय करने का मौका मिला।

छोटी सी उम्र और पूरे परिवार की जिम्मेदारी, लता जी (Lata Mangeshkar) ने घर की जरुरतों को पूरा करने के लिए हर संभव कोशिश की। फिल्मों में अभिनय भी किया, लेकिन उनकी मंजिल अभिनय नहीं बल्कि गायकी थी। उनकी जिंदगी में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात साल 1945 में संगीतकार गुलाम हैदर से हुई।

लता जी (Lata Mangeshkar) ने जिस समय हिंदी फिल्मों में गायिकी की शुरुआत की उस दौरान नूरजहां, शमशाद बेगम और जोहरा बाई जैसी गायिकाओं का पूरी फिल्म इडस्ट्री पर राज हुआ करता था। किसी नए गायक का अपनी अलग पहचान बनाना काफी मुश्किल था। गुलाम हैदर साहब लता के गाने के अंदाज से काफी प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने फिल्म निर्माता एस. मुखर्जी से गुजारिश की कि वो लता को अपनी फिल्म शहीद में गाने का मौका दें। लेकिन एस. मुखर्जी को उनकी आवाज पसंद नहीं आई और उन्होंने लता को अपनी फिल्म में लेने से इंकार कर दिया। इस बात को लेकर गुलाम हैदर काफी गुस्सा हुए और उन्होंने कहा यही लड़की आगे इतना नाम कमाएगी कि बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक उसे अपनी फिल्मों में गाने के लिए गुजारिश करेंगे और बाद में फिर लता जी ने इस फिल्म के लिए गाने गाए। लता जी के टेलेंट को सच्ची कामयाबी तब मिली जब 1949 में उन्होंने “अंदाज”, “बरसात” और “महल” जैसी तीन जबर्दस्त संगीतमय फिल्मों में गाना गाया। उनकी “हाई-पिच” और सुरीली आवाज़ ने उस समय की भारी और नाक से गाई जाने वाली आवाज़ का असर धीरे धीरे खत्म कर दिया।

फ़िल्म महल में गाया उनका गाना आएगा आने वाला ने उन्हे कामयाबी की उस बुलंदी पर पहुंचा दिया जिसकी वो हकदार थी। कहते हैं कि इस गाने ने लता को लता और मधुबाला को मधुबाला बना दिया। मधुबाला के लिए लता की बेमिसाल आवाज़ और लता की बेमिसाल आवाज़ पर मधुबला की बेहतरीन एक्टिंग ने इस गाने को सुपर हिट बना दिया। पचास के दशक में आखिरकार गुलाम हैदर साहब की कही गई बात सच हुई और लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) शंकर जयकिशन, एस.डी.बर्मन जैसे नामी-गिरामी संगीतकारों की चहेती गायिका बन गईं। लता जी की अद्भुत और दिल को छू लेने वाली आवाज ने उन्हें गायकी का एक मजबूत स्तम्भ बना दिया।

Lata Mangeshkar

साहिर लुधियानवी के लिखे गीत और एस.डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में लता जी (Lata Mangeshkar) ने कई हिट गाने गाए। जिनमें से “अल्लाह तेरो नाम” काफी हिट हुआ। “नागिन” में बीन की धुन पर लता का गाया गाना.. “मन डोले मेरा तन डोले” आज भी लोगों के द्वारा पसंद किया जाता है। पचास के दशक में लता मंगेशकर ने गीतकार राजेन्द्र किशन के लिए सी. रामचन्द्र की धुनों पर कई गीत गाए, जिनमें फिल्म “अनारकली” का गाना “ये जिंदगी उसी की है” इन तीनों फनकारों की जोड़ी की बेहतरीन मिसाल है। साठ के दशक में हेमन्त दा के संगीत निर्देशन में “आनंद मठ” के लिए लता मंगेशकर ने “वन्दे मातरम..” गीत गाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई। इसी साल लता जी ने प्लेबैक गायकों के रायल्टी के मुद्दे पर मोहम्मद रफी के साथ गाना छोड़ दिया और 1957 से 62 के बीच लता ने एस. डी. बर्मन के साथ भी गाने नहीं गाये। लता का दबदबा कुछ ऐसा था कि वो अपनी जिद पर अड़ी रही और बर्मन साहब खुद उनके पास वापस आये। जिसके बाद रफी साहब ने लता जी के साथ “दिल पुकारे” जैसा हिट गाना गाया।

आखिरकार अनिल बिश्वास, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र जैसे सभी मंजे हुए संगीतकारों ने लता जी (Lata Mangeshkar) की प्रतिभा का लोहा माना। लता जी ने “दो आंखें बारह हाथ”, “दो बीघा ज़मीन”, “मदर इंडिया”, “मुग़ल ए आज़म” जैसी महान फ़िल्मों में गाने गाए हैं। लता जी ने 1958 की मधुमति फिल्म में “आजा रे परदेसी” गाने के लिये फिल्म फेयर अवार्ड भी जीता। ऋषिकेष मुखर्जी की “अनुराधा” में पंडित रवि शंकर की धुनों पर गाने गाये जिससे उन्हें काफी तारीफ भी मिली।

60 से लेकर 90 के दशक तक फिल्म जगत पर लता जी (Lata Mangeshkar) ने ऐसा दबदबा कायम किया कि उस दौर में किसी और गायिका का नाम लोगों को याद तक न रहा। हिन्दी सिनेमा के शो मैन कहे जाने वाले राजकपूर साहब लता की आवाज से इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने लता मंगेशकर को सरस्वती तक का दर्जा दे दिया था।

70 और 80 के दशक में लता जी (Lata Mangeshkar) ने तीन सबसे बडे संगीत निर्देशकों लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, आर.डी. बर्मन और कल्याण जी-आनंदजी के साथ काम किया। चाहें “सत्यम शिवम सुंदरम हो” , “शोले” या फिर “मुकद्दर का सिकंदर” तीनों में लता जी ही केंद्र में रहीं। इसी दौरान 1974 में लंदन के “रॉयल अल्बर्ट हॉल” में लता जी का कंसर्ट आयोजित हुआ। 80 के दशक में डिस्को के जमाने में लता जी ने अचानक गाना गाना काफी कम कर दिया हालांकि “राम तेरी गंगा मैली” के गाने हिट हुए थे। दशक खत्म होते होते, उनके गाये हुए “चाँदनी” और “मैंने प्यार किया” के रोमांस भरे गाने फिर से चार्टबस्टर पर टॉप पर पहुंच गये। तब से लता ने अपने आप को आर. के. फिल्म्स, राजश्री, यश चोपड़ा जैसे बड़े बैनरों के साथ ही जोड़े रखा। चाहे “हिना” के गाने हो या फिर “हम आपके हैं कौन”, “दिलवाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे”, “दिल तो पागल है” उनकी हर फिल्म का गाना लोगों के सीधा दिलों तक पहुंचा। लता जी के गानों की फेहरिस्त काफी लम्बी है जिसमें ये तय कर पाना मुश्किल है कि उनका कौन सा गाना सबसे बेहतर थे। ‘कभी कभी मेरे दिल में’, ‘नीला आसमां सो गया’, ‘मेरी बिंदिया तेरी निंदिया’, और “वीर जारा” का ‘तेरे लिए’, लता के ऐसे मशहूर गीत हैं जो उन्होंने यश चोपड़ा के लिए गाए। उनकी आवाज में इतनी ताजगी थी कि अगर उन्होंने तनूजा के लिए अपनी अवाज दी तो काजोल के गानों को भी उन्होंने गाया। बबीता और करीना, लता जी दोनों की ही आवाज बनी।

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लता जी (Lata Mangeshkar) का लगभग 6 दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। लता जी ने ना सिर्फ हिन्दी बल्कि बंगला, मराठी और असमी जैसी लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फिल्मी और गैर-फिल्मी गाने गाए हैं। उनकी एलबम “सजदा” लोगों ने खासी पसंद की जिसमें उन्होने जगजीत सिंह के साथ गजले गाई हैं। देश के किसी भी हिस्से में चले जाइए, भाषाएं बदल जाएगी लेकिन लताजी की आवाज उन के गाए गीत हर जगह सुनाई देगें। ये बहुत कम लोग जानते हैं कि लता जी ने पार्श्व गायन की शुरुआत 1942 में मराठी फिल्म “कीती हसाल” से की थी लेकिन इस गाने को फिल्म से हटा दिया गया था। बंगाली में भी उन्होंने कई हिट गाने गाए। इसके अलावा असमिया फिल्म “युग बटोर क्सुर” में लता मंगेशकर ने भूपेन हजारिका ने साथ गाना गाया।

लता जी (Lata Mangeshkar) ने सिर्फ अपनी गायकी के दम पर लोगों को अपना कायल बनाया है। ग़जल हो या भजन, फ़िल्मी गाना या शास्त्रीय संगीत, सभी धुनों पर लता की आवाज़ ख़ूब सजती है। लता जी के गुरू और उनके प्रशंसक उस्ताद गुलाम अली खान ने लता जी के बारे में कहा था, “कमबख्त! गलती से भी कभी बेसुरा नहीं गाती”। लता जी की सुरों पर पकड़ ही कुछ एसी थी। संगीत को परिभाषित करने वाली लता जी का जिंदगी जीने का ढंग उन्ही की तरह शालीन और साधारण था। संगीत ही उनका प्रेम था और संगीत ही उनकी साधना। लेकिन संगीत के अलावा उनके कुछ शौक जरूर थे।

बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत की स्वंर कोकिला लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) एक संगीतकार भी हैं। लेकिन वे अपनी संगीत देने की प्रतिभा को हमेशा छुपा कर रखना चाहती थी। उन पर आई एक किताब ”लता मंगेशकर, इन हर ओन वॉयस” से पता चला कि उन्हों ने मराठी फिल्मे ‘सधी मानस’ में आनन्दनघन नाम से संगीत दिया था जिसे महाराष्ट्र सरकार से श्रेष्ठि संगीत का पुरस्कालर भी मिला था। इसके अलावा उन्हे क्रिकेट और फोटोग्राफी का भी काफी शौक है। 1983 में भारत के विश्व कप जीतने पर लता मंगेशकर ने टीम को पुरस्कार देने के लिए पैसा जमा करने के मकसद से कई जगह शो किए।

सुर और संगीत से जुडी नयी प्रतिभाओं को मौका देने के लिए लता जी (Lata Mangeshkar) ने LM नाम से एक म्यूजिक कंपनी की भी शुरुआत की जिसका उद्घाटन दीदी के सबसे बड़े मुरीद या कहें प्रशंसक अमिताभ बच्चन ने किया था। लता जी के गानों की ही तरह उनकी उपलब्धियों की फेहरिस्त भी काफी लम्बी है। लेकिन बावजूद इसके लता जी को “मैं” की भानवा कभी छू भी ना सकी। इस मुकाम तक पहुंचने के बाद भी वो इतनी साधारण हैं कि आज भी रिकॉर्डिंग स्टूडियो में नंगे पैर ही जाती हैं।

संगीत जगत में अविस्मरणीय योगदान के लिए लता जी (Lata Mangeshkar) को 6 बार फिल्म फेयर और तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा लता मंगेशकर को वर्ष 1969 में पदमभूषण, 1997 में राजीव गांधी सम्मान,1999 में पदमविभूषण जैसे कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। साल 1989 मे उन्हें फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और सन 2001 में देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया। सन 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड भी लता मंगेशकर के नाम है।

ये लता जी (Lata Mangeshkar) का आत्म विश्वास ही था कि संघर्ष के दौर में भी उन्होंने कभी अपने मानदंडो से समझौता नहीं किया। कितने ही लोगो की वो प्रेरणा बनी। रियाज, उस्तादों के सबक और पार्श्वगायन की तकनीक को सीखने की ज़िद ने लता मंगेशकर के कंठ को तराशने का काम किया। सिनेमा जगत में जब भी महान गायकों का जिक्र होगा, शायद लता जी का नाम सबसे पहले लोंगों की जुबा पर आए।

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