फिर सामने आया नक्सलियों का दोहरा चरित्र, हाथ में हथियार और मांग विकास की…

खून-खराबा करने वाले नक्सलियों को अब विकास की चिंता सताने लगी है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में उन्होंने एक पर्चा जारी करके विकास के लिए 17 सूत्रीय मांग रखी है।

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नक्सलियों का पर्चा

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में इन दिनों एक पर्चा वायरल हुआ है। बताया जा रहा है कि इसे नक्सलियों की पामेड़ एरिया कमेटी ने जारी किया है। इस पर्चे में नक्सलियों ने सरकार के सामने विकास के लिए 17 सूत्रीय मांग रखी है। मांग की है कि पिछड़े-आदिवासी इलाके का सुचारू रूप से विकास किया जाए। स्कूल, अस्पताल एवं आश्रम खोले जाएं। साथ ही, पर्याप्त संख्या में डॉक्टर और शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। महिला सुरक्षा, किसानों की कर्ज माफ़ी, न्यूनतम समर्थन मूल्य, पुलिस कैम्पों को हटाया जाए एवं आंगनबाड़ी समेत तमाम संविदा कर्मियों का वेतन बढ़ाया जाए।

वहीं बीजापुर प्रशासन का इस मामले में कहना है कि ये अच्छी बात है कि नक्सली विकास की बात कर रहे हैं। उन्हें अब आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा से जुड़कर सरकार के साथ विकास में योगदान करना चाहिए।

पिछले कई सालों से सरकार की तरफ से रेड कोरिडोर में किए गए विकास कार्यों से स्थानीय लोगों खासतौर से युवाओं का इनकी तरफ रुझान कम हुआ है। जिस तरह से सड़कों का जाल बिछाया गया है, शहरों का नवीनीकरण हुआ, गांवों को शहरों से जोड़कर मुख्यधारा में लाने की कोशिश की गई, शिक्षा, रोजगार एवं व्यवसाय के कई केंद्र खुले, इन सब विकास कार्यों से आदिवासी समाज में उम्मीद की किरण जागी है। अब वो किसी के बहकावे में आने की बजाय आम जनमानस की तरह जीवन यापन करने में लग गए। बजाहिर, इससे नक्सलियों का प्रोपेगैंडा कमजोर पड़ने लगा है।

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नक्सलियों का पर्चा

अब सवाल ये है कि जब नक्सली खुद ही विकास का राग अलाप रहे हैं तो फिर दिक्कत क्या है। उनकी मंशा पर सवाल क्यों? तो जवाब ये है कि अगर उन्हें सच में विकास की चिंता होती, तो उनकी हाथों में हथियार नहीं होते। एक तरफ तो वो लगातार हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, दूसरी तरफ विकास का रोना रो रहे हैं। इसकी एक मौजूं वजह भी है। दरअसल, आदिवासी समाज में आज इनकी पैठ ख़त्म होती दिख रही है। खास तौर से युवा वर्ग इनसे दूर जा रहा है। अब ऐसे में हो सकता है कि विकास की माला जप कर ये फिर से उनके बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हों।

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