जोहरा सहगल: जिंदादिली और आत्म विश्वास की मिसाल थीं

जोहरा सहगल ने किसी से कहा था, ‘तुम अब क्या मुझे इस तरह से देखते हो जब मैं बूढ़ी और बदसूरत हो गई हूं। तब देखते, जब मैं जवान और बदसूरत थी।’

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जोहरा सहगल को भारत सरकार ने पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।

Zohra Sehgal: भारतीय सिने जगत की बेहद जिंदादिल एक्ट्रेस में शुमार जोहरा सहगल ने उस दौर में बॉलीवुड में आने का फैसला किया था जब महिलाएं फिल्मों में आने से कतराती थीं। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक किस्से।

जोहरा सहगल का मूल नाम था शाहबजादी जोहरा बेगम मुमताजउल्ला खान। थिएटर को अपना पहला प्यार मानने वाली जोहरा ने पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर में करीब 14 साल तक काम किया था। उनका जन्म हुआ था 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रोहिल्ला पठान परिवार में। पारंपरिक सुन्नी मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ीं जोहरा सहगल बचपन से ही कुछ बागी स्वभाव की थीं। बचपन में ही अपने चाचा के साथ भारत एशिया और यूरोप की बड़ी सैर की थी उन्होंने। 1935 में नृत्य गुरू उदयशंकर के नृत्य समूह से वह जुड़ गईं। फिर कई देशों की यात्राएं की। 8 साल तक वह इस डांस ग्रुप के साथ जुड़ी रहीं और यहीं उनकी मुलाकात हुई कामेश्वर नाथ सहगल से। जो उम्र में उनसे 8 साल छोटे थे। सहगल वैज्ञानिक, चित्रकार और नर्तक थे। बड़ा विरोध हुआ। लेकिन दोनों ने शादी कर ली। दो बच्चे हुए उनके, बेटी किरण सहगल ओडिशी डांसर हैं और बेटे पवन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन से जुड़े हैं। उनकी शादी मुंशी प्रेमचंद की पोती सीमा राय से हुई है।
जोहरा सहगल को भारत सरकार ने पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। जोहरा सहगल जब 5 साल की थीं तभी उनके मामू ने उनको गोद ले लिया था। वह मुंबई में भारतीय नौसेना में कमोडोर थे, जो विभाजन के बाद कराची चले गए। जोहरा के बड़े भाई जकाउल्ला इंजीनियर थे, जिन्होंने कोलकाता में जकारिया पुल बनाने में बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। बाद में वह भी कराची चले गए थे, जहां कराची पोरट्रस्ट के वह चीफ इंजीनियर बने। उनकी सबसे बड़ी बहन हाजरा बेगम पक्की कम्युनिस्ट थीं, स्वाधीनता सेनानी थीं और भारतीय राष्ट्रीय महिला संघ की फाइंडर मेंबर्स में से थीं। जोहरा सहगल खुद कभी पाकिस्तान नहीं जाना चाहती थीं। उनकी दो छोटी बहनें अमीना, जो शांति निकेतन में पढ़ी थीं, फिर लीड्स इंग्लैंड से जिन्होंने डबल एमए किया था और दूसरी बहन सबरा जिन्होंने लंदन से फिजिकल एजुकेशन की पढ़ाई की थी, वह जा कर पाकिस्तान में बस गईं। दोनों बहनों के साथ जोहरा सहगल के दो भाई भी पाकिस्तान चले गए। जोहरा सहगल को हमेशा लगता था कि उनके घरवाले कहां भारत छोड़कर पाकिस्तान चले जाएंगे। तो अपने घरवालों से इस तरह से बिछड़ने का गम जोहरा सहगल को काफी सालों तक सालता रहा।
यह तब की बात है जब लाहौर से जोहरा सहगल बंबई आकर रहने लगी थीं। फिल्मों में काम ढूंढ़ने, थिएटर में काम करने के लिए। वह पृथ्वीराज थिएटर में 1944 में शामिल हुईं और धीरे-धीरे इस थिएटर की वह लीड एक्ट्रेस बन गईं। उनके पति कामेश्वर सहगल अभी लाहौर में ही थे। वह वहां अपनी डांस एकेडमी को बंद करने और मुंबई शिफ्ट होने के प्रोसेस में थे। इन्हीं दिनों जोहरा सहगल की बहन और बहनोई भी बंबई आ गए थे, 41 पाली हिल के एक छोटे से फ्लैट में ये सब रहा करते थे। उसी फ्लैट में उनके साथ रहते थे चेतन आनंद (Chetan Anand), उनकी पत्नी उमा, देवानंद और विजय आनंद। यह वो दौर था जब देव आनंद (Dev Anand) फिल्मों में काम ढूंढ़ रहे थे, उनका स्ट्रगलिंग फेज था। रोज जब काम ढूंढ़ने के लिए देव साहब घर से निकलते उससे पहले शीशे के सामने खड़े हो बालों में कंघी करते हुए वह जोहरा सहगल से पूछा करते थे, दीदी, क्या आपको लगता है कि मुझे हीरो का काम मिल पाएगा। जोहरा सहगल ने चेतन आनंद को हमेशा बड़े आदर और कृतज्ञता के भाव से याद किया क्योंकि उनके स्ट्रगलिंग डेज में चेतन आनंद ने उन्हें, उनकी बहन को उनके परिवार को अपने फ्लैट में रहने की जगह दी थी।
साल 1959 में उनके पति कामेश्वर का असमय निधन हो गया। उसके बाद जोहरा सहगल दिल्ली आ गईं और यहां दिल्ली में नव स्थापित नाट्य अकेडमी की वह डायरेक्टर बन गईं। 1962 में एक ड्रामा स्कॉलरशिप लेकर वह लंदन गईं जहां उनकी मुलाकात हुई भारतीय मूल के भरतनाट्यम डांसर रामगोपाल से और उन्होंने चैल्सी स्थित उनके स्कूल में उदयशंकर शैली के नृत्य सिखाना शुरू कर दिया। यहीं उन्हें 1964 में बीबीसी पर रुडयार्ड किपलिंग की कहानी में काम करने का मौका मिला। ब्रिटिश टेलीविजन पर उनकी ये पहली भूमिका थी, उनका पहला ब्रेक था बीबीसी टीवी पर। इस सीरियल और जोहरा सहगल ने अपने काम से वहां पर खासी धूम मचाई। वापस आकर जोहरा सहगल फिर पृथ्वी थिएटर के साथ जुड़ गईं। रंगमंच से उनका जुड़ाव हमेशा बना रहा। वह वामपंथी विचारधारा से प्रेरित रंगमंच ग्रुप, थिएटर ग्रुप इप्टा में भी शामिल हुईं।
जिसने भी जोहरा सहगल के साथ काम किया उसने ही उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनके सेंस ऑफ ह्यूमर से लेकर काम के प्रति उनके कमिटमेंट तक, सबसे लोग बहुत ही इंप्रेस्ड और इंस्पायर होते थे। जब भी वह परदे पर आतीं या थिएटर के मंच पर नजर आतीं, उनकी शख्सियत में कुछ ऐसा करिश्मा होता था कि लोग उनकी तरफ खिंचे चले जाते थे। वह किसी के भी रेप्यूटेशन, किसी के भी रुतबे से जरा भी गश नहीं खाती थीं। ‘चीनी कम’ में उन्होंने अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में वह भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के सामने थीं। लेकिन उनकी परफॉर्मेंस, उनकी अदायगी में उस बात की छाया जरा भी नजर नहीं आई।
अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के साथ ‘चीनी कम’ में जितने भी सीन्स उनके हैं, वह सभी कमाल के हैं। जोहरा सहगल की बहन उजरा बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गई थीं। 40 साल तक दोनों बहनों की मुलाकात नहीं हुई। उजरा भी जोहरा की तरह नृत्य और अभिनय में पारंगत थीं। जब 80 के दशक में दोनों बहनों की दोबारा मुलाकात हुई तो वह क्षण, वह लम्हा यादगार बन गया। उस लम्हे को एक बहुत ही खूबसूरत नाटक में पिरोया भी गया।
जोहरा सहगल ऐसी शख्सियत थीं जिनके पास खुद पर हंसने का हुनर था। उनका एक कथन बड़ा मशहूर है, जब उन्होंने किसी से कहा था, ‘तुम अब क्या मुझे इस तरह से देखते हो जब मैं बूढ़ी और बदसूरत हो गई हूं। तब देखते, जब मैं जवान और बदसूरत थी।’ अब इस तरह की बात तो कोई जोहरा सहगल जैसी कॉन्फिडेंट शख्सियत ही कह सकता था। ‘चीनी कम‘ में उनको डायरेक्ट करने वाले आर बाल्की (R Balki) के मुताबिक, वह जितनी भी महिलाओं से अपनी जिंदगी में मिले हैं, उनमें सबसे असाधारण उन्हें लगी थीं जोहरा सहगल। एक बहुत ही कामयाब सैटिस्फाइंग, लंबी और फुलफिलिंग पारी खेलने के बाद जोहरा सहगल ने 10 जुलाई, 2014 को दुनिया से अलविदा कहा। उस समय उनकी उम्र थी 102 साल।

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