इंजीनियरिंग का ये स्टूडेंट ऐसे बना खूंखार आतंकी, ‘खलीफा’ बनने का सवार था जुनून

2010 में हुए तीन आतंकियों के एनकाउंटर के बाद भड़की हिंसा की घटना ने उस पर गहरा असर डाला था और इसी के चलते उसने पढ़ाई छोड़ी और यह कदम उठाया।

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त्राल एनकाउंटर में मारा गया खूंखार आतंकी जाकिर मूसा काफी पढ़ा-लिखा और टेक्नोलॉजी का जानकार था।

त्राल एनकाउंटर में मारा गया खूंखार आतंकी जाकिर मूसा काफी पढ़ा-लिखा और टेक्नोसेवी था। करीब 11 घंटे तक चले ऑपरेशन में सुरक्षाबलों ने मूसा को 23 मई, रात के करीब 2 बजे मार गिराया। वह बुरहान वानी का करीबी था और घाटी में हुई कई हिंसक वारदातों में शामिल था। जाकिर मूसा का पूरा नाम जाकिर रसीद भट्ट इलियास मूसा था। वह ए डबल प्लस (A++) कैटेगरी का आतंकी था, जिसके ऊपर 20 लाख रुपए का इनाम रखा गया था। जाकिर मूसा दक्षिण कश्मीर के अवंतीपोरा के त्राल के नूरपोरा का रहने वाला था। मूसा एक प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार से था। उसके पिता सिंचाई विभाग में कर्मचारी थे। मूसा का भाई शकीर श्रीनगर में डॉक्टर है, जबकि उसकी बहन जम्मू-कश्मीर बैंक में कार्यरत है।

मूसा को पुलवामा के जवाहर नवोदय विद्यालय में एडमिशन मिला था, लेकिन इसके बावजूद उसने अपने गांव के नूर पब्लिक स्कूल में ही पढ़ाई जारी रखी और 10वीं परीक्षा में 65.4 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। उसके बाद उसका एडमिशन नूरपुर के उच्चतर माध्यमिक स्कूल में हुआ था। उसने 12वीं भी फर्स्‍ट डिवीजन से पास की थी। 2011 में स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चला गया था। वहां के राम देव जिंदल कॉलेज से वह सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। लेकिन साल 2013 में परीक्षा में फेल होने के बाद मूसा ने कॉलेज छोड़ा दिया था और वापस घाटी लौट आया। कॉलेज छोड़ने के बाद जाकिर मूसा ने उसी साल, यानी 2013 में हिज्बुल मुजाहद्दीन को ज्वॉइन किया। 2016 में आतंकी बुरहान बानी के मारे जाने के बाद वह हिजबुल का डिविजनल कमांडर बना।

कहा जाता है कि 2010 में हुए तीन आतंकियों के एनकाउंटर के बाद भड़की हिंसा की घटना ने उस पर गहरा असर डाला था और इसी के चलते उसने पढ़ाई छोड़ी और यह कदम उठाया। पहले तो मूसा ने हिज्बुल मुजाहिद्दीन के साथ काम किया। पर, बाद में हिज्बुल से उसका मतभेद हो गया। मतभेद का कारण यह था कि मूसा कश्मीर की लड़ाई को राजनीतिक न मानकर धार्मिक मानने लगा था। मूसा कहा करता था कि ये लड़ाई सिर्फ कश्मीर के लिए नहीं बल्कि इस्लाम और काफिरों के बीच भी है। उसने एक वीडियो रिलीज कर हुर्रियर नेताओं के सिर कलम करने की बात कही थी। क्योंकि अलगावावादी कश्मीर की लड़ाई को राजनीतिक लड़ाई मानते हैं। उसके इस स्टेटमेंट से हिज्बुल ने खुद को उससे अलग कर लिया था। 2017 में सोपोर में बाकायदा हिज्बुल की ओर से इसके लिए पर्चे लगाए गए थे और दावा किया गया था कि मूसा सिक्योरिटी एजेंसियों से मिला हुआ है और आतंकियों को मारने के लिए सेना को सूचना देता है।

हिज्बुल से अलग होने के बाद जुलाई, 2017 में मूसा ने अंसार गजावत-उल-हिंद नाम का एक संगठन बना लिया। यह अलकायदा से जुड़ा हुआ संगठन था। जाकिर मूसा घाटी में इस्लामिक स्टेट की स्थापना करना चाहता था। मूसा अपने आतंक को सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं रखना चाहता था। ऐसे में उसने पाकिस्तान में रहने वाली खालिस्तानी फोर्स और बब्बर खालसा आतंकियों से संबंध बनाने की भी कोशिश की। भारत के लिए वह बुरहान की तरह बड़ा सिरदर्द बन गया था। सिक्योरिटी एजेंसियों के अनुसार, वह पंजाब में भी अपने आतंक के पांव जमाना चाहता था। अलकायदा के अलावा वह आईएसआईएस के संपर्क में भी था। इसी दौरान कश्मीर में कई जगहों पर ISIS के झंडे लहराए जाने का मामला भी सामने आया था। माना जाता है यह मूसा का ही काम था। उसने घाटी में आईएसआईएस को फैलाने का काम शुरू कर दिया था।

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