आतंकवादियों के लिए यमराज थे शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया

Arun Jasrotiya

Tribute to Martyr Captain Arun Jasrotiya: जम्मू- कश्मीर पाकिस्तान संचालित आतंकवादी गतिविधियों का मुंह तोड़ जवाब देते हुई भारत के वीर जवानों ने हमेशा अपने जीवन को देश पर बलिदान कर दिया है। इन्हीं जवानों में से एक थे पठानकोट जिले के सुजानपुर निवासी शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया (Arun Jasrotiya)। शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया (Arun Jasrotiya) महज 27 साल की उम्र में ही अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए आतंकियों से लोहा लिया था। हालांकि इस लड़ाई में अरुण वीरगति को प्राप्त हुई लेकिन उनका नाम शहीदों की लिस्ट में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया।

Arun Jasrotiya

शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया (Arun Jasrotiya) का जन्म 16 अगस्त 1968 को सुजानपुर में हुआ था। उनके पिता कर्नल प्रभास सिंह जसरोटिया भी भारतीय सेना में अपनी बहादुरी के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी माता सत्या देवी घर की जिम्मेदारियों का निर्वहन करती हैं। अरुण ने इंटर तक की पढ़ाई पठानकोट के केंद्रीय विद्यालय से पूरी की और उसके बाद भारतीय सेना में शामिल होने के लिए कड़ी मेहनत करने लगे। घर में पिता से बहादुरी के किस्से सुन सुन कर अरुण ने भी सेना में जाने का मन बना लिया था। 1987 को अरुण ने देश सेवा की भावना से ओत प्रोत होकर भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर ज्वाइनिंग की। अरुण को भारतीय सेना के बिहार रेजीमेंट में शामिल किया गया।

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साल 1992 में अरुण (Arun Jasrotiya) को पैरा कमांडो मे शामिल किया गया। इस दौरान उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र कुपवाडा में हुई। 15 सितंबर 1995 को उन्हें सूचना मिली कि लोलाव घाटी के पास मौजूद गुफा में कुछ आंतकवादी छुपे हुए हैं, अरुण बिना एक पल गंवाए अपनी सेना की टुकड़ी को लेकर उन आंतकियों से मुकाबला करने चल दिए। इस दौरान अरुण और उसके साथियों ने 300 मीटर पहाडी की चढ़ाई करके दुश्मनों के उपर मौत बनकर टूट पड़े। अरुण ने पूरे मिशन को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उसकी भनक भी दुश्मनों को नहीं चली और सेना के इस कार्यवाई में कई आतंकी मारे गए। हालांकि दोनों तरफ से हो रही गोलीबारी में अरुण भी जख्मी हो गए और उनके साथियों ने उन्हें फौरन अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन भारत मां के इस वीर सपूत को बचाया नहीं जा सका।

26 सिंतबर 1995 को कैप्टन अरुण जसरोटिया (Arun Jasrotiya) अपनी भारत मां की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। पंजाब सरकार ने अपने इस वीर को निशाने खालसा वीरता पुरस्कार से नवाजा और भारत सरकार ने अरुण को इस बहादुरी के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया।

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