जापान के इस भारतीय दामाद ने की थी ‘आजाद हिंद फौज’ की स्थापना

भारतीय इतिहास में कुछ नाम पन्नों में दबे रह गए हैं। वो नाम जो इतिहास के पन्नों में तो दर्ज हैं लेकिन कभी लोगों की जुबान पर नहीं रहे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में रास बिहारी बोस एक ऐसा ही नाम है।

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4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने 'इंडियन इंडिपेंडेंस लीग' का नियंत्रण और नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस के हवाले कर दिया।

भारतीय इतिहास में कुछ नाम पन्नों में दबे रह गए हैं। वो नाम जो इतिहास के पन्नों में तो दर्ज हैं लेकिन कभी लोगों की जुबान पर नहीं रहे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में रास बिहारी बोस एक ऐसा ही नाम है। आज इनकी जयंती है। रास बिहारी बोस भारत के एक महान क्रान्तिकारी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध गदर षड्यंत्र एवं आजाद हिन्द फौज के संगठन का कार्य किया। इन्होंने न केवल भारत में कई क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, बल्कि विदेश में रहकर भी वह भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के प्रयास में आजीवन लगे रहे।

रास बिहारी बोस का जन्म 25 मई, 1886 को बंगाल में बर्धमान जिले के सुबालदह गांव में हुआ था। स्कूल के दिनों से ही वह क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर आकर्षित थे। बहुत ही कम उम्र में उन्होंने क्रूड बम बनाना सीख लिया था। बंकिम चंद्र और विवेकानंद को पढ़ते-पढ़ते उनके अंदर क्रांति का जज्बा पैदा हुआ। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद और सुरेंद्रनाथ बनर्जी के राष्ट्रवादी भाषणों से उनके अंदर क्रांति की ज्वाला और तेज जलने लगी। प्रथम सशस्त्र क्रांति की योजना रासबिहारी बोस के ही नेतृत्व में निर्मित हुई थी। साल 1912 में वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने वालों में रास बिहारी बोस भी शामिल थे। रास बिहारी बोस आजाद हिंद फौज के आधार स्तंभ थे।

उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना कर उसकी कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंपी थी। बीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में जितने बड़े क्रांतिकारी षड़यंत्र हुए थे, उन सबके सूत्रधारों में शामिल थे रास बिहारी बोस। रास बिहारी बोस उन कुछ लोगों में से थे जिन्होंने देश से बाहर जाकर विदेशी राष्ट्रों की सहायता से भारत की मुक्ति का रास्ता निकालने का प्रयास किया। रास बिहारी बोस ने 12 मई, 1915 को कोलकाता छोड़ा। वे 22 मई, 1915 को सिंगापुर और वहां से टोकियो पहुंचे। उन्होंने अपना निवास 17 बार बदला। इसी बीच में वे गदर पार्टी के हरबंस लाल गुप्ता एवं भगवान सिंह से मिले।

पहले महायुद्ध में जापान ब्रिटेन का मित्र राष्ट्र था तथा उसने रास बिहारी एवं हरबंस लाल को अपराधी घोषित करने का प्रयास किया। हरबंस लाल अमेरिका भाग गए। रास बिहारी की मदद जापानियों ने की। जापान से सुभाष चंद्र बोस का नाता हमारे देश में सबको पता है लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि जापान में इतिहास पढ़ने-पढ़ाने वाले लोगों और राजनेता-राजनयिकों को छोड़ दिया जाए तो सुभाष चंद्र बोस को जानने वाले उंगलियों पर हैं और एक दूसरे बोस को आज हर जापानी घर में जाना जाता है और जानने की वजह भी खासी अजब है। वो क्रांतिकारी जिसने आजाद हिंद फौज की नींव रखी, उसका झंडा और नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस के हवाले किया, उसको एक खास किस्म की करी को ईजाद करने के लिए सारे जापान में जाना जाता है।

जापान में उनको नाकामुराया बेकरी मालिक के घर में छुपा दिया गया। रास बिहारी ने महीनों तक अपनी पहचान छुपाये रखा। बाहर निकलना मुमकिन नहीं था, ना बाहरी दुनिया से कोई रिश्ता था। ऐसे में वो बेकरी के लोगों और बेकरी मालिक के परिवार के साथ घुलमिल गए, बेकरी में काम करने लगे। बेकरी के लोगों को भारतीय खाना बनाना सिखाने लगे। इसी दौरान उन्होंने एक प्रयोग किया और एक जापानी डिश को भारतीय स्टाइल में बनाया, जो सबको काफी पसंद आई। उसे इंडियन करी नाम दिया गया। धीरे-धीरे वो इतनी मशहूर हो गई कि आज जापान के हर रेस्तरां में मिलती है। सबसे पहले नाकामुराया बेकरी ने ही उसे अपने रेस्तरां में 1927 में इंडियन करी के नाम से लॉन्च किया था।

खैर, बेकरी में काम के दौरान ही जापान में एक ब्रिटिश शिप में आग लग गई, जिसमें रास बिहारी से जुड़े कागजात भी जलकर खाक हो गए। जापान सरकार ने भी डिपोर्टेशन का ऑर्डर वापस ले लिया। अब रास बिहारी जापान में आजादी से घूम सकते थे। लेकिन बेकरी के मालिक ने उनसे अपनी बेटी तोशिको से शादी करने का आग्रह किया। जो कई सालों से तहखाने में रह रहे रास बिहारी के लिए खाना लाती थी। एक अनजाना सा रिश्ता उस जापानी लड़की से उनका जुड़ गया था। उन्होंने 1916 में तोशिको से शादी कर ली और 1923 में जापान की नागरिकता ले ली। अगले कुछ सालों तक रास बिहारी घर गृहस्थी में मशगूल हो गए, दो बच्चे हुए। जापान के रंग में ही रंग गए थे रास बिहारी बोस। उनकी संस्कृति, भाषा, व्यवहार को अपना लिया था। पर, अचानक 1925 में उनकी पत्नी की निमोनिया से मौत हो गई।

पत्नी की मृत्यु के बाद वे फिर स्वतंत्रता संग्राम सक्रिय हो गए। उन्होंने ए.एम.नायर के साथ जापानी शासन को भारत के बाहर भारत की आजादी के आंदोलन में मदद के लिए राजी किया। बोस ने 28 से 30 मार्च, 1942 तक टोक्यो में एक सम्मेलन का आयोजन किया। उसी सम्मेलन में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना का फैसला लिया गया। स्वतंत्रता आंदोलन को शक्तिशाली बनाने के लिए रास बिहारी बोस ने 21 जून, 1942 को बैंकाक में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग दूसरी कॉन्फ्रेंस आयोजित की। आई.एन.ए., इण्डियन नेशनल लीग की सैन्य शाखा के रूप में सितम्बर, 1942 में गठित की गयी। रास बिहारी बोस का विश्वास था कि सुसंगठित सशस्त्र क्रांति से ही देश को आजाद किया जा सकता है।

उनका यह भी विश्वास था कि इस क्रांति को सफल बनाने में ब्रिटिश विरोधी देशों की सहायता आवश्यक है। लीग में शामिल होने के लिए सुभाष चंद्र बोस को आमंत्रित करने का फैसला लिया गया। उस समय नेताजी बर्लिन में थे। मई, 1943 में नेताजी जापान पहुंचे। दोनों देशभक्तों की वहां मुलाकात हुई। 4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने ‘इंडियन इंडिपेंडेंस लीग’ का नियंत्रण और नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस के हवाले कर दिया। क्योंकि वे स्वयं वृद्धावस्था में पहुंच गए थे। रास बिहारी बोस उसके बाद उनका ज्यादा साथ नहीं दे पाए क्योंकि फेफड़ों में संक्रमण के चलते उनको हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा था, लेकिन जापान में अपने नाम और रिश्तों के जरिए सुभाष चंद्र बोस की जो मदद हो सकती थी, उन्होंने की।

बाद में सुभाष चंद्र बोस ने आई.एन.ए. का पुनर्गठन आजाद हिन्द फौज के नाम से किया। जापान सरकार ने जापान के इस भारतीय दामाद को जापान के दूसरे सबसे बड़े अवॉर्ड ‘ऑर्डर ऑफ दी राइजिंग सन’ से सम्मानित किया। नेताजी ने कहा था कि रास बिहारी बोस पूर्व एशिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जन्मदाता थे। भारत को अंग्रेजी हुकुमत से मुक्ति दिलाने का सपना लिए भारत माता का यह वीर सपूत 21 जनवरी, 1945 को परलोक सिधार गया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

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