जानिए Indian Army के उन रेजीमेंट के बारे में जिनके नाम से ही कांपते हैं दुश्मन

भारतीय सैनिक अपनी बहादुरी के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। उनकी बहादुरी के एक से बढ़ कर एक किस्से मशहूर हैं। भारतीय सेना के अलग-अलग रेजीमेंट्स हैं। जिनकी अपनी खास पहचान है।

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भारतीय थल सेना (Indian Army) (फाइल फोटो)

भारतीय सैनिक अपनी बहादुरी के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। उनकी बहादुरी के एक से बढ़ कर एक किस्से मशहूर हैं। भारतीय सेना (Indian Army) के अलग-अलग रेजीमेंट्स हैं। जिनकी अपनी खास पहचान है। तो आइए जानते हैं देश के उन रेजीमेंट्स के बारे में जिनके नाम से ही दुश्मन कांपते हैं। 

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ग्रेनेडियर्स रेजीमेंट:

Indian Army में ग्रेनेडियर्स का गठन ब्रिटिश-काल में ही हो गया था, लेकिन बाद में इस सैन्य इकाई का नाम 1945 में परिवर्तित कर दिया गया। इस यूनिट ने दोनों विश्वयुद्धों और स्वतंत्र भारत के लिए लड़े सभी मुद्दों में अपने युद्ध कौशल का लोहा मनवाया था। ग्रेनेडियर्स Indian Army के सबसे मजबूत रेजीमेंट्स में से एक माने जाते हैं। ग्रेनेडियर्स का युद्धनाद और ध्येय वाक्य “सर्वदा शक्तिशाली” है, जिसका मतलब हर परिस्थिति में मजूबत रहने वाला है। ग्रेनेडियर्स ने अपनी प्रतिष्ठा और ध्येय वाक्य को चरितार्थ करने के अनेकों उदाहरण पेश किए हैं, जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे। भारतीय सेना में ग्रेनेडियर्स की 19 टुकड़ियां सेवा दे रही हैं, जो युद्ध काल में किसी भी तरह के आक्रमण का जवाब देने में सक्षम है। इनका मुख्य कार्यालय मध्यप्रदेश के जबलपुर में स्थित है। अक्टूबर 1947 में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान को बढने से रोकने के लिए, ग्रेनेडियर्स को भेजा गया। पाकिस्तानी हमलावरों के कश्मीर में प्रवेश को रोकने के लिए ग्रेनेडियर्स को ‘गुरेज’ घाटी को घेरना जरूरी हो गया था। कई दिनों तक चले युद्ध में ग्रेनेडियर्स ने पाकिस्तानी सेना और आतंकियों पर बुरी तरह पराजित कर खदेड़ दिया। इस निर्णायक जीत के लिए 28 जून 1948 को इस यूनिट को “गुरेज” नामक युद्ध पदक से नवाजा गया।

गोरखा रेजीमेंट:

गोरखा रेजिमेंट की शुरुआत 1815 में हुई थी। उस दौरान यह रेजिमेंट ब्रिटिश इंडियन आर्मी का हिस्सा थी। बाद में जब भारतीय थल सेना वजूद में आई तो इसका नाम ‘गोरखा रेजिमेंट’ रखा गया। युद्ध में अपनी बहादुरी और अक्रामकता के लिए पहचाने जाने वाले ‘गोरखा’ भारतीय सेना के सबसे बेहतरीन सैनिकों में से एक माने जाते हैं। अपनी निडरता के चलते इस रेजिमेंट को भारतीय सेना द्वारा कई महत्वपूर्ण पदक और सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। हर देश की सेना के लिए यह ज़रुरी होता है कि उसके सैनिक बेखौफ होकर लड़ें, ताकि दुश्मन के हर नापाक मंसूबों पर पानी फेरा जा सकें। गोरखा रेजिमेंट के सिपाहियों को इसमें अव्वल माना जाता है। भारतीय सेना में हर रेजिमेंट की एक खास पहचान होती है। जैसे कुमांऊ रेजिमेंट की पहचान ‘शेर’ के सिंबल से होती है। डोगरा रजिमेंट की पहचान ‘चीते’ से होती है। ठीक वैसे ही गोरखा रेजिमेंट की पहचान 12 इंच लंबी और मुड़ी हुई ‘खुकरी‘ से होती है। यह खुकरी का सिंबल अधिकारी से लेकर सिपाही तक की वर्दी के कंधों और सेना की टोपी पर बना होता है। इस खुकरी का इस्तेमाल सुरक्षा के लिए करता है गोरखा सैनिक, फिर चाहे वह खुद की हो या फिर देश की। ऐसे मौके आए हैं, जब गोरखा के सैनिकों ने सिर्फ अपनी खुकरी के बल पर आम लोगों की जान बचाई। खुकरी एक तरह का धारधार खंजर होता है। युद्ध के दौरान गोरखा दुश्मन का सिर काटने के लिए इस खुकरी का इस्तेमाल करते हैं। ‘आइएमए’ में ट्रेनिंग पूरी करने के बाद जब आर्मी ऑफिसर को गोरखा रेजिमेंट में भेजा जाता है, तब उन्हें वहां ‘खुकरी’ जरुर दी जाती है।

पंजाब रेजीमेंट:

‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ तथा ‘बोल ज्वाला माता की जय’ का युद्ध घोष करने वाली पंजाब रेजीमेंट भारत के सबसे पुराने फौजी रेजीमेंट में से है। भारत-पाक बंटवारे के समय पंजाब रेजीमेंट का भी बंटवारा हुआ। जिसका पहला हिस्सा पाकिस्तान को मिला, तो दूसरी बटालियन भारत को। पंजाब रेजीमेंट विदेशों में शांति कार्यक्रमों में काफी सक्रिय रही। लोगेंवाला की लड़ाई में पंजाब रेजीमेंट का जौहर हम सभी देख चुके हैं जिसने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी थी।

राजपूत रेजीमेंट:

इस रेजीमेंट की शुरुआत सन 1778 में तब हुई, जब 31वीं रेजीमेंट (बंगाल नेटिव इनफ़ेंट्री) में तीसरी बटालियन बनी थी। इस बटालियन ने ही हैदर अली से युद्ध में कुड्डालोर पर विजय पाई थी। उनकी इसी बहदुरी के लिए ‘विपरीत दिशाओं मे बने कटारों’ का राज चिन्ह प्रदान किया गया था, जो आज तक राजपूत रेजीमेंट का बैज है। पहली बटालियन ने दिल्ली के युद्ध में इंपेरियाल कोर्ट में मराठों को परस्त कर दिया था। भारतीय सेना की एक पैदल सेना रेजीमेंट है। यह सेना की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार विजेता रेजीमेंट है। रेजीमेंट ने वर्ष 1839-1947 के बीच 19 और स्वंत्रता के पश्चात आठ महावीर चक्र, आठ कीर्ति चक्र, 32 शौर्य चक्र, 39 वीर चक्र और 170 सेना पदक सहित ढेरों शौर्य सम्मान प्राप्त किये हैं। अपने 200 से अधिक वर्षों के जीवन में, रेजीमेंट ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध सहित भारत और विदेशों में अनेक युद्धों में भाग लिया है। आखिर सेना में क्यों खास है ‘जाट रेजीमेंट’ आइये जानते हैं।

जाट रेजीमेंट:

साहस, वीरता और देशभक्ती का एक उदाहरण है जाट रेजिमेंट। जाट रेजिमेंट का इतिहास Indian Army का इतिहास है। एक मात्र यही रेजिमेंट है जिसे रॉयल का खिताब मिला है। 1971 भारत-पाक युद्ध – जिसमें जाटों ने फजिल्का को देश के नक्शे से मिटने से बचाया..भारत-पाक सीमा पर बसे फाजिल्का ने आजादी के बाद जहां एशिया में प्रसिद्ध ऊन मंडी व ड्राइपोर्ट होने का गौरव खोया है, वहीं सरहदी इलाका होने के कारण हमेशा भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले पाकिस्तान के हमलों को भी झेला है। ठीक 37 साल पहले तीन दिसंबर 1971 में नापाक इरादों के साथ भारत पर हमला करने वाली पाकिस्तानी सेना ने सीमा के अन्य स्थानों के साथ फाजिल्का पर भी जोरदार हमला बोला था,लेकिन भारत के मुट्ठी भर जियाले जाट सैनिकों ने फाजिल्का की सरजमीं पर दुश्मन के नापाक कदम नहीं पड़ने दिए।

बिहार रेजीमेंट:

बिहार रेजिमेंट सेंटर का भारतीय थल सेना में नामांकरण वैसे तो बहुत ही नवीन है। फिर भी इतिहास में जब से सिंकदर महान ने भारत पर आक्रमण किया। तब से इसका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इस रेजिमेंट के रण बांकुरे जवान उसी प्राचीन मगध साम्राज्य से संबंधित है। जिसका नाम सुनकर महान से महान योद्धा भी थर्रा उठते थे। बिहारियों ने हमेशा ही जननी जन्मभूमि की बलि वेदी पर अपना शीर्ष अर्पण किया है। मातृभूमि को दासता और गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वालों में इन्होंने अपना नाम अपने रक्त से लिखा है।

कुमाऊं रेजीमेंट:

कारगिल विजय दिवस की पूर्व बेला पर कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर रानीखेत में आयोजित कुमाऊं, नागा रेजीमेंट के भव्य शपथ ग्रहण समारोह में देश की आन, बान और शान की रक्षा संकल्प लेकर 174 जवान Indian Army के अभिन्न अंग बन गए। मुख्य अतिथि केआरसी के कमांडेंट ब्रिगेडियर आतेश चहार ने कुमाऊं, नागा रेजीमेंट के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालते हुए नए जवानों से सीमाओं की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के लिए भी तत्पर रहने का आह्वान किया। जवानों के परिजनों को भी गौरव मैडल देकर सम्मानित किया गया। केआरसी रानीखेत में कड़ा प्रशिक्षण पूर्ण कर चुके रिक्रूटों के लिए सोमवार को सोमनाथ मैदान में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में जोश व जज्बे से लबरेज जवानों की टुकड़ियों ने परेड एड्जूटैंट मेजर वैभव साह के निर्देशन व परेड कमांडर ललित सिंह के नेतृत्व में शानदार मार्चपास्ट कर मुख्य अतिथि को सलामी दी। रेजीमेंट बैंड की देशभक्ति की स्वर लहरियों के बीच जवानों के कदमताल ने उपस्थित लोगों का दिल जीत लिया। समारोह के मुख्य अतिथि केआरसी के कमांडेंट ब्रिगेडियर आतेश चहार ने परेड का निरीक्षण किया। धर्मगुरु सूबेदार प्रकाश चंद्रा ने राष्ट्रध्वज व धर्मग्रंथों का साक्षी रख जवानों को देश सेवा की शपथ दिलाई। अंतिम पग पार करते ही भारतीय सेना को 174 जांबाज जवान मिल गए।

पढ़ें: ‘करम ही धरम’, बिहार रेजीमेंट ने अब तक कई बार दुश्मनों के दांत किए खट्टे

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