दशकों बाद वतन लौटेगी मिट्टी, सेकेंड वर्ल्ड वॉर में गाड़े थे जांबाजी के झंडे

करीब 75 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इटली में ब्रिटिश इंडियन आर्मी की फ्रंटियर फोर्स राइफल के सिपाही रोहतक के झज्जर के गांव नौगांवा के हरिसिंह और नंगथला गांव के पालुराम भी शहीद हो गए थे।

Martyr Hari Singh

करीब 75 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध में भारत के वीर जवानों ने भी अपनी कुर्बानी दी थी।

करीब 75 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) में भारत के वीर जवानों ने भी अपनी कुर्बानी दी थी। इस युद्ध के दौरान इटली में शहीद हुए ब्रिटिश इंडियन आर्मी की फ्रंटियर फोर्स राइफल के सिपाही रोहतक के झज्जर के गांव नौगांवा के हरि सिंह (Martyr Hari Singh) और नंगथला गांव के पालुराम भी शहीद हो गए थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्रंटियर फोर्स राइफल्स की तरफ से लड़ते हुए वे इटली में शहीद हुए थे। इटली सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में हरि सिंह की शहादत की पुष्टि की थी। उस समय उनके साथ हिसार के नंगथला गांव के रहने वाले पालुराम भी शहीद हुए थे। इस राइफल्स ने 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इटली जाकर युद्ध लड़ा था।

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हरि सिंह (Martyr Hari Singh) और पालुराम बतौर सिपाही फ्रंटियर फोर्स राइफल में भर्ती हुए थे। वे दोनों 13वीं फ्रंटियर फोर्स राइफल्स की चौथी बटालियन के जवान थे। जिसे 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मन इंफेंट्री डिवीजन के खिलाफ पोगियो अल्टो की लड़ाई में लगाया गया था। हालांकि, बंटवारे के बाद इस फोर्स को पाकिस्तान को सौंप दिया गया था।

दोनों सिपाही वर्ष 1944 में इटली में शहीद हो गए थे, लेकिन उनके शव नहीं मिले थे। दोनों को 13 सितंबर, 1944 को गुमशुदा घोषित कर दिया गया था। उस वक्त गांव वालों को हरि सिंह के गुमशुदा होने की जानकारी मिली थी। इसके बाद साल 1996 को इटली में मानव कंकाल के कुछ अवशेष मिले।

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साल 2012 में डीएनए जांच के दौरान खुलासा हुआ कि ये कंकाल करीब 20 से 22 वर्ष के युवकों के हैं और यूरोपीय नस्ल से मेल नहीं खाते। बाद में कॉमनवेल्थ ग्रेव कमिशन से मिले डेटा की जांच से खुलासा हुआ कि ये कंकाल ब्रिटिश इंडियन आर्मी की फ्रंटियर फोर्स राइफल के सिपाहियों के हैं।

इसके बाद जांच में दोनों के घरवालों का पता चला। दोनों सिपाहियों का इटली में अंतिम संस्कार कर दिया गया है। अब उनकी मिट्टी भारत आएगी। नेशनल डिफेंस कॉलेज की एक टीम इटली पहुंच गई है। यह टीम 31 मई के बाद अपने साथ झज्जर के शहीद हरि सिंह (Martyr Hari Singh) की अस्थियां लेकर भारत लौटेगी।

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ब्रिटिश इंडियन आर्मी के शहीद जवान हरि सिंह (Martyr Hari Singh) और पालुराम को सालों बाद अपने देश की मिट्टी नसीब होगी। शहीद हरिसिंह अविवाहित थे। लिहाजा, उनके शहीद होने के बाद उनके पिता मौलड़ राम को फौज की पेंशन मिलती रही थी। 1970 के करीब मौलड़ राम का स्वर्गवास होने के बाद पेंशन बंद हुआ था।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत से बड़ी संख्या में जवान ब्रिटिश सेना में थे और दूसरे विश्व युद्ध में न जाने कितने शहीद हो गए थे। तब इनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका था। सेना की सूचना के बाद जिला सैनिक बोर्ड ने हरि सिंह के परिवारीजनों तक यह सूचना पहुंचाई है। उनके गांव नौगांवा में शुक्रवार तक अस्थि कलश पहुंचने की बात कही गई है।

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घरवाले बताते हैं कि गांव में सेना की ओर से लगे भर्ती मेले में उनका चयन हुआ था। उन्होंने हरि सिंह (Martyr Hari Singh) को मिले सेना के मेडल भी संभाल कर रखे हैं। इस पर हरि सिंह का नाम लिखा हुआ है।

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गौरतलब है कि झज्जर के पलड़ा गांव के शहीद कैप्टन उमाराव सिंह यादव भी द्वितीय विश्व के वीर सैनिक रहे हैं। जिनको विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। इसी तरह ढाकला गांव के चौ. बदलूराम हैं, जिनको प्रथम विश्व युद्ध वीरता के लिए विक्टोरिया क्रांस से सम्मानित किया गया था।

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