Donald Trump Impeachment: महाभियोग के बाद भी नहीं गिरी डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता, ये है पूरा खेल

अमेरिकी संसद (American Senate) ने अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) पर चल रहे महाभियोग (Donald Trump Impeachment) की सुनवाई शुरू कर दी। यदि ट्रंप को महाभियोग (Donald Trump Impeachment) में लगे आरोपों का दोषी पाया जाता है तो उन्हें गद्दी छोड़नी होगी।

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अमेरिकी संसद ने अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर चल रहे महाभियोग की सुनवाई शुरू कर दी।

मंगलवार को अमेरिकी संसद (American Senate) ने अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) पर चल रहे महाभियोग (Donald Trump Impeachment) की सुनवाई शुरू कर दी। इसी साल अमेरिका में राष्ट्रपतीय और संसदीय चुनाव भी होने हैं और इन चुनावों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) का सामना करने के लिए विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic Party) की ओर से कौन खड़ा होगा इसका फ़ैसला होना है। यदि ट्रंप को महाभियोग (Donald Trump Impeachment) में लगे आरोपों का दोषी पाया जाता है तो उन्हें गद्दी छोड़नी होगी और उपराष्ट्रपति माइक पेंस को देश की बागडोर थामनी होगी।

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महाभियोग के बावजूद ट्रंप कॉन्फिडेंट दिख रहे हैं।

राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने का फ़ैसला संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में लिया जाता है जहां नवंबर 2018 के संसदीय चुनावों के बाद से विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic Party) का बहुमत है। प्रतिनिधि सभा मामले को संसद के प्रवर सदन सेनेट में भेजती है जहां सुपर सांसद या सेनेटर अदालती अंदाज़ में निष्पक्षता की शपथ लेकर आरोपों की सुनवाई करते हैं। सुनवाई की अध्यक्षता अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करता है और सेनेटर मतदान के ज़रिए तय करते हैं कि राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोप सही हैं या नहीं। यदि आरोप सही माने जाते हैं तो राष्ट्रपति को गद्दी छोड़नी होती है। लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ है। और न ही इस बार होने के कोई आसार हैं। क्योंकि सेनेट में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है। सौ सदस्यों वाले इस सदन में 53 सेनेटर रिपब्लिकन पार्टी के हैं। 45 सेनेटर डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic Party) के और दो निर्दलीय हैं।

लेकिन बात यहीं तक होती तो भी डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के अब तक के कारनामों को देखते हुए डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic Party) यह उम्मीद कर सकती थी कि कुछेक सेनेटर पार्टी निष्ठा को किनारे कर, शायद अंतरात्मा की बात सुन लें। या फिर आगामी चुनावों में अपनी सीटें बचाने के लिए महाभियोग (Donald Trump Impeachment) के पक्ष में वोट डाल जाएं। क्योंकि मौजूदा सेनेटरों में से 35 के कार्यकाल इसी साल ख़त्म हो रहे हैं और उन्हें इस साल नवंबर के राष्ट्रपतीय चुनावों के साथ अपने चुनाव भी लड़ने हैं। लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि महाभियोग पारित करने के लिए सेनेट में दो तिहाई बहुमत की ज़रूरत होती है। यानी कि कम से कम 67 सेनेटरों को महाभियोग (Donald Trump Impeachment) के पक्ष में वोट देना होगा। डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic party) के पास केवल 45 सेनेटर हैं। इसका मतलब हुआ कि रिपब्लिकन पार्टी के कम से कम 20 सेनेटरों को और दोनों निर्दलीयों को ट्रंप के ख़िलाफ़ वोट देना होगा। जिन 35 सेनेटरों को नवंबर में चुनाव लड़ने हैं उनमें से 23 रिपब्लिकन हैं। तटस्थता की शपथ की छोड़ उन सभी को अपनी सीटें जीतने की चिंता है। इसलिए वे हवा का रुख़ देखकर और अपने मतदाताओं का रुझान भांप कर ही वोट देंगे।

आम तौर पर महाभियोग शुरू होने के बाद राष्ट्रपतियों की लोकप्रियता तेज़ी से गिरती है। बिल क्लिंटन के साथ यही हुआ था। रिचर्ड निक्सन पर महाभियोग शुरू करने की प्रक्रिया को जैसे ही हरी झंडी दी गई, उनकी लोकप्रियता के सूचकांक ने बीस से पच्चीस अंकों का गोता खाया था। लेकिन हैरत की बात यह है कि डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के लोकप्रियता सूचकांक, जिसे अमेरिका में एप्रूवल रेटिंग कहते हैं, कोई कमी आती नहीं दिख रही है। यह सही है कि उनकी लोकप्रियता, दूसरे कार्यकाल के लिए कमर कसने वाले उनसे पहले के राष्ट्रपतियों की तुलना में बहुत कम है। राष्ट्रपति ओबामा की लोकप्रियता उनके कार्यकाल के चौथे साल में सत्तर के आसपास थी। जबकि ट्रंप (Donald Trump) की लोकप्रियता की सूई पैंतालीस पर अटकी हुई है।

लेकिन यह भी एक अचरज की बात है कि सेनेट में महाभियोग (Donald Trump Impeachment) की कार्यवाही शुरू होने की ख़बर के बाद भी उनके समर्थकों और विरोधियों के सूचकांकों के बीच की खाई टस से मस नहीं हुई है। बिल क्लिंटन पर जब महाभियोग शुरू हुआ था तब उनकी लोकप्रियता का समग्र सूचकांक तो साठ से ऊपर था। लेकिन उनका समर्थन करने वालों की तुलना में उनका विरोध करने वालों के सूचकांक में अचानक बीस अंकों का उछाल आ गया था। प्रेक्षक मानते हैं कि ट्रंप के समर्थन और विरोध के अंतर में बढोतरी न होना उनके समर्थकों की स्थिरता का परिचायक है। जिसका मतलब यह है कि उनके जनाधार पर महाभियोग का कोई असर नहीं हो रहा है। उल्टा हो सकता है कि इस तमाशे से उनका जनाधार और मज़ूबत हो जाए। आफ़ताब हुसैन साहब का एक शेर है:

जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं,

जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है।

फिर भी, यह एक ऐसा तमाशा है जिसे अमेरिका, हम और आप कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। क्यों नहीं कर सकता और इसके तार दुनिया की और किन-किन घटनाओं को साथ जुड़े हैं इसकी बात आगे करेंगे। पहले अमेरिकी राष्ट्रपतियों पर चले महाभियोग के इतिहास में थोड़ा झांकते चलें।

तिहत्तर वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अमेरिका के तीसरे और रिपब्लिकन पार्टी के पहले राष्ट्रपति हैं जिन पर महाभियोग चलाया जा रहा है। पहला महाभियोग 1868 में सत्रहवें राष्ट्रपति एंड्र्यू जॉन्सन पर चलाया गया था जो डेमोक्रेटिक पार्टी से थे। वे राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के उपराष्ट्रपति थे और अमेरिकी गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद लिंकन की हत्या कर दिए जाने की वजह से राष्ट्रपति बने थे। जॉन्सन पर मुख्य आरोप यह था कि उन्होंने सेनेट की सहमति हासिल किए बिना अपने युद्ध मंत्री एडविन स्टैन्टन को बर्ख़ास्त कर दिया था। राष्ट्रपति जॉन्सन और संसद के बीच कई मसलों को लेकर बराबर टक्कर चल रही थी। युद्ध मंत्री को हटाने से नाराज़ प्रतिनिधि सदन ने उन पर सत्ता का दुरुपयोग करने, संसद के काम में टांग अड़ाने जैसे ग्यारह आरोप लगाए थे। जिन पर सेनेट में सुनवाई चली परंतु जॉन्सन को सत्ता से नहीं हटाया जा सका क्योंकि दो तिहाई सेनेटर महाभियोग के पक्ष में वोट डालने के लिए राज़ी नहीं हुए। एक वोट कम रह गया था जिसकी वजह से एंड्र्यू जॉन्सन बच गए।

इसके बाद 1974 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया शुरू हुई। प्रतिनिधि सभा की प्रवर समिति ने वाटरगेट कांड को लेकर महाभियोग चलाने के लिए हरी झंडी दे दी थी। इस ख़बर के फैलते ही निक्सन की लोकप्रियता के सूचकांक ने करीब पच्चीस अंकों का गोता खाया। निक्सन को गद्दी बचाना नामुमकिन दिखाई देने लगा और उन्होंने अपनी रिपब्लिकन पार्टी का भविष्य बचाने के लिए इस्तीफ़ा दे दिया वरना वे महाभियोग का सामना करने वाले पहले रिपब्लिकन राष्ट्रपति बन जाते।

उसके बाद 1998 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर मोनिका लुइन्स्की सेक्स कांड में शपथ लेकर झूठ बोलने, मोनिका लुइन्स्की से झूठ बुलवाने और संसद को गुमराह करने के आरोपों पर महाभियोग चलाया गया। प्रतिनिधि सभा ने डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पर तीन आरोपों के साथ महाभियोग का प्रस्ताव तय करके सेनेट के पास भेजा लेकिन सुनवाई के दौरान क्लिंटन की लोकप्रियता का ग्राफ़ गिरने की बजाए ऊपर उठने लगा जिसे देखकर सेनेटरों के हाथ-पांव फूल गए और उन्होंने महाभियोग के प्रस्ताव को भारी बहुमत से रद्द कर दिया। इसलिए अब डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) रिपब्लिकन पार्टी के पहले ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं जिन पर महाभियोग का मामला सेनेट तक जा पहुंचा है।

डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) पर आरोप हैं कि उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति को फ़ोन करके यह दबाव डाला कि वे इस वर्ष के चुनाव में ट्रंप के ख़िलाफ़ खड़े होने की मुहिम में लगे पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडन के बेटे पर भ्रष्टाचार के एक घोटाले में जांच बैठाएं ताकि जो बाइडन को बदनाम किया जा सके और चुनावी लाभ उठाया जा सके। इस दबाव को बढ़ाने के लिए ट्रंप (Donald Trump) ने यूक्रेन को दी जाने वाली चालीस करोड़ डॉलर की रक्षा सहायता को रोका जिसे अमेरिकी संसद ने मंज़ूरी दे रखी थी। जब संसद ने इस मामले की पूछताछ करने और छानबीन करने की कोशिश की तो ट्रंप साहब (Donald Trump) के प्रशासन ने प्रक्रिया को लटकाने और जांच के काम में बाधा डालने की कोशिश की। तो उन पर दो आरोप तय हुए। राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डालते हुए सत्ता का दुरुपयोग करना और संसद के काम में बाधा डालने की कोशिश करना।

राष्ट्रपति ट्रंप (Donald Trump) और उनके समर्थक दोनों ही आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं और महाभियोग को चुनावी लाभ उठाने, राष्ट्रपति को बदनाम करने और राजनीतिक दुश्मनी निकालने का हथकंडा बताते हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के (Donald Trump) ट्वीटों, रैलियों में उनके बयानों और उनके समर्थकों के प्रचार को देखते हुए लगता है कि वे इस सारी प्रक्रिया को एक ऐसी नौटंकी के रूप में देखते हैं या पेश करने की कोशिश कर रहे हैं जिसका अंततः अगर कोई लाभ होगा तो वह उन्हीं को मिलेगा। वे महाभियोग की कार्यवाही को ट्रंप (Donald Trump) के ख़िलाफ़ नफ़रती नाटक के रूप में पेश करेंगे और अपने समर्थकों से एकजुट होने की अपील करेंगे। उनको लगता है कि यह मुफ़्त के चुनावी प्रचार मंच का काम करेगी।

यह सही है कि ट्रंप (Donald Trump) के दक्षिणपंथी जनाधार पर शायद महाभियोग का कोई असर न हो। लेकिन महाभियोग की कार्यवाही ट्रंप विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic Party) के जनाधार को लामबंद करने का काम भी कर सकती है। इसके धुंधले से आसार इस बात में देखे जा रहे है कि पहली बार सत्तासीन राष्ट्रपति को चुनौती देने वाले विपक्षी पार्टी के उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार से कहीं अधिक मात्रा में चंदा मिल रहा है। जी हां। अमेरिकी राष्ट्रपतीय और संसदीय चुनाव जनता से उगाहे गए चंदे से लड़े जाते हैं। जिस उम्मीदवार के पास जितना ज़्यादा चंदा जमा कर पाने की क्षमता होती है उसके चुनाव लड़ने और जीतने के आसार उतने ही प्रबल माने जाते हैं। ऐसे में ट्रंप (Donald Trump) का चुनावी चंदा उगाहने में विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों से पिछड़ना उनके लिए कोई शुभ संकेत नहीं है।

ऊपर से एक नई पुस्तक बाज़ार में आई है जिसे वॉशिंगटन पोस्ट के पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता पत्रकारों ने लिखा है। पुस्तक का शीर्षक है – A Very Stable Genius. पुस्तक का शीर्षक भ्रामक लग सकता है। क्योंकि यह राष्ट्रपति ट्रंप (Donald Trump) के विचित्र स्वभाव, उनकी बेढंगी शैली और राजनीतिक कूटनीतिक हरकतों के बारे में है, उनके जीनियस होने के बारे में नहीं। स्टेबल जीनियस दरअसल एक संक्षेपण है उस कानून का जिसे ट्रंप के चुने जाने के बाद संसद में रखा गया था यह निश्चित करने के लिए आगे से मानसिक स्वास्थ्य को परखे बिना किसी को अमेरिका का राष्ट्रपति न चुना जाए। यह प्रस्ताव पारित होगा या नहीं होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन यह पुस्तक इस समय अमेरिका में हाथों हाथ बिक रही है और लोगों को वे सब बातें याद दिला रही है जिन्हें याद करके आप ट्रंप (Donald Trump) के ख़िलाफ़ वोट करने को विवश हो सकते हैं।

शायद इसीलिए ट्रंप (Donald Trump) और उनके समर्थकों ने सेनेट की सुनवाई की रिपोर्टंग पर तरह-तरह के अंकुश लगा दिए हैं। सेनेटरों से कहा जा रहा है कि प्रेस से बात न करें। सीधी कार्यवाही तक जाने की इजाज़त केवल ट्रंप (Donald Trump) समर्थक चैनलों और अख़बारों को दी जा रही है और सोशल मीडिया पर कार्यवाही के ख़िलाफ़ सारे मोर्चे खोल दिए गए हैं।

यही नहीं, ईरान के ख़िलाफ़ हाल में खोला गया मोर्चा भी इसी रणनीति का हिस्सा है। जनरल सुलेमानी की गतिविधियों पर एक लंबे अरसे से नज़र रखी जा रही थी। दिसंबर में महाभियोग का प्रस्ताव तय होते ही उन्हें निशाना बना लिया गया ताकि महाभियोग से ध्यान हटाने में मदद मिल सके। अमेरिका में ऐसी परंपरा है कि जब भी राष्ट्रपति घरेलू संकट से जूझने लगते हैं तो विदेश में कहीं न कहीं मोर्चा खोल लेते हैं। क्लिंटन साहब ने महाभियोग रद्द हो जाने के बाद सर्बिया पर कार्रवाई की थी। ट्रंप ने पहले ही मोर्चा खोल लिया है। मुमकिन है कि महाभियोग में जनमत ख़िलाफ़ जाने लगे तो ईरान के ख़िलाफ़ कहीं न कहीं या फिर लेबनान में जो विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं वहां कोई न कोई मोर्चा खुल जाए। इसके परिणाम तेल की क़ीमतों के लिए या दुनिया की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के लिए जो हों। अमेरिका अब तेल के मामले में आत्मनिर्भर है इसलिए तेल की क़ीमतों का उस पर कोई असर नहीं होता। रही अर्थव्यवस्था की बात, तो चीन और यूरोप के सामने कभी भी कोई भी समझौते की गाजर लटका कर बाज़ारों को शांत किया जा सकता है। सब तमाशा है देखते रहिए। ग़ालिब का वह शेर है न –

बाग़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे,

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।

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