Chhattisgarh: 13 साल तक जिंदगी से जंग लड़ हार गए जवान बसंत नेताम, नक्सलियों से एनकाउंटर में हुए थे घायल

धमतरी जिले में कुकरेल उप-तहसील के सलोनी गांव के रहने वाले पुलिस आरक्षक बसंत नेताम ने देश की सेवा करने के लिए साल 1992 में पुलिस की नौकरी ज्वॉइन की थी।

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छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में घायल जवान बसंत नेताम ने 13 सालों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करने के बाद आखिरकार दम तोड़ दिया।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में घायल जवान बसंत नेताम ने 13 सालों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करने के बाद आखिरकार दम तोड़ दिया। इस बीच उन्होंने अपने इलाज पर अपनी पूरी जमा पूंजी खर्च कर दी।

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शहीद बसंत नेताम (फाइल फोटो)

उल्लेखनीय है कि Chhattisgarh के धमतरी जिले में कुकरेल उप-तहसील के सलोनी गांव के रहने वाले पुलिस आरक्षक बसंत नेताम ने देश की सेवा करने के लिए साल 1992 में Chhattisgarh पुलिस की नौकरी ज्वॉइन की थी। उनकी पोस्टिंग दंतेवाड़ा जिला के थाना गोलापल्ली में हुई थी। इस बीच साल 2006 में पोलिस पार्टी इंचार्ज एपीसी रामगोपाल के साथ गोलापल्ली इलाके में गश्त के दैरान उनकी टीम पर तारलामुड़ा-नालापल्ली तिराहा में घात लगाकर बैठे दर्जनों नक्सलियों ने हमला बोल दिया। दोनों ओर से अंधाधुंध फायरिंग हुई। इस गोली-बारी में एक के बाद एक तीन गोली बसंत नेताम को लगी। एक गोली उनकी किडनी और आंत को चीरते हुए पार हो गई।

गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी वह सीने पर कपड़ा बांधकर नक्सलियों से लोहा लेते रहे और दो नक्सलियों को मार गिराया। करीब 3 घंटे तक जख्मी हालत में वह मोर्चे पर डटे रहे थे। इसके बाद उन्हें हेलीकॉप्टर से इलाज के लिए रायपुर मेकाहारा लाया गया। यहां से उन्हें रामकृष्ण अस्पताल शिफ्ट कर दिया गया। करीब एक महीने तक बसंत नेताम कोमा में रहे। डॉक्टर्स के अनुसार गोली लगने से उनकी एक किडनी पूरी तरह क्षत-विक्षत हो चुकी थी। वहीं एक आंत में इंफेक्शन हो गया था। साथ ही उनके शरीर में खून बनना भी बंद हो गया था। इसलिए छह-सात महीने के अंतराल पर बार-बार खून बदलना पड़ता था।

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गांव के लोगों के मुताबिक, जवान बसंत काफी मिलनसार स्वभाव के थे। उनके अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। वह कहते थे कि एक दिन मैं हंसते-हंसते भारत माता के आंचल में सो जाऊंगा। पिछले 13 साल में उन्होंने अपने इलाज में शासन से मिले 3 लाख रूपए सहित करीब 25 से 30 लाख रूपए खर्च किए। डेढ़ एकड़ की जमीन भी बिक गई। फिर भी वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाए। इसी बीच, बीते 29 सितंबर को अचानक उनकी तबीयत फिर बिगड़ गई। जिसके बाद उन्हें जिला अस्पताल लाया गया। 8 अक्टूबर को वहां से रेफर कर मसीही अस्पताल, फिर Chhattisgarh की राजधानी रायपुर के नारायण हास्पिटल में भर्ती कराया गया।

संक्रमण, लीवर और किडनी निष्क्रिय होने तथा पीलिया के चलते 9 अक्टूबर को उन्होंने अंतिम सांस ली। शहीद बसंत नेताम अपनी मां हठियारिन बाई, पत्नी जानकी बाई, पुत्र डिकेश नेताम (24), मनीष नेताम (14) और पुत्री ज्योति नेताम (20) के साथ रहते थे। परिवार में वह इकलौते कमाने वाले थे। उनकी मौत के बाद पूरा परिवार अपने भविष्य को लेकर सदमे में हैं। शहीद बसंत नेताम के पार्थिव शरीर को उनके गृहग्राम सलोनी लाया गया। यहां उसके अंतिम दर्शन के लिए सैकड़ों लोग उमड़ पड़े। अंतिम बिदाई देते समय लोगों की आंखें नम हो गईं। पुलिस की ओर से उनकी पत्नी जानकी बाई को 50 हजार रुपए की तत्काल आर्थिक मदद दी गई।

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