बॉर्डर पर तैनात सैनिकों के लिए ‘संकट-मोचन’ साबित हो रहे हैं ये ट्रेंड कुत्ते

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जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) नियंत्रण-रेखा पर तैनात कुत्ते आम तौर पर ‘डबल कोट जर्मन शेर्फड’ नस्ल के होते हैं। लैब्राडोर प्रजाति के कुत्तों को अंदरूनी इलाकों में लगाया जाता है।

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कश्मीर (Kashmir) में बिछी बर्फ की मोटी चादर के बीच ‘‘डबल कोट’ जर्मन शेर्फड कुत्ते ‘‘बुजो’ का नायकों जैसा स्वागत हुआ। ‘‘बुजो’ ने हाल में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से घुसपैठ के एक प्रयास को नाकाम कर दिया।

सेना का मूक प्रहरी ‘‘बुजो’ उन 150 से ज्यादा प्रशिक्षित कुत्तों में शामिल है जो सेना के साथ मिलकर नियंतण्ररेखा और अंदरूनी इलाकों में पैनी निगाह रखते हैं। ऐसे कुत्तों को तीन श्रेणियों में प्रशिक्षित किया जाता है। उन्हें हमलावर (जो दुश्मन पर हमला करते हैं), ट्रैकर (जो दुश्मन की आवाजाही का पता लगाते हैं) और विस्फोट का पता लगाने वाले (खोजी) श्रेणी में प्रशिक्षित किया जाता है।

उत्तर कश्मीर (North Kashmir) की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नियंत्रण-रेखा पर तैनात कुत्ते आम तौर पर ‘‘डबल कोट जर्मन शेर्फड’ नस्ल के होते हैं जो ऐसे मौसम के लिए सबसे उपयुक्त हैं जबकि लैब्राडोर प्रजाति के कुत्तों को अंदरूनी इलाके में लगाया जाता है।

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कुत्तों को संभालने वालों का मानना है कि अक्लमंदी और बहादुरी में ये कुत्ते उत्तम दर्जे के होते हैं। सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ का पता लगाने में, मादक पदार्थों की तस्करी और यहां तक की संभावित हिमस्खलन का भी पता लगाने में वे मदद देते हैं। हाल में लेफ्टिनेंट जनरल कंवलजीत सिंह ढिल्लों दक्षिण कश्मीर में अमरनाथ गुफा मंदिर के बाहर फौज के कुत्ते को सलाम करते हुए दिखे थे। कश्मीर स्थित 15वीं कोर की अगुवाई करने वाले ले. जनरल ढिल्लों अग्रिम चौकियों की यात्राओं के दौरान वहां तैनात सेना के कुत्तों से मुलाकात सुनिश्चित करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ये कुत्ते परिवार का हिस्सा हैं और सभी जश्नों में हिस्सेदार हैं।’

ले. जनरल ढिल्लों ने कहा, ‘‘इंसान का सबसे वफादार दोस्त बारिश, बर्फबारी और हर मौसम में सैनिकों के साथ वहां हमेशा होता है। ये कुत्ते, परिवार के बहुत अहम सदस्य हैं और ये गश्ती तथा हमला जैसे सभी अभियानों में साथ जाते हैं। खासकर ये हिमस्खलन के बाद बचाव कार्य जैसी आपात स्थिति में वहां होते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘‘जब बड़ा खाना जैसा कोई कार्यक्रम हो तो उन्हें नहीं छोड़ा जाना चाहिए।’

सेना के अन्य अधिकारी ट्रैकर श्वान ‘रोमा’ के काम को याद करते हैं। ‘रोमा’ ने इस साल के शुरू में हिमस्खलन होने से पहले सैनिकों को सतर्क किया था और अस्थायी शिविर को हटवाया था। इसके कुछ घंटे बाद ही हिमस्खलन ने क्षेत्र में काफी नुकसान किया था।

इस साल के शुरू में, लेब्राडोर नस्ल की ‘‘मीना’ नाम की श्वान ने सैनिकों को राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगे आईईडी के बारे में सतर्क किया था। इस चेतावनी के बाद 25 किलोग्राम के आईईडी को निष्क्रिय किया गया था जो सेना के गश्ती दल पर हमला करने के लिए लगाया गया था।

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