जरा याद उन्हें भी कर लो…

भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेम्बली के अंदर बम फेंका। बम फेंकने के अपराध में सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्तूबर, 1930 को फांसी की सजा सुना दी गई।

Shaheed diwas 2019 shahid diwas 23 march bhagat singh, sukhdev rajguru

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।

आज का दिन भारतीय इतिहास का एक बेहद खास दिन है। यह दिन इसलिए खास है क्योंकि आज ही के दिन 23 मार्च, 1931 को मातृभूमि की आज़ादी के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक गए थे। यह दिन न केवल देश के प्रति सम्मान और भारतीयता पर गौरव का अनुभव कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रद्धांजलि देता है।

मात्र 24 वर्ष से भी कम उम्र में अपने वतन के लिए प्राणों की आहुति देने वाले इन शहीदों जैसा उदाहरण पूरी दुनिया में दूसरा नहीं मिलता। ब्रिटिश साम्राज्यवाद को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर देने वाले इन शहीदों को नमन।

इन शहीदों ने अपनी कुर्बानी देकर जो क्रांति की मशाल जलाई थी वो आगे चलकर अंग्रेज़ी सरकार की ताबूत की आख़िरी कील साबित हुई। जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी के तख्ते पर लटकाया गया तो उस वक़्त पूरे देश में अंग्रेजों के प्रति रोष की लहर दौड़ गई। 

जिस वक़्त इन्हें फांसी के तख्त पर चढ़ाया जाना था तो इन महान क्रांतिकारियों ने फांसी के फंदे को चूमा और फिर अपने ही हाथों से उस फंदे को सहर्ष गले में डाल लिया। शुरुआत से ही तीनों क्रांतिकारी विचारधारा से लैस थे, साम्राज्यवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने एवं देश की आजादी के लिए घर परिवार सबकुछ छोड़ दिया था।

यह भी पढ़ेंः फांसी से पहले लिखा शहीद भगत सिंह का आखिरी खत…

यह वो दौर था जब लाला लाजपत राय साइमन कमीशन का विरोध कर रहे थे। अंग्रेज़ों की बर्बरता के चलते लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए थे जिसके चलते 17 नवम्बर, 1928 को उनका देहांत हो गया। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और उनके साथियों ने लाला जी की मौत का बदला लेने की योजना बनाई। चंद्रशेखर आजाद और राजगुरु ने साथ मिलकर सांडर्स को 17 दिसम्बर, 1928 को गोली से उड़ा दिया।

पराधीन भारत की बेड़ियों को तोड़ने और स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला को तीव्र करने लिए भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेम्बली के अंदर बम भी फेंका। बम फेंकने के अपराध में सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्तूबर, 1930 को फांसी की सजा सुना दी गई। हर तरफ से विरोध होने के बावजूद ब्रिटिश सरकार नहीं मानी। 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में तीनों सपूतों को फांसी दे दी गई।

आइये हम सभी मिलकर आज  बलिदान दिवस के मौके पर शहीदों के सपनों का भारत बनाने का प्रण लें। यही इन वीर शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

यह भी पढ़ेंः इतने बेआबरू हो कर तेरे कूचे से…

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें